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दरियादिली को सलाम, बेसहारा हुए आंगनबाड़ी केन्द्र को अपने प्रधानमंत्री आवास में दिया आसरा - etv bharat special

श्योपुर जिले में एक आदिवासी परिवार ने दरियादिली की मिसाल पेश करते हुए अपना आवास आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों को दे दिया है.

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दरियादिली को सलाम
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Published : Dec 6, 2019, 2:20 PM IST

अच्छाई अमीरी या गरीबी देखकर नहीं आती,
मानवता कागज के टुकड़ों से खरीदी नहीं जाती।
जरा पूछो इस आंगनबाड़ी को आसरा देने वाले से,
दरियादिली हैसियत पूछकर नहीं आती।।

श्योपुर। दिल की दरियादिली हैसियत नहीं पूछती है, अगर आपके मन में किसी की मदद करने की इच्छा है तो गरीबी आपके आड़े कभी नहीं आती है. ऐसे ही दरियादिली की मिसाल पेश करते हुए एक गरीब आदिवासी परिवार ने खुद बेघर होकर आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों को आसरा दिया है. डांडा निवासी हरिराम आदिवासी ने आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों को प्रधानमंत्री आवास योजना में बने अपने घर में आसरा दिया है. पढ़िए ईटीवी भारत की खास पेशकश...

दरियादिली को सलाम

मामला जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर स्थित डांडा के सहराना आंगनबाड़ी केन्द्र का है. यहां भवन नहीं होने से साल भर पहले तक ये आंगनबाड़ी केंद्र किराए के भवन में संचालित किया जाता था. विभाग द्वारा कई महीनों तक आंगनबाड़ी केंद्र के भवन का किराया नहीं चुकाया गया, तो मकान मालिक ने भवन खाली करवा लिया. कार्यकर्ताओं को मजबूरन दो से तीन महीने तक खुले मैदान में पेड़ के नीचे आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित करना पड़ा. लेकिम जैसे ही गांव के हरिराम आदिवासी का पीएम आवास बनकर तैयार हुआ, तो उन्होंने दरियादिली दिखाते हुए अपना घर आंगनबाड़ी केन्द्र के लिए दे दिया.

आंगनबाड़ी केंद्र का समय होते ही हरिराम आदिवासी का परिवार अपने कामकाज पर चला जाता है और आंगनबाड़ी का समय पूरा होते ही वापस लौट आता है. जिससे न तो हरिराम के परिवार को रात खुले आसमान के नीचे गुजारनी पड़ती है और न ही आंगनबाड़ी के बच्चों को खुले में बैठना पड़ता है. ऐसा बीते 9 महीनों से हो रहा है. बावजूद इसके हरिराम ने अपनी समस्या कभी किसी के सामने बयां नहीं की. हालांकि अब महिला एवं बाल विकास विभाग भवन के किराए के तौर पर एक हजार रुपए महीना दे रहे हैं, जो कभी 4 महीने में तो कभी 6 महीने में मिलते हैं.

आज के समय में देखा जाता है कि लोग सफर के दौरान अपनी सीट तक किसी के लिए नहीं छोड़ते, ऐसे में हरिराम ने आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों की खातिर अपना पीएम आवास दे दिया. हरिराम आदिवासी का कहना है कि बच्चों की परेशानी को देखते हुए उन्होंने अपना घर आंगनबाड़ी केंद्र के लिए दे दिया. उसे कोई लालच नहीं था, लेकिन अब विभाग किराया दे रहा है. दिन में आंगनबाड़ी चलती है, ऐसे में घर के सभी सदस्य घर से बाहर ही रहते हैं. वहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का कहना है कि बीते 9 महीने से प्रधानमंत्री आवास योजना में मिले हरिराम के घर में ही आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित हो रहा है.

इंसानियत के खातिर हरिराम का परिवार दिन भर अपना आवास खाली कर सड़क पर पहुंच जाता है, लेकिन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने आंगनबाड़ी भवन को लेकर अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है.

