श्योपुर। समय बीतने के साथ लोग धीरे-धीरे आधुनिक होते जा रहे हैं, जिस कारण कला और संस्कृति जिसने सभ्यता का विकास किया वो धीरे-धीरे धूमिल हो गई. लोग सूट-बूट में कस के खुद को ही भूलते चले गए, लेकिन 16 से 18 दिसंबर तक श्योपुर में हुए मड़ई महोत्सव में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात के आदिवासियों ने अपनी कला का प्रदर्शन कर यह दिखा दिया कि भले ही लोग अपनी संस्कृति को भूल गए हैं, पर कुछ लोग हैं, जो आज के आधुनिक दौर में भी अपनी कला के जरिए अपने संस्कृति और संस्कार को निभा रहे हैं.
पहले दिन मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ की दिखी कला
मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग, श्योपुर जिला पुरातत्व और पर्यटन परिषद की के तत्वधान में यह उत्सव हजारेश्वर पार्क में 16 दिसंबर 2019 की शाम 6:30 बजे शुरू हुआ. जिसमें छत्तीसगढ़ और मप्र के कलाकारों ने क्षेत्रीय लोकगीतों पर समूह नृत्य पेशकर प्राचीन आदिवासी संस्कृति की छठा बिखेरी. पहले दिन डिण्डौरी के कलाकारों ने बैगा नृत्य, सीधी से आए दल ने दहका नृत्य, छिंदवाड़ा के दल ने भारिया नृत्य की प्रस्तुति दी. छत्तीसगढ़ी लोकगीत पर कक्सार नृत्य की प्रस्तुति दी गई.
दूसरे दिन से सजी आदिवासी व्यंजनों की थाली
मड़ई उत्सव के दूसरे दिन मंगलवार यानी 17 दिसंबर को मप्र, गुजरात से लेकर छत्तीसगढ़ तक से आए आदिवासी जनजाति के लोक कलाकारों ने समां बांध दिया. इस उत्सव में न सिर्फ जनजातीय लोकगीत, संगीत व नृत्य की प्रस्तुति लोगों का मन मोहा बल्की समारोह दूसरे दिन दर्शकों को मात्र 50 रुपए में आदिवासी व्यंजनो की थाली भी परोसी गई, जिसमें आदिवासियों के रसोई में ही बने पकवान सामिल हुए और लोगो के मनोरंजन के साथ स्वाद भी स्वाद भी चखा.
भड़क नृत्य के साथ हुआ समापन
16 दिसंबर से शुरु हुए मड़ई उत्सव का समापन 18 दिसंबर को सहरिया जनजाति के भारिया समाज के भड़म नृत्य के साथ हुआ. इस अवसर पर तीन दिनों तक चले सहभागी बने कलाकारों को सम्मानित किया गया और कला संस्कृती को बचाय रखने के लिए आभार भी दिया गया. इस मौके पर शहर के लोगो के अलावा जिले के आला अधिकारी उपस्थित रहे.
तीन दिन तक इस कार्यक्रम में तीनों ही प्रदशों से आए लगभग 200 कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया. इस कार्यक्रम के के जरिए न सिर्फ लोगों का मनोरंजन हुआ बल्कि आदिवासी संस्कृति को पहचान दिलाने की पहल भी हुई. इस उत्सव में लोगों ने न सिर्फ जनजाति समाज के लोकगीत, संगीत, वेशभूषा और पकवानों को जाना बल्की आदिवासी समाज की संस्कृती और परंपराओं को भी जाना.