श्योपुर। बागी-बीहड़ के नाम से बदनाम चंबल का नाम सुनते ही लोगों के हलक सूख जाते थे. एक वक्त था, जब बंदूक की ठांय-ठांय सुन लोग अंदर तक कांप जाते थे. पर वक्त के साथ-साथ डकैतों के मन की कड़वाहट भी कम होती गई और एक-एक कर सैकड़ों डकैतों ने अहिंसा के रास्ते पर चलने का फैसला किया और प्रशासन के सामने हथियार डाल दिये. यही वजह है कि जिन डकैतों का नाम सुन कभी लोग खौफजदा हो जाते थे, वही अब मुसीबत में पूर्व डकैत रमेश सिंह सिकरवार को याद करते हैं.
75 से अधिक लोगों की हत्या कर चुके पूर्व दस्यू रमेश सिंह सिकरवार ने अब जिंदगी जीने का तरीका पूरी तरह से बदल लिया है. आज वे मुसीबत में ग्रामीणों के बीच किसी फरिश्ते की तरह मौजूद दिखाई पड़ते हैं. रमेश सिकरवार चंबल के सबसे कुख्यात डकैतों में से एक रहे हैं. जिनके ऊपर 75 से अधिक हत्या के मामले दर्ज थे. जिन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने कहने पर आत्मसमर्पण कर दिया था. जिसके बाद 12 साल की सजा काटने बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था. सरकार ने उन्हें और उनकी गैंग को 30-30 बीघा जमीन देने का वादा किया था. साथ ही आत्मरक्षा के लिए एक बंदूक रखने की भी इजाजत दी थी. अब रमेश सिंह सिकरवार गांव में खेती करते हैं. साथ ही खेत में बनी झोपड़ी में ही रहते हैं और आदिवासियों की मदद करते हैं. किसी भी प्रकार की समस्या होने पर लोग सबसे पहले उन्हें ही याद करते हैं.
रमेश सिंह सिकरवार के दस्यु बनने की कहानी भी बिल्कुल जुल्मी है, जिसके खिलाफ उन्होंने बंदूक उठाई थी, वह जब 7वीं में पढ़ते थे. तभी उनके चाचा ने उनके पिता को घर से निकाल दिया था. तब वे अपने चाचा से बदला लेने के लिए बागी बन गए थे. हालांकि, पुजारी के जीवनदान मांगने के बाद उन्होंने चाचा को तो नहीं मारा, लेकिन 75 से ज्यादा हत्या कर चुके हैं. उनका कहना है कि अगर प्रशासन और पुलिस ठीक तरीके से काम करे तो किसी को डकैत बनने की नौबत ही नहीं आएगी.