अच्छाई अमीरी या गरीबी देखकर नहीं आती,
मानवता कागज के टुकड़ों से खरीदी नहीं जाती।
जरा पूछो इस आंगनबाड़ी को आसरा देने वाले से,
दरियादिली हैसियत पूछकर नहीं आती।।

श्योपुर। दिल की दरियादिली हैसियत नहीं पूछती है, अगर आपके मन में किसी की मदद करने की इच्छा है तो गरीबी आपके आड़े कभी नहीं आती है. ऐसे ही दरियादिली की मिसाल पेश करते हुए एक गरीब आदिवासी परिवार ने खुद बेघर होकर आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों को आसरा दिया है. डांडा निवासी हरिराम आदिवासी ने आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों को प्रधानमंत्री आवास योजना में बने अपने घर में आसरा दिया है. पढ़िए ईटीवी भारत की खास पेशकश...

दरियादिली को सलाम

मामला जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर स्थित डांडा के सहराना आंगनबाड़ी केन्द्र का है. यहां भवन नहीं होने से साल भर पहले तक ये आंगनबाड़ी केंद्र किराए के भवन में संचालित किया जाता था. विभाग द्वारा कई महीनों तक आंगनबाड़ी केंद्र के भवन का किराया नहीं चुकाया गया, तो मकान मालिक ने भवन खाली करवा लिया. कार्यकर्ताओं को मजबूरन दो से तीन महीने तक खुले मैदान में पेड़ के नीचे आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित करना पड़ा. लेकिम जैसे ही गांव के हरिराम आदिवासी का पीएम आवास बनकर तैयार हुआ, तो उन्होंने दरियादिली दिखाते हुए अपना घर आंगनबाड़ी केन्द्र के लिए दे दिया.

आंगनबाड़ी केंद्र का समय होते ही हरिराम आदिवासी का परिवार अपने कामकाज पर चला जाता है और आंगनबाड़ी का समय पूरा होते ही वापस लौट आता है. जिससे न तो हरिराम के परिवार को रात खुले आसमान के नीचे गुजारनी पड़ती है और न ही आंगनबाड़ी के बच्चों को खुले में बैठना पड़ता है. ऐसा बीते 9 महीनों से हो रहा है. बावजूद इसके हरिराम ने अपनी समस्या कभी किसी के सामने बयां नहीं की. हालांकि अब महिला एवं बाल विकास विभाग भवन के किराए के तौर पर एक हजार रुपए महीना दे रहे हैं, जो कभी 4 महीने में तो कभी 6 महीने में मिलते हैं.

आज के समय में देखा जाता है कि लोग सफर के दौरान अपनी सीट तक किसी के लिए नहीं छोड़ते, ऐसे में हरिराम ने आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों की खातिर अपना पीएम आवास दे दिया. हरिराम आदिवासी का कहना है कि बच्चों की परेशानी को देखते हुए उन्होंने अपना घर आंगनबाड़ी केंद्र के लिए दे दिया. उसे कोई लालच नहीं था, लेकिन अब विभाग किराया दे रहा है. दिन में आंगनबाड़ी चलती है, ऐसे में घर के सभी सदस्य घर से बाहर ही रहते हैं. वहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का कहना है कि बीते 9 महीने से प्रधानमंत्री आवास योजना में मिले हरिराम के घर में ही आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित हो रहा है.

इंसानियत के खातिर हरिराम का परिवार दिन भर अपना आवास खाली कर सड़क पर पहुंच जाता है, लेकिन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने आंगनबाड़ी भवन को लेकर अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है.

Intro:एंकर
श्योपुर- मानवता की खातिर एक गरीब आदिवासी परिवार ने बेघर हुई आंगनबाडी के संचालन के लिए बीते 09 महीनों से दिन भर के लिए खुद का पीएम आवास दे रखा है। इस आवास में दिन के समय आंगनबाडी संचालित की जाती है और रात होने पर यह परिवार वहां रहने पहुंच जाता है। जिससे आंगनबाडी भी खुले में नहीं चल रही और नहीं इस परिवार को बेघर होना पड़ा है। क्या है पूरा मामला देखिए यह खास रिपोर्ट...

