शिवपुरी। आदिवासियों को लेकर सियासत का दौर जारी है. प्रदेश में कुछ सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, लिहाजा आदिवासियों को लेकर सियासी दलों के बीच तनातनी शुरू हो गई है. भले ही गरीबी का कोई धर्म नहीं होता. लेकिन गरीब वनवासी हमेशा सियासी अखाड़े के दांवपेंच के बीच उलझे रहते हैं और आदिवासी वोट बैंक पर सभी दलों की नजर होती है. शायद यही वजह है कि पहले भी आदिवासियों के धर्मांतरण का मामला देशभर में सुर्खियां बटोर चुका है और हमेशा से आदिवासियों पर राजनीति होती रही है.
शिवपुरी जिले की 2 विधानसभाओं पर उपचुनाव हैं. पोहरी और करैरा विधानसभा सीट पर बीजेपी भी अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा रही है, वहीं कांग्रेस भी वोटरों को लुभाने का लगातार प्रयास कर रही है. उपचुनाव की आहट शुरू होते ही बीजेपी नेता आदिवासियों की दुर्दशा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. दूसरी तरफ, कांग्रेस नेता खुद को आदिवासियों का शुभचिंतक बताते नहीं थक रहे.
इतना ही नहीं, उन्होंने बीजेपी सरकार के कार्यकाल के दौरान आदिवासियों की लाखों एकड़ जमीन हड़पे जाने का आरोप भी लगाया है. हालांकि जनजातियों पर राजनीति कोई नई बात नहीं, लेकिन आदिवासियों को ऐसे भाषणों से पेट भर राशन नहीं मिल सका.
सत्ता समीकरण बनाने में आदिवासियों की बड़ी ताकत का अंदाजा सियासी दलों को लग चुका है. लिहाजा उन्हें लुभाने की कोशिशें भी जारी हैं. अब देखना यह होगा कि आदिवासियों के लिए क्या कुछ कदम उठाए जाते हैं.