श्योपुर। 5 साल तक जिला पंचायत अध्यक्ष रहने वाला शख्स अगर आज खेतों में मजदूरी करे, तो हैरानी होगी ही. गुड्डी बाई का जीवन भी ऐसा ही है. कभी बत्ती वाली गाड़ी में घूमने वाली गुड्डी बाई आज गांव में 40-50 रुपए के लिए मजदूरी कर रही है.
गुड्डी बाई को कहां से कहां ले आया वक्त?
जो ठहर जाए वो वक्त ही क्या. राजा कब रंक हो जाए, कब रंक राजा बन जाए कोई नहीं कह सकता. समय हजार रंग दिखलाता है. गुड्डी देवी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ . गुड्डी भाई एक आदिवासी महिला है. 2010 से 2015 तक जिला पंचायत की अध्यक्ष रहीं. बत्ती वाली गाड़ी से लेकर, ड्राइवर , गन मैन, नौकर चाकर तक मिले. कलेक्टर से लेकर पंचायत CEO तक इनकी बात ध्यान से सुनते थे. जनता भी अपनी फरियाद लेकर गुड्डी बाई के पास आती थी. वक्त गुजरा, 2015 आया और गुड्डी बाई का कार्यकाल भी पूरा हुआ. सरकारी ठाठ बाट छोड़कर गुड्डी बाई फिर से पुरानी दुनिया में लौट आईं.
कभी रहीं पंचायत अध्यक्ष, आज खेतों में मजदूरी
गांववाले कहते हैं कि गुड्डी बाई की हालत अब बहुत अच्छी नहीं है. अपना परिवार चलाने के लिए उसे पहले की तरह मेहनत मजदूरी करनी पड़ रही है. दूसरों के खेतों में बटाई करती हैं. जंगल से सिर पर लकड़िया भी लाती है.
ईमानदारी की कीमत चुका रही गुड्डी बाई !
गुड्डी बाई अभी भी जनपद सदस्य हैं. हर महीने उन्हें 1500 रुपए मानदेय भी मिलता है. लेकिव वो भी एक साल से पेंडिंग है. लोग कहते हैं कि गुड्डी बाई ईमानदार हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष जैसे बड़े ओहदे पर रहते हुए कभी रिश्वत नहीं ली. प्रॉपर्टी नहीं बनाई, बैंक बैलेंस नहीं जोड़ा. कमीशनखोरी नहीं की. गांववालों के लिए गुड्डी बाई ईमानदारी की मिसाल है. कोई और होता तो इतना कमा लेता कि उसकी सात पुश्तों को कमाने की जरूरत नहीं पड़ती. बिना हाथ पैर हिलाए ऐश की जिंदगी जीता. लेकिन गुड्डी बाई किसी और मिट्टी की बनी हुई हैं.
गुड्डी नहीं समझ पाई दुनियादारी !
अभी गुड्डी बाई खेतों में मेहनत मजदूरी करती हैं. एक खोका भी खोल रखा है. जिसमें मीठी गोली और बिस्कुट जैसी चीजें रखी हैं. इससे वो रोज के 40-50 रुपए कमा लेती हैं. पंचायत अध्यक्ष रहते हुए घूमने वाली कुर्सी में बैठकर कभी अफसरों से जवाबतलाब करने वाली गुड्डी बाई आज खेतों में मिट्टी कूट रही है. कुर्सी पर रहते हुए भले ही उन्होंने दो नंबर का पैसा नहीं बनाया, लेकिन इज्जत बहुत कमाई. इसलिए गांववाले भी गुड्डी बाई की ईमानदारी की मिसाल देते हैं.