श्योपुर। जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर सोई कला क्षेत्र के किसानों को कुछ ही साल में अमीर बनाने वाली अमरूद की फसल में इन दिनों रोग के कारण बर्बादी की कगार पर पहुंच गई है. हालात ऐसे हैं कि अमरूद के बगीचों के 70 प्रतिशत अमरूद भीतर से सरकर कीड़े पड़ने लगे हैं तो कई पेड़ भी पूरी तरह से सूख गए हैं. इस वजह से जयपुर, इंदौर, आगरा और दिल्ली जैसे महानगरों में सप्लाई होने वाले प्रसिद्ध बर्फानी किस्म के अमरूद इस बार पूरी तरह बर्बादी का शिकार हो रहे हैं.
किसान के माथे पर पड़ने लगे बल आपको बता दें कि सोई कला क्षेत्र में नंदपुरा ज्वालापुर गांव के आधा सैकड़ा किसान पिछले 10 वर्षों से लगभग 500 बीघा जमीन में अच्छी वैरायटी वाले अमरूद के बगीचे तैयार किए, जिन्हें तैयार करने में तीन वर्ष लगते हैं और 34 साल से अमरूद आना भी शुरू हो गए, जिसके बाद किसानों की सालाना आमदनी लाखों रुपए में होती है और दूसरी फसल से सिर्फ हजारों रुपए का ही मुनाफा ले पाते थे, इसे देखकर क्षेत्र के किसानों ने बड़ी तेजी से अमरूद के बगीचे लगाने का काम शुरू किया था, लेकिन वर्तमान में किसी रोग के कारण बगीचे के अमरूद अब बर्बाद होने की कगार पर पहुंच चुके हैं, उन्हें देखकर किसान खासे चिंतित नजर आ रहे हैं.
अज्ञात रोगिया कीड़ा लग जाने की वजह से बगीचों में लगे हुए अमरूद भीतर ही भीतर सड़ने लगे हैं, हालात ये हैं कि अमरूदों को खरीदने वाले ठेकेदार भी अब अमरूदों की हालत देखकर खरीदने से इंकार कर रहे हैं, जिससे किसान वर्ग भी पूरी तरह से बर्बाद होता हुआ नजर आ रहा है. अमरूद की खेती को लेकर किसान महेंद्र सिंह का कहना है कि हमारे क्षेत्र में लगभग पिछले 10 वर्ष से अमरूद की खेती की जा रही थी. लेकिन इस वर्ष अमरूद के बगीचों में रोग लग जाने की वजह से जो व्यापारी महानगरों से अमरूद खरीदने आते थे, वह अमरूद की हालत देखकर वापस लौट रहे हैं.
रोग के चलते अमरूद नहीं बिकने की वजह से यहां के अमरूद की खेती करने वाले किसान पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं. किसान लियाकत खान ने बताया कि अन्य फसलों की अपेक्षा इसमें लागत कम लगती है और मुनाफा अधिक होती है, इस वजह से इस क्षेत्र के किसानों ने अमरूद की खेती की थी, लेकिन इस वर्ष किसी रोग के कारण अमरूद अंदर ही अंदर सड़ने लगे हैं, जिससे व्यापारी इन्हें खरीद ही नहीं रहे हैं.