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श्योपुर के माथे से नहीं मिट रहा कुपोषण का कंलक! देखिए रिपोर्ट - सरकारी आंकड़े 16915 बच्चे कुपोषित

कुपोषण यानी एक ऐसा कंलक, जो देश के दिल यानी मध्यप्रदेश पर इस तरह लगा कि, इसको दूर करने की तमाम कोशिशों पर फिलहाल पानी फिरता नजर आ रहा है. वहीं अगर श्योपुर जिले की बात करें तो यहां कुपोषण के मामले सबसे ज्यादा हैं. जिसके चलते श्योपुर के माथे कुपोषण का कलंक नहीं मिट रहा है.

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कुपोषण
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Published : Dec 26, 2020, 1:46 PM IST

श्योपुर। प्रदेश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में बदनाम श्योपुर जिले के माथे पर कुपोषण बड़ा बदनुमा दाग है, जो आजादी के 70 साल बीतने के बाद भी कुपोषण का यह कलंक मिटने का नाम नहीं ले रहा है. इसमें कोई शक नहीं है कि इन 70 सालों में देश ने सफलता की कई मुकाम हासिल किए, विकास के कई कीर्तिमान रचे, जमीन से लेकर अंतरिक्ष तक अपने झंडे गाड़े,लेकिन वह दाग नहीं भूल पाए,जो सालों से जिले के माथे पर लगे हैं. हम बात कर रहे हैं कुपोषण की,जो आज भी सिस्टम को आइना दिखा रहा है, और पूछ रहा है कि इस कलंक से आखिरकार कब आजादी मिलेगी. देखिए यह खास रिपोर्ट.

नहीं कम हो रहा कुपोषण

नहीं मिट रहा कुपोषण का कलंक

कुपोषण को मिटाने के लिए शासन ने तमाम योजनाएं चला दी हैं, लेकिन यह योजनाएं विभागों के दफ्तरों में दम तोड़ रही हैं. जिसका खामियाजा मासूमों को उठाना पड़ रहा है. कुपोषण के इस गंभीर मसले को लेकर विभाग के जिम्मेदार अफसर चुप्पी साध कर बैठे हैं,जिसकी वजह से कुपोषण का कलंक मिटाने का नाम नहीं ले रहा है, ग्रामीण अंचल में कुपोषण की स्थिति को आंका जाए तो योजनाओं की हवा निकल जाती है. जानकारी के लिए बता दें कि कागजों में कुपोषण की स्थिति पहले से बेहतर बताया गया है, हालांकि हकीकत तो कुछ और है,सरकार की विभिन्न योजनाओं के बावजूद भी कुपोषण का कलंक नहीं मिट रहा है.

जमीनी हकीकत से अलग आंकड़े

महिला बाल विकास द्वारा कराई गई अक्टूबर 2020 तक की सर्वे के अनुसार जिले में कुपोषित बच्चों की बात की जाए तो,करीबन 14810 बच्चे शामिल हैं,तो वहीं अति कुपोषित यानी कि अति कम वजन वाले बच्चों की संख्या भी 2105 है,जबकि जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयां करती है लेकिन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को तो बात करने तक की फुर्सत नहीं है.

पिछले साल कराए गई सर्वे के आंकड़े

महिला बाल विकास की सर्वे के अनुसार 2019 की अपेक्षा 2020 में कुपोषण का ग्राफ घटा है,लेकिन स्थिति में सुधार नहीं आया है,हैरत की बात यह है,कि अभी भी जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र कराहल में 801 बच्चे अति कम वजन के हैं जो की हड्डियों का ढांचा बनकर रह गए हैं, कहने को तो विभाग की ढेरों योजनाएं और एनजीओ संचालित हो रही हैं,इसके बाद भी कुपोषण का ग्राफ चिंताजनक है,इससे साफ है कि,विभागीय योजनाएं पूरी तरह से जमीनी स्तर पर नहीं उतर पाई है,सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले में लगभग 16915 बच्चे कुपोषण का दंश झेल रहे हैं,

