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कलयुगी बेटों के लिए बोझ बने माता-पिता, वृद्धा आश्रम में रहने को मजबूर - helpless parents

कहा जाता है कि वक्त के साथ सब बदल जाता है. ये बातें आजकल के युवाओं पर बिल्कुल सटीक बैठती है. जिन बच्चों का भविष्य बनाने के लिए माता-पिता अपनी जिंदगीभर की कमाई लुटा देते है, वो ही वक्त आने पर इतना बदल जाते है कि माता-पिता की दो वक्त की रोटी देना भी घाटे का सौदा लगती है.

वृद्धा आश्रम में जीने को मजबूर वृद्धजन
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Published : Jul 28, 2019, 3:12 AM IST

शिवपुरी। शिवपुरी स्थित वृद्धाश्रम में वृद्धजन अपने बेटे-बेटियों और घर संसार को छोड़कर अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं. आजकल देखा जाए तो हर दूसरे शहर में एक वृद्धाश्रम होता है. जिस तरह बाल आश्रम जरूरतमंद बच्चों को पनाह देता है, वैसे ही वृद्ध आश्रम घर से निकाले गए असहाय वृद्ध जनों को पनाह देता है. इन बुजुर्गों की हालात के जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि उनके बच्चे ही होते हैं. जिन्हें प्यार से हर परिस्थिति में पाला होता है, लेकिन उनके ही बच्चे बड़े होकर मां-बाप को आश्रम की राह दिखा देते है.

वृद्धा आश्रम में जीने को मजबूर वृद्धजन

यह भारतीय समाज पर पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ने का परिणाम है. हम आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति और संस्कारों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं. इंसानियत कहीं ना कहीं खोती जा रही है. मां-बाप हमें बिना किसी स्वार्थ के पालते हैं, बड़ा करते हैं और हम से केवल एक ही आशा रखते हैं कि हम बड़े होकर उनकी लाठी बनेंगे और उनको बुढ़ापे में सहारा देंगे. लेकिन आजकल सारी संपत्ति मिल जाने के बाद उन्हें बोझ समझने लगते हैं और घर से बेदखल कर देते हैं.

पहले के जमाने में ना कोई वृद्ध आश्रम हुआ करते थे और ना ही कभी बुजुर्गों को किसी वृद्ध आश्रम में रहने की जरूरत पड़ी. नए जमाने के साथ हमारे देश के युवाओं की सोच भी निरंतर बदल रही है. वह अपने मां बाप को सम्मान ना देकर अपने मां बाप को एक ऐसे वृद्ध आश्रम नाम के झरोखों में छोड़ आते हैं।

शिवपुरी। शिवपुरी स्थित वृद्धाश्रम में वृद्धजन अपने बेटे-बेटियों और घर संसार को छोड़कर अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं. आजकल देखा जाए तो हर दूसरे शहर में एक वृद्धाश्रम होता है. जिस तरह बाल आश्रम जरूरतमंद बच्चों को पनाह देता है, वैसे ही वृद्ध आश्रम घर से निकाले गए असहाय वृद्ध जनों को पनाह देता है. इन बुजुर्गों की हालात के जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि उनके बच्चे ही होते हैं. जिन्हें प्यार से हर परिस्थिति में पाला होता है, लेकिन उनके ही बच्चे बड़े होकर मां-बाप को आश्रम की राह दिखा देते है.

वृद्धा आश्रम में जीने को मजबूर वृद्धजन

यह भारतीय समाज पर पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ने का परिणाम है. हम आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति और संस्कारों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं. इंसानियत कहीं ना कहीं खोती जा रही है. मां-बाप हमें बिना किसी स्वार्थ के पालते हैं, बड़ा करते हैं और हम से केवल एक ही आशा रखते हैं कि हम बड़े होकर उनकी लाठी बनेंगे और उनको बुढ़ापे में सहारा देंगे. लेकिन आजकल सारी संपत्ति मिल जाने के बाद उन्हें बोझ समझने लगते हैं और घर से बेदखल कर देते हैं.

पहले के जमाने में ना कोई वृद्ध आश्रम हुआ करते थे और ना ही कभी बुजुर्गों को किसी वृद्ध आश्रम में रहने की जरूरत पड़ी. नए जमाने के साथ हमारे देश के युवाओं की सोच भी निरंतर बदल रही है. वह अपने मां बाप को सम्मान ना देकर अपने मां बाप को एक ऐसे वृद्ध आश्रम नाम के झरोखों में छोड़ आते हैं।

Intro:स्लग-बृद्ध आश्रम
वृद्ध आश्रम में जीने को मजबूर वृद्धजन
एंकर- वृद्ध आश्रम उन वरिष्ठ नागरिकों के लिए होते हैं जो अपने परिवारों के साथ नहीं रहते अथवा निराश्रित होते हैं। शिवपुरी में स्थित वृद्धाश्रम जो कि मंगल मंगलम भवन में चलाया जा रहा है जिसमें वृद्धजन अपने बेटे बेटियों और घर संसार को छोड़कर अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं। आजकल देखा जाए तो हर दूसरे शहर में एक वृद्ध आश्रम होता है जिस तरह बाल आश्रम जरूरतमंद बच्चों को पनाह देता है वैसे ही वृद्ध आश्रम घर से निकले गए असहाय वृद्ध जनों को पनाह देता है इन बुजुर्गों की हालात के जिम्मेदार और कोई नहीं अपितु उनके बच्चे ही होते हैं जिन्हें प्यार से हर परिस्थिति में पाला होता है वही मां बाप को वृद्ध आश्रम का रास्ता दिखा देते हैं।



Body:दरअसल यह परिणाम है भारतीय समाज का पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ने का। हम आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति और संस्कारों को इतना पीछे छोड़ रहे हैं कि इंसानियत कहीं ना कहीं खोती जा रही है मां-बाप हमें बिना किसी स्वार्थ के पालते हैं बड़ा करते हैं और हम से केवल एक ही आशा रखते हैं कि हम बड़े होकर उनकी लाठी बनेंगे और उनको बुढ़ापे में सहारा देंगे लेकिन आजकल कुछ लोगों की स्वार्थता तो देखिए एक बार सारी संपत्ति मिल जाने पर अपने मां बाप को ही त्याग देते हैं उन्हें बोझ समझने लगते हैं और घर से बेदखल कर देते हैं ।


Conclusion:व्हिओ- पहले के जमाने में ना कोई वृद्ध आश्रम हुआ करते थे और ना ही कभी बुजुर्गों को किसी वृद्ध आश्रम में रहने की जरूरत पड़ी लेकिन बदलती स्थिति और बदलते इस नए जमाने के साथ बदलती विदेशी संस्कृति के साथ हमारे देश के युवाओं की सोच भी निरंतर बदल रही है वह अपने मां बाप को सम्मान ना देकर अपने मां बाप को एक ऐसे वृद्ध आश्रम नाम के झरोखों में छोड़ आते हैं। जहां पर उन्हें जीवन भर अफसोस होता है।
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