शिवपुरी। आगामी दिनों में प्रदेश की जिन 27 सीटों पर विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होने हैं, उनमें से शिवपुरी जिले की करैरा विधानसभा सीट भी शामिल है. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करैरा सीट पर मुकाबला भी कड़ा है, क्योंकि यहां मुद्दों की कमी नहीं है. स्थानीय लोगों की माने तो करैरा से भितरवार की 45 किलोमीटर की सड़क के साथ अन्य सड़कें ही चुनावी मुद्दा बनेगी. कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के लिए यह मुद्दे अहम हैं, क्योंकि दोनों पार्टियों की सरकार प्रदेश में रही लेकिन सड़क को दुरुस्त किसी ने नहीं किया.
1 घंटे के सफर में लगते हैं 3 घंटे
करैरा से भितरवार की 45 किमी लंबी सड़क का काम पिछले कई सालों में नहीं हो सका है. यह सड़क करैरा को सीधे ग्वालियर से जोड़ती है. साथ ही के आधा सैकड़ा गांव के मतदाता भी इनसे जुड़े हैं, जिनका सफर सड़क न होने से मुसीबतों भरा और खतरनाक हो गया है. करैरा से भितरवार का सफर जो कि एक घंटे से कम में तय होना चाहिए, वह सड़क के आभाव में तीन घंटे का वक्त लेता है. इस सड़क में आए दिन दुर्घटनाएं होती हैं, दो दिन पहले ही एक ट्रक भी पलटा था, तब ग्रामीण ने उप-चुनाव बहिष्कार की बात कही थी.
कमलनाथ सरकार में नहीं मिला NOC
इस सड़क का काम तीन साल पहले शुरू तो हुआ था, लेकिन कुछ दिनों में ही काम रुक गया. बताया जा रहा है कि सड़क का कुछ हिस्सा करैरा अभयरण्य की सीमा में आता है, जिस कारण एनओसी मिलने में दिक्कत हो रही है. नवम्बर 2019 में जब जसमंत जाटव कांग्रेस से विधायक थे, तब उन्होंने एक कार्यक्रम में मंच से इस सड़क को क्षेत्र की जीवन रेखा बताया था और पीड़ा भी जताई थी कि सड़क की दुर्दशा से नारकीय जीवन जीना पड़ रहा है और कलेक्टर से सड़क के लिए एनओसी जारी कराने का अनुरोध किया था.
भाजपा नेता कर रहे टेंडर का दावा
काम रुकने के बाद जब दोबारा लंबे समय तक शुरू नहीं हुआ तो सड़क की लागत भी बढ़ गई और जिस ठेकेदार को काम मिला था, वह काम छोड़कर भाग गया. हालांकि अब जब प्रदेश में फिर भाजपा की सरकार बन गई है तो भाजपा नेता इसका काम जल्द शुरू होने की बात कह रहे हैं और दुबारा से इस सड़क के नए टेंडर होने की बात कर रहे हैं.
सड़क की सियासत को कैसे भुनाएंगी पार्टियां
सड़क पर सियासत कोई नई बात नहीं है, सड़कों की खस्ता हालत पर ही 16 साल पहले दिग्गी सरकार गई थी. करैरा विधानसाभा के उपचुनाव में भी सड़क का मुद्दा जीत हार में अहम भूमिका अदा करेगी. देखने वाली बात यह होगी कि इस बाजी को कांग्रेस भाजपा कैसे भुनाती हैं.