Body:वीओ-1
मामला जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर स्थित डांडा का सहराना आंगनबाडी केन्द्र का है जहां आंगनबाडी भवन नहीं होने की वजह से साल भर पहले तक यह आंगनबाडी किराए के भवन में संचालित की जाती थी। लेकिन विभाग द्वारा कई महीनों तक आंगनबाडी भवन का किराया नहीं चुकाया तो भवन मालिक ने अपना भवन खाली करवा लिया। जिससे यह आंगनबाडी बेघर हो गई। मजबूर आंगनबाडी कार्यकर्ता को दो से तीन महीने तक खुले मैदान में खडे एक पेड़ के नीचे यह आंगनबाडी केन्द्र संचालित करना पड़ा। लेकिन जैसे ही इस गांव के हरिराम आदिवासी का पीएम आवास बनकर तैयार हुआ तो उसने बच्चों की परेशानी को देखते हुए दरियादिली दिखाई और अपना पीएम आवास आंगनबाडी केन्द्र के संचालन के लिए दे दिया। तब से आंगनबाडी का समय होते ही हरिराम आदिवासी का परिवार आवास खाली करके सड़क पर पहुंच जाता है और जब आंगनबाडी का समय पूरा हो जाता है तो फिर वह अपने आवास में बापस लौट आते है। जिससे न तो हरिराम के परिवार को रात खुले आसमान के नीचे गुजारनी पड़ती है और नहीं आंगनबाडी केन्द्र का संचालन खुले आसमान में होता है। यह हालात आज कल से नहीं बल्कि बीते 09 महीनों से बने हुए है। लेकिन हरिराम ने कभी भी अपनी और अपने परिवार की परेशानी तक बयां नहीं की है और आंगनबाडी केन्द्र का संचालन इस गरीब के आवास में ही हो रहा है। हालांकि अव महिला एवं बाल विकास विभाग भवन के किराए के तौर पर हरिराम को 1 हजार रुपए महीना दे रहे है जो कभी 4 महीने में तो कभी 6 महीने में उसे मिलने लगे है।

वीओ-2
आज के समय में देखा जाता है कि ज्यादातर लोग सफर के दौरान अपनी सीट तक किसी और को बैठने के लिए नहीं देते। लेकिन इस गरीब परिवार की सोच देखिए कि उसने आंगनबाडी के बच्चों की खातिर अपना पीएम आवास आंगनबाडी के लिए दे रखा है। जिसके लिए उसे ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार को सड़क पर बैठकर दिन गुजारना पड़ता है। अपना पीएम आवास आंगनबाडी केन्द्र के संचालन के लिए देने वाले ग्रामीण हरिराम आदिवासी का कहना है कि बच्चों की परेशानी को देखते हुए उसने यह कदम उठाया, उसे कोई लालच नहीं था, लेकिन अब विभाग किराया दे रहा है। लेकिन वह यह परेशानी किराए के लिए नहीं बल्कि बच्चों की परेशानी को देखते हुए उठा रहे है। आंगनबाडी कार्यकर्ता का कहना है कि यह आंगनबाडी केन्द्र बीते 09 महीने से इसी पीएम आवास में संचालित किया जा रहा है। विभाग द्वारा बाद में इन्हे किराया दिया जाने लगा है। लेकिन यह मदद नहीं करते तो खुले में ही आंगनबाडी संचालित हो रही थी।

Conclusion:
वीओ-3
इंसानियत की खातिर यह आदिवासी परिवार तो दिन भर अपना आवास खाली करके सड़क पर पहुंच जाता है। लेकिन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा इस गांव में आंगनबाडी भवन संचालित किए जाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। जिससे इस परिवार को बीते 09 महीने से दिन के समय बेघर होना पड़ रहा है। इस वारे में जिले के महिला बाल विकास विभाग अधिकारी ओपी पांडे से कई वार बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी है। ....
बाइट
हरिराम आदिवासी ग्रामीण
चंद्रकांता आदिवासी आंगनबाडी कार्यकर्ता डांडा का सहराना

अमित शर्मा etv bharat श्योपुर
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