कागजों में सिमटी सरकारी योजनाएं

महिला बाल विकास विभाग आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए कुपोषण को दूर करने के लिए, पोस्टिक मध्यान भोजन,पौष्टिक आहार, पुनर्वास केंद्र, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाए गए राष्ट्रीय पोषण मिशन सहित अनेकों योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन यह योजनाएं भी कागजों में सिमट कर दफ्तरों में ही दफन हो गई है, विभाग की माने तो जन्म के समय जिन बच्चों में 2.5 किलोग्राम से कम भजन हो तो उसके भोजन पर विशेष ध्यान रखना चाहिए, वहीं 5 महीने के बच्चे का वजन 2 गुना और 1 वर्ष में बच्चे का वजन 3 गुना होना चाहिए, अगर जिन बच्चों का वजन नहीं बढ़ता है तो वह कुपोषण का शिकार होते हैं.

सोचने पर मजबूर कर देने वाला मामला

जिला अस्पताल की एनआरसी में भर्ती एक आदिवासी बच्चे की उम्र 2 साल हो जाने के बाद भी वजन 3.30 किलो है. जिसकी हालात बेहद ही गंभीर होने की वजह से उसकी आवाज भी नहीं निकल रही है,फिर भी जिम्मेदारों की कलम कागजों की कमियों को पूरा करने में दिनोंदिन रफ्तार पकड़ती जा रही है.

कलेक्टर के हिसाब से कुपोषण के ग्राफ में आई कमी

इस मामले को लेकर जब ईटीवी भारत ने श्योपुर कलेक्टर राकेश श्रीवास्तव से बात की तो उन्होंने कहा कि, मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हूं, क्योंकि कुपोषण मिटाने के लिए महिला बाल विकास विभाग के द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं और कुपोषण के ग्राफ में कमी भी देखने को मिल रही है, हालांकि हकीकत तो यह है, कि जिम्मेदार इस पर कितना भी पर्दा डालते रहें लेकिन, इन भयानक तस्वीरों को देखकर तो ऐसा लगता है कि, कुपोषण के ग्राफ में कमी नहीं आ रही है.

विधायक का सरकार पर आरोप

कुपोषण को लेकर कांग्रेस विधायक बाबू जंडेल ने सरकार को घेरते हुए कहा कि जब भी चुनाव आते हैं तब मामाजी के द्वारा आदिवासी बहनों के खाते में पैसे डाल दिए जाते हैं, लेकिन कई बहने तो ऐसी हैं, जिनके सर्वे में अभी तक नाम भी नहीं जुड़ पाए हैं, ऐसे में कुपोषण कहां से खत्म मिलेगा.

श्योपुर। प्रदेश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में बदनाम श्योपुर जिले के माथे पर कुपोषण बड़ा बदनुमा दाग है, जो आजादी के 70 साल बीतने के बाद भी कुपोषण का यह कलंक मिटने का नाम नहीं ले रहा है. इसमें कोई शक नहीं है कि इन 70 सालों में देश ने सफलता की कई मुकाम हासिल किए, विकास के कई कीर्तिमान रचे, जमीन से लेकर अंतरिक्ष तक अपने झंडे गाड़े,लेकिन वह दाग नहीं भूल पाए,जो सालों से जिले के माथे पर लगे हैं. हम बात कर रहे हैं कुपोषण की,जो आज भी सिस्टम को आइना दिखा रहा है, और पूछ रहा है कि इस कलंक से आखिरकार कब आजादी मिलेगी. देखिए यह खास रिपोर्ट.

नहीं कम हो रहा कुपोषण

नहीं मिट रहा कुपोषण का कलंक

कुपोषण को मिटाने के लिए शासन ने तमाम योजनाएं चला दी हैं, लेकिन यह योजनाएं विभागों के दफ्तरों में दम तोड़ रही हैं. जिसका खामियाजा मासूमों को उठाना पड़ रहा है. कुपोषण के इस गंभीर मसले को लेकर विभाग के जिम्मेदार अफसर चुप्पी साध कर बैठे हैं,जिसकी वजह से कुपोषण का कलंक मिटाने का नाम नहीं ले रहा है, ग्रामीण अंचल में कुपोषण की स्थिति को आंका जाए तो योजनाओं की हवा निकल जाती है. जानकारी के लिए बता दें कि कागजों में कुपोषण की स्थिति पहले से बेहतर बताया गया है, हालांकि हकीकत तो कुछ और है,सरकार की विभिन्न योजनाओं के बावजूद भी कुपोषण का कलंक नहीं मिट रहा है.

