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प्रदेश के कई जिलों में रक्षाबंधन से दीपावली तक होता है हीड गायन, जाने क्या है इसका इतिहास

मालवा क्षेत्र के कई जिलों में दीपावली से लेकर रक्षाबंधन तकहीड गायन का आयोजन किया जाता है. जिसमें रात में सभी ग्रामीण वीरता की कथाओं को गाते हैं.

हीड गायन करते ग्रामीण
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Published : Oct 25, 2019, 9:12 AM IST

Updated : Oct 25, 2019, 10:07 AM IST

शाजापुर। देश में कई प्रकार की परंपराएं और पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनको लेकर लोगों में त्योहार के समय जबरदस्त उत्साह देखने मिलता है. मालवा क्षेत्र में दीपावली के समय एक गान होता है जिसे 'हीड गायन' कहा जाता है.

हीड गायन करते ग्रामीण


हीड गायन का इतिहास

ग्रामीणों का कहना है कि हीड गायन की शैली काफी प्राचीन है, इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं. जब 24 भाई बगड़ावत भाई गायों को चराने जाते थे. वो सभी काफी वीर थे. राजा से विवाद के बाद सभी भाईयों की मौत हो गई. जिसके बाद से उनके वीरता की कहानी अलग-अलग गाई जाती है.


मालवा के इन क्षेत्रों में होता है गायन

रक्षाबंधन से दीपावली तक चलने वाला यह गायन प्रदेश के कई जिलों में होता है. हीड गायन उज्जैन, देवास, शाजापुर, रतलाम, राजगढ़, खंडवा, खरगोन और आसपास के सभी जिलों के गांवों में आज भी एक परंपरा के रूप में मनाया जाता है. जिसमें रात में गांव के सभी लोग बैठकर गायन करते हैं.

शाजापुर। देश में कई प्रकार की परंपराएं और पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनको लेकर लोगों में त्योहार के समय जबरदस्त उत्साह देखने मिलता है. मालवा क्षेत्र में दीपावली के समय एक गान होता है जिसे 'हीड गायन' कहा जाता है.

हीड गायन करते ग्रामीण


हीड गायन का इतिहास

ग्रामीणों का कहना है कि हीड गायन की शैली काफी प्राचीन है, इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं. जब 24 भाई बगड़ावत भाई गायों को चराने जाते थे. वो सभी काफी वीर थे. राजा से विवाद के बाद सभी भाईयों की मौत हो गई. जिसके बाद से उनके वीरता की कहानी अलग-अलग गाई जाती है.


मालवा के इन क्षेत्रों में होता है गायन

रक्षाबंधन से दीपावली तक चलने वाला यह गायन प्रदेश के कई जिलों में होता है. हीड गायन उज्जैन, देवास, शाजापुर, रतलाम, राजगढ़, खंडवा, खरगोन और आसपास के सभी जिलों के गांवों में आज भी एक परंपरा के रूप में मनाया जाता है. जिसमें रात में गांव के सभी लोग बैठकर गायन करते हैं.

Intro:शाजापुर। मालवा प्रांत में रक्षाबंधन के बाद से शुरू होकर हिड गायन की एक परंपरागत शैली है जो दीपावली तक चलती है. इसमें 24 बगड़ावत भाइयों की वीरता की कहानी है, जो गायों को समर्पित है.Body:




हमारे देश में कई प्रकार की परंपरा एवं प्रथाएं प्रचलित है .मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में एक अनूठी परंपरा दीपावली के समय देखने को मिलती है
जिसे हम हिड गायन की एक परंपरागत शैली के रूप में जानते हैं.
यह हीड गायन उज्जैन ,देवास ,शाजापुर रतलाम राजगढ़ ,खंडवा ,खरगोन और आसपास के सभी जिलों के गांव में आज भी एक परंपरा के रूप में जीवित है. गांव में दिन भर के कामकाज से फुर्सत मिलने के बाद रात्रि में यह हीड गायन दीपावली के समय किया जाता है.

आज हमने शाजापुर के गांव पतोली में लोगों से हिड गायन की शैली के बारे में जाना और उसको सुना भी.
गांव के लोगों ने बताया की हीड गायन की शैली काफी प्राचीन है और इसके पीछे एक मान्यता और कथा भी हैं.
बहुत पुरानी बात है जब 24 बगड़ावत भाई गायों को चराने जाते थे और वह काफी वीर थे.
राजा से विवाद होने के बाद उन भाइयों की मृत्यु हो गई तब से लेकर आज तक उनकी वीरता की कहानी को हिड गायन के रूप में गाया जाता है.
हीड गायन में 24 भाइयों की अलग-अलग 24 कथाएं हैं जो गायन शैली के रूप में मालवा प्रांत में प्रचलित है.

रक्षाबंधन की बाल हिड गायन गांव में शुरू हो जाता है और यह गायन दीपावली तक चलता है. दीपावली के दिन दिन भर हीड गायन होता है और देर रात तक चलता है .जिसने बच्चे बूढ़े जवान सभी भाग लेते हैं.
Conclusion:




हिड गायन की एक ऐसी शैली है जो सुनने में काफी रोचक है लेकिन यह 24 वीर बगड़ावत भाइयों की कहानी है जो एक आख्यान के रूप में गाय जाती है.



बाइट _भगवान सिंह बुजुर्ग
बाइट _दरबार सिंह भगवा कुर्ता
Last Updated : Oct 25, 2019, 10:07 AM IST
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