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पर्यावरण को बचाने बिंदू ने उठाया बीड़ा, बना रहीं माटी के गणेश

शाजापुर जिले में मिट्टी के गणेश जी बनाने वाली बिंदू लोगों के लिए मिशाल बनी हुआ है. इटीवी भारत से बात करते हुए बिंदू ने बताया कि उनका उद्देश्य मिट्टी के गणेश जी बनाकर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरुक करने का है.

Bindu took the initiative to save the environment in shajapur
मिट्टी से कर रही गौरीपुत्र का सृजन
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Published : Aug 20, 2020, 4:39 PM IST

Updated : Aug 20, 2020, 5:01 PM IST

शाजापुर। आगामी 22 अगस्त से पूरे देश में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाएगा. हालांकि इस बार कोरोना काल के चलते इस त्योहर की रंगत कम देखने को मिलेगी. वहीं इस बार शाजापुर जिले में पीओपी की जगह मिट्टी के गणेश बनाए जा रहे हैं, जो आने आने वाली गणेश चतुर्थी पर हमारे घरों की शोभा बढ़ाएंगे. स्थानीय निवासी बिंदू ठोमरे ने इस बार पर्यावरण बचाने के उद्देश्य से मिट्टी के गौरी पुत्र बनाने का बीड़ा उठाया है. बिंदू खुद तो मिट्टी के गणेश बना ही रह है, साथ ही दूसरों को भी मिट्टी के गणेश निशुल्क बनाना सिखा रही है.

ईटीवी भारत से चर्चा करते हुए बिंदू ने बताया कि मैं अपने परिवार के साथ करीब 4 साल पहले विसर्जन स्थल पर गई थी. जहां पर विसर्जन होने के लिए आई अधिकांश मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी हुई थी. कुछ दिन बाद मैं फिर उस जगह पहुंची, लेकिन वहां का नजारा देखकर मेरा दिल पसीज गया. विसर्जित की गई अधिकांश मूर्तियां उसी हाल में वहां जीर्ण-शीर्ण पड़ी हुई थी. इससे मेरी धार्मिक भावना भी आहत हुई, साथ ही पर्यावरण के साथ हो रहे खिलवाड़ को भी मैंने करीब से देखा. तभी मैंने प्रण लिया कि पहले मैं खूद बदलूंगी, इसके बाद दूसरों को बदलने का प्रयास करुंगी.

2 साल तक घर में बनाई प्रतिमा

बिंदू ने बताया कि शुरुआत के दो साल मैंने घर पर ही मिट्टी के गणेश जी बनाए. 10 दिन तक उनका विधिवत पूजन-अर्चन करने के बाद चतुर्दशी पर गमले में उनका विसर्जन किया. इससे मुझे दो तरह के फायदे हुए. पहला महंगे दाम पर पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली पीओपी की प्रतिमा खरीदना नहीं पड़ी और दूसरा विसर्जन स्थल पर प्रतिमाओं की दुर्दशा नहीं देखना पड़ी. जिससे मेरी धार्मिक भावना भी आहत नहीं हुई.

फूड कलर से रंगती हैं प्रतिमा

बिंदू ने बताया कि उनके द्वारा प्रतिमाओं का निशुल्क वितरण किया जाता है. लेकिन, वे प्रतिमा लेने वाले से एक संकल्प जरूर लेती हैं कि वे जिस भी गमले या स्थान पर इस प्रतिमा का विसर्जन करेंगे, वहां एक पौधा भी जरूर लगाएंगे. इससे प्रतिमा के अंदर रखे बीज के साथ-साथ रोपा गया पौधा भी अंकुरित होगा. बिंदू ने बताती हैं कि ईकोफ्रेंडली गणेश बनाने के लिए वे किसी भी तरह के आर्टिफिशियल कलर का प्रयोग नहीं करतीं. बल्कि फूड कलर से मिट्टी के गणेश जी का रंगरोगन करती हैं. इससे पर्यावरण को हानी नहीं पहुंचती है. इस तरह से ये प्रतिमाएं नाममात्र की लागत में तैयार हो जाती हैं और प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में कारगर साबित होती हैं.


बीते साल स्कूल-कॉलेजों में दिया प्रशिक्षण

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही बिंदू ने बताया कि मैं तो घर में मिट्टी के गणेश जी बना रही थी और उनका गमले में विसर्जन कर रही थी. लेकिन, दूसरे लोग अभी भी पीओपी से बनी मूर्तियों को विसर्जित कर पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहे थे. इसे रोकने के लिए मैंने पिछले साल घर से बाहर निकलकर स्कूल और कॉलेजों में पढऩे वाले