जमीनी हकीकत से अलग आंकड़े

महिला बाल विकास द्वारा कराई गई अक्टूबर 2020 तक की सर्वे के अनुसार जिले में कुपोषित बच्चों की बात की जाए तो,करीबन 14810 बच्चे शामिल हैं,तो वहीं अति कुपोषित यानी कि अति कम वजन वाले बच्चों की संख्या भी 2105 है,जबकि जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयां करती है लेकिन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को तो बात करने तक की फुर्सत नहीं है.

पिछले साल कराए गई सर्वे के आंकड़े

महिला बाल विकास की सर्वे के अनुसार 2019 की अपेक्षा 2020 में कुपोषण का ग्राफ घटा है,लेकिन स्थिति में सुधार नहीं आया है,हैरत की बात यह है,कि अभी भी जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र कराहल में 801 बच्चे अति कम वजन के हैं जो की हड्डियों का ढांचा बनकर रह गए हैं, कहने को तो विभाग की ढेरों योजनाएं और एनजीओ संचालित हो रही हैं,इसके बाद भी कुपोषण का ग्राफ चिंताजनक है,इससे साफ है कि,विभागीय योजनाएं पूरी तरह से जमीनी स्तर पर नहीं उतर पाई है,सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले में लगभग 16915 बच्चे कुपोषण का दंश झेल रहे हैं,

कागजों में सिमटी सरकारी योजनाएं

महिला बाल विकास विभाग आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए कुपोषण को दूर करने के लिए, पोस्टिक मध्यान भोजन,पौष्टिक आहार, पुनर्वास केंद्र, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाए गए राष्ट्रीय पोषण मिशन सहित अनेकों योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन यह योजनाएं भी कागजों में सिमट कर दफ्तरों में ही दफन हो गई है, विभाग की माने तो जन्म के समय जिन बच्चों में 2.5 किलोग्राम से कम भजन हो तो उसके भोजन पर विशेष ध्यान रखना चाहिए, वहीं 5 महीने के बच्चे का वजन 2 गुना और 1 वर्ष में बच्चे का वजन 3 गुना होना चाहिए, अगर जिन बच्चों का वजन नहीं बढ़ता है तो वह कुपोषण का शिकार होते हैं.

सोचने पर मजबूर कर देने वाला मामला

जिला अस्पताल की एनआरसी में भर्ती एक आदिवासी बच्चे की उम्र 2 साल हो जाने के बाद भी वजन 3.30 किलो है. जिसकी हालात बेहद ही गंभीर होने की वजह से उसकी आवाज भी नहीं निकल रही है,फिर भी जिम्मेदारों की कलम कागजों की कमियों को पूरा करने में दिनोंदिन रफ्तार पकड़ती जा रही है.

कलेक्टर के हिसाब से कुपोषण के ग्राफ में आई कमी

इस मामले को लेकर जब ईटीवी भारत ने श्योपुर कलेक्टर राकेश श्रीवास्तव से बात की तो उन्होंने कहा कि, मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हूं, क्योंकि कुपोषण मिटाने के लिए महिला बाल विकास विभाग के द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं और कुपोषण के ग्राफ में कमी भी देखने को मिल रही है, हालांकि हकीकत तो यह है, कि जिम्मेदार इस पर कितना भी पर्दा डालते रहें लेकिन, इन भयानक तस्वीरों को देखकर तो ऐसा लगता है कि, कुपोषण के ग्राफ में कमी नहीं आ रही है.

विधायक का सरकार पर आरोप

कुपोषण को लेकर कांग्रेस विधायक बाबू जंडेल ने सरकार को घेरते हुए कहा कि जब भी चुनाव आते हैं तब मामाजी के द्वारा आदिवासी बहनों के खाते में पैसे डाल दिए जाते हैं, लेकिन कई बहने तो ऐसी हैं, जिनके सर्वे में अभी तक नाम भी नहीं जुड़ पाए हैं, ऐसे में कुपोषण कहां से खत्म मिलेगा.

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