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घबराहट में ऑक्सीजन मास्क निकाल रहे मरीज, परीजनों ने की साथ रहने की मांग

कोविड आईसीयू वार्ड में भर्ती अधिकतर मरीजाें की हालत गंभीर बनी हुई है. इनमें कुछ मरीज ऐसे हैं जो घबराहट में ऑक्सीजन मास्क ही निकालकर फेंक देते हैं. ऐसे में मरीजों के परिजन गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें गंभीर मरीजों के साथ रुकने की अनुमति दें, जिससे मरीज की ठीक से देखभाल हो सके.

शिवपुरी न्यूज
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Published : May 17, 2021, 10:08 AM IST

शिवपुरी। कोविड आईसीयू में भर्ती अधिकतर मरीजाें की हालत गंभीर बनी हुई है. इनमें कुछ मरीज ऐसे हैं जो घबराहट में ऑक्सीजन मास्क ही निकालकर फेंक देते हैं. स्टाफ की नजर चूकने से उनकी जान पर बन आती है. हालात यह हैं कि मरीज की जान बचाने के लिए बेड से ही उनके हाथ-पैर बांधकर रखने की नौबत आ रही है. पिछले डेढ़ महीने में हुईं मौतों पर नजर डालें तो अधिकतर मरीजों ने रात में ही दम तोड़ा है. ऐसे में मरीजों के परिजन गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें गंभीर मरीजों के साथ रुकने की अनुमति दें, जिससे मरीज की ठीक से देखभाल हो सके.

परिजनों की मांग
परिजनों का यह भी तर्क है कि मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के आईसीयू में ऐसे गंभीर मरीज हैं, जो कई दिन पहले निगेटिव हो चुके हैं. इसलिए अस्पताल आईसीयू के उपलब्ध बेड में से 10 पलंग का वार्ड निगेटिव मरीजों को रखा जाए. निगेटिव मरीजों को इस वार्ड में शिफ्ट कर अस्पताल प्रबंधन अटेंडेंट को रुकने की इजाजत दे. निगेटिव मरीजों के साथ रहने से अटेंडेंट को भी संक्रमण का खतरा जैसी बात नहीं रहेगी. बता दें कि प्रशासन और अस्पताल प्रबंधन ने अभी तक इस संबंध में कोई विचार नहीं किया है. खासतौर पर क्राइसिस मैनेजमेंट समूह की मीटिंग में भी किसी सदस्य ने मुद्दा नहीं उठाया. इसी वजह से समस्या का अभी तक समाधान नहीं निकाला जा सका.

दो उदाहरण, गंभीर मरीज जिन्हें बांधने की नाैबत आई

1. रामसेवक राठौर निवासी मनियर को मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था. अटेंडेंट को वार्ड के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी. दो दिन पहले वीडियो कॉलिंग से बात हुई तो बेटे नरेंद्र राठौर ने बताया कि हमने देखा कि पिता को बेड से बांधकर रखा है. पूछने पर बताया कि ऑक्सीजन मास्क निकालकर फेंक रहे थे. बाद में परिजन ने कॉलेज हॉस्पिटल से छुट्‌टी कराई और ग्वालियर ले गए, जहां इलाज के दौरान रविवार काे उनकी मौत हो गई.

2. गुना निवासी राजा श्रीवास्तव 3 मई से मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में भर्ती हैं. वे वर्तमान में वेंटीलेटर पर हैं. अक्सर वे ऑक्सीजन मास्क निकालकर फेंक देते हैं. उनकी पत्नी ने बताया कि 5-6 मई को रिपोर्ट निगेटिव आ गई थी. ऑक्सीजन लेवल कम है. ऑक्सीजन मिलती रहे, इसलिए हमने मजबूरी में बांधने की सहमति दे दी. ऐसी हालत में कहीं और लेकर जाना खतरे से खाली नहीं है. मरीज निगेटिव है, यदि संग रहने की व्यवस्था हो जाए तो हम ठीक से देखभाल कर सकेंगे.

गंभीर मरीजों की देखभाल को लेकर तर्क
मरीजों के परिजन का कहना है कि गंभीर मरीज जो निगेटिव हो चुके हैं, उनके संग अटेंडेंट रखें तो सबसे पहला फायदा यह होगा कि मरीज की ठीक से देखभाल हो सकेगी. दूसरा अस्पताल में स्टाफ की कमी महसूस नहीं होगी और तीसरा डॉक्टरों को इलाज करने में परेशानी नहीं आएगी. यदि ऐसा होता है तो मरीज के ठीक होने की उम्मीद अधिक है.

स्वास्थ्य विभाग कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद मरीज को 12 से 15 दिन में निगेटिव मान लेता है, लेकिन कोरोना संक्रमित होने के बाद सैंपल टेस्ट में भी लगभग 10 से 12 दिन में रिपोर्ट निगेटिव आ जाती है. ऐसे में जो गंभीर मरीज पॉजिटिव होने के बाद निगेटिव हुए हैं, तो फिर अटेंडरों को साथ रखने की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है.


खोखले दावेः चिरायु अस्पताल ने आयुष्मान कार्डधारी का फ्री इलाज करने से किया इनकार, मरीज की मौत

डीन से बात करें
कलेक्टर ने कहा कि कोविड मरीजों के बीच वार्ड में अटेंडेंट को रुकने की अनुमति हम नहीं दे रहे हैं. जिला अस्पताल में इसका खामियाजा हम भुगत चुके हैं. यदि मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में गंभीर मरीज निगेटिव हैं, मरीज उनके साथ रुकना चाहते हैं, तो इस बारे में डीन से बात करें.

शिवपुरी। कोविड आईसीयू में भर्ती अधिकतर मरीजाें की हालत गंभीर बनी हुई है. इनमें कुछ मरीज ऐसे हैं जो घबराहट में ऑक्सीजन मास्क ही निकालकर फेंक देते हैं. स्टाफ की नजर चूकने से उनकी जान पर बन आती है. हालात यह हैं कि मरीज की जान बचाने के लिए बेड से ही उनके हाथ-पैर बांधकर रखने की नौबत आ रही है. पिछले डेढ़ महीने में हुईं मौतों पर नजर डालें तो अधिकतर मरीजों ने रात में ही दम तोड़ा है. ऐसे में मरीजों के परिजन गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें गंभीर मरीजों के साथ रुकने की अनुमति दें, जिससे मरीज की ठीक से देखभाल हो सके.

परिजनों की मांग
परिजनों का यह भी तर्क है कि मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के आईसीयू में ऐसे गंभीर मरीज हैं, जो कई दिन पहले निगेटिव हो चुके हैं. इसलिए अस्पताल आईसीयू के उपलब्ध बेड में से 10 पलंग का वार्ड निगेटिव मरीजों को रखा जाए. निगेटिव मरीजों को इस वार्ड में शिफ्ट कर अस्पताल प्रबंधन अटेंडेंट को रुकने की इजाजत दे. निगेटिव मरीजों के साथ रहने से अटेंडेंट को भी संक्रमण का खतरा जैसी बात नहीं रहेगी. बता दें कि प्रशासन और अस्पताल प्रबंधन ने अभी तक इस संबंध में कोई विचार नहीं किया है. खासतौर पर क्राइसिस मैनेजमेंट समूह की मीटिंग में भी किसी सदस्य ने मुद्दा नहीं उठाया. इसी वजह से समस्या का अभी तक समाधान नहीं निकाला जा सका.

दो उदाहरण, गंभीर मरीज जिन्हें बांधने की नाैबत आई

1. रामसेवक राठौर निवासी मनियर को मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था. अटेंडेंट को वार्ड के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी. दो दिन पहले वीडियो कॉलिंग से बात हुई तो बेटे नरेंद्र राठौर ने बताया कि हमने देखा कि पिता को बेड से बांधकर रखा है. पूछने पर बताया कि ऑक्सीजन मास्क निकालकर फेंक रहे थे. बाद में परिजन ने कॉलेज हॉस्पिटल से छुट्‌टी कराई और ग्वालियर ले गए, जहां इलाज के दौरान रविवार काे उनकी मौत हो गई.

2. गुना निवासी राजा श्रीवास्तव 3 मई से मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में भर्ती हैं. वे वर्तमान में वेंटीलेटर पर हैं. अक्सर वे ऑक्सीजन मास्क निकालकर फेंक देते हैं. उनकी पत्नी ने बताया कि 5-6 मई को रिपोर्ट निगेटिव आ गई थी. ऑक्सीजन लेवल कम है. ऑक्सीजन मिलती रहे, इसलिए हमने मजबूरी में बांधने की सहमति दे दी. ऐसी हालत में कहीं और लेकर जाना खतरे से खाली नहीं है. मरीज निगेटिव है, यदि संग रहने की व्यवस्था हो जाए तो हम ठीक से देखभाल कर सकेंगे.

गंभीर मरीजों की देखभाल को लेकर तर्क
मरीजों के परिजन का कहना है कि गंभीर मरीज जो निगेटिव हो चुके हैं, उनके संग अटेंडेंट रखें तो सबसे पहला फायदा यह होगा कि मरीज की ठीक से देखभाल हो सकेगी. दूसरा अस्पताल में स्टाफ की कमी महसूस नहीं होगी और तीसरा डॉक्टरों को इलाज करने में परेशानी नहीं आएगी. यदि ऐसा होता है तो मरीज के ठीक होने की उम्मीद अधिक है.

स्वास्थ्य विभाग कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद मरीज को 12 से 15 दिन में निगेटिव मान लेता है, लेकिन कोरोना संक्रमित होने के बाद सैंपल टेस्ट में भी लगभग 10 से 12 दिन में रिपोर्ट निगेटिव आ जाती है. ऐसे में जो गंभीर मरीज पॉजिटिव होने के बाद निगेटिव हुए हैं, तो फिर अटेंडरों को साथ रखने की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है.


खोखले दावेः चिरायु अस्पताल ने आयुष्मान कार्डधारी का फ्री इलाज करने से किया इनकार, मरीज की मौत

डीन से बात करें
कलेक्टर ने कहा कि कोविड मरीजों के बीच वार्ड में अटेंडेंट को रुकने की अनुमति हम नहीं दे रहे हैं. जिला अस्पताल में इसका खामियाजा हम भुगत चुके हैं. यदि मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में गंभीर मरीज निगेटिव हैं, मरीज उनके साथ रुकना चाहते हैं, तो इस बारे में डीन से बात करें.

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