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मालवा अंचल में दीपावली से एक दिन पहले 'जल्लीकट्टू' का होता है विशेष आयोजन

दीपावली से पहले मालवा अंचल में धनतेरस के दूसरे दिन 'छेड़ा' खेला जाता है. जिसे कहीं-कहीं छाबड़ा के नाम से भी जाना जाता है.

मालवा का जल्लीकट्टू
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Published : Oct 23, 2019, 9:25 PM IST

Updated : Oct 24, 2019, 2:19 AM IST

शाजापुर। दीपोत्सव के नजदीक आते ही मालवा क्षेत्र में कई प्रथाएं और मान्यताएं देखने को मिलती हैं. ऐसी ही एक प्रथा है 'छेड़ा', जिसे मालवा का जल्लीकट्टू भी कह सकते हैं. ये प्रथा ग्रामीण इलाकों में खूब प्रचलित है. जिसके तहत धनतेरस के दिन गाय-बैलों को नहलाकर उन्हें मेंहदी लगाई जाती है. जिसके बाद अगले दिन इन गाय-बैलों को एक खूंटे से बांधकर लोग घास का डंडे का गुच्छा बनाकर उसे छेड़ते हैं. इसी के चलते इसे छेड़ा कहा जाता है.

मालवा का जल्लीकट्टू

ग्रामीण इस प्रथा को खेल का नाम देते हैं. गिरवर गांव के ग्रामीणों ने बताया कि ये परंपरा कई दशकों से चली आ रही है. गांव में ही रहने वाले लाल सिंह बताते हैं कि दीपावली के पहले पूरे मालवा में छेड़ा मनाया जाता है. बस कहीं-कहीं इसका नाम बदल जाता है. कुछ लोग इसे छेड़ा कहते हैं तो कुछ छाबड़ा. इस खेल में बच्चे, बूढ़े, जवान सब शामिल होकर सुबह से लेकर शाम तक इस खेल का आनंद लेते हैं.

हालांकि, ये खेल क्यों आयोजित किया जाता है, इसका जवाब ग्रामीणों के पास नहीं है. उनका कहना है कि ये खेल कई पीढ़ियों से होता आ रहा है. अब इसे परंपरा कहें या लोगों का विश्ववास या मनोरंजन का साधन, लेकिन एक बात तो है कि इस खेल में हादसे की आशंका हमेशा बनी रहती है.

शाजापुर। दीपोत्सव के नजदीक आते ही मालवा क्षेत्र में कई प्रथाएं और मान्यताएं देखने को मिलती हैं. ऐसी ही एक प्रथा है 'छेड़ा', जिसे मालवा का जल्लीकट्टू भी कह सकते हैं. ये प्रथा ग्रामीण इलाकों में खूब प्रचलित है. जिसके तहत धनतेरस के दिन गाय-बैलों को नहलाकर उन्हें मेंहदी लगाई जाती है. जिसके बाद अगले दिन इन गाय-बैलों को एक खूंटे से बांधकर लोग घास का डंडे का गुच्छा बनाकर उसे छेड़ते हैं. इसी के चलते इसे छेड़ा कहा जाता है.

मालवा का जल्लीकट्टू

ग्रामीण इस प्रथा को खेल का नाम देते हैं. गिरवर गांव के ग्रामीणों ने बताया कि ये परंपरा कई दशकों से चली आ रही है. गांव में ही रहने वाले लाल सिंह बताते हैं कि दीपावली के पहले पूरे मालवा में छेड़ा मनाया जाता है. बस कहीं-कहीं इसका नाम बदल जाता है. कुछ लोग इसे छेड़ा कहते हैं तो कुछ छाबड़ा. इस खेल में बच्चे, बूढ़े, जवान सब शामिल होकर सुबह से लेकर शाम तक इस खेल का आनंद लेते हैं.

हालांकि, ये खेल क्यों आयोजित किया जाता है, इसका जवाब ग्रामीणों के पास नहीं है. उनका कहना है कि ये खेल कई पीढ़ियों से होता आ रहा है. अब इसे परंपरा कहें या लोगों का विश्ववास या मनोरंजन का साधन, लेकिन एक बात तो है कि इस खेल में हादसे की आशंका हमेशा बनी रहती है.

Intro:शाजापुर ।शहर के आसपास के गांव के अलावा पूरे मालवा प्रांत ने छेड़ा खिलाने की विशेष परंपरा का निर्वहन किया जाता है. जिसमें बैलों और गायों का श्रृंगार कर बच्चे, बूढ़े जवान सभी छेड़ा खेल का आनंद उठाते हैं.Body:





मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में दीपावली के समय एक विशेष प्रकार की परंपरा या खेल का आयोजन किया जाता है.
इस प्रकार का खेल दीपावली के अवसर पर मालवा के सभी गांव में देखने को मिलता है.

शाजापुर शहर के आस-पास के गांव में भी इस प्रकार की परंपरा देखने को मिलती है .आज हमने शहर के गिरवर गांव में लोगों से इस संबंध में बातचीत की तो उन्होंने बताया की यह परंपरा चार पांच पीढ़ी से चली आ रही है.

दीपावली के कुछ दिन पूर्व घर के जानवरों को खासकर गाय और बैल को नहलाया जाता है उनको मेहंदी लगाई जाती है और दीपावली के दिन विशेष प्रकार का श्रृंगार किया जाता है.
उसके बाद गांव के लोग एक लकड़ी के डंडे में कुछ घास के ऊपर चमड़े को लपेटते हैं .
इसको कहीं पर छेड़ा तो कहीं पर छाबड़ा नाम दिया गया है. वैसे इस पूरे खेल का नाम छेड़ा या छाबड़ा होता है.

इस खेल में बच्चे ,बूढ़े ,जवान और महिला है सभी शामिल होकर सुबह से लेकर शाम तक इस खेल का आनंद लेते हैं.

इस खेल में पुरुष वर्ग शराब का सेवन कर दिनभर हीड गाकर इस खेल को खेलते हैं.

इस खेल में लकड़ी के डंडे में बंधी घास के ऊपर चमड़ा जिसे छाबड़ा कहते हैं या छेड़ा कहते हैं. बार-बार गाय,बेल के सामने ले जाकर अड़ा दिया जाता है. उसके बाद वह जानवर गुस्से में आकर उसको पीछे धकेलते है.
यह प्रक्रिया बार-बार चलती रहती है इसमें लोग काफी आनंद महसूस करते हैं.

इस प्रकार की परंपरा के पीछे क्या वजह है और यह परंपरा का निर्वाहन कब से किया जा रहा है इसके बारे में लोगों को कम ही पता है.

लेकिन लोगों को इतना पता है कि इस परंपरा का निर्वाहन करते करते 4 से 5 पीढ़ियां बीत गई.

लेकिन इस परंपरा का निर्वाहन क्यों करते हैं इस बात का जवाब उनके पास नहीं है.

इस खेल को देखकर ऐसा लगता है कि भारत देश की सारी परंपराएं मालवा के गांवो में आकर सिमट गई हो.Conclusion:


परंपराओं के इस देश में एक ऐसी भी परंपरा है जिसमें घर के पालतू जानवर गाय और बैलों का श्रंगार कर दीपावली के समय छेड़ा खिलाने की परंपरा है.


बाइट। लाल सिंह ग्रामीण
Last Updated : Oct 24, 2019, 2:19 AM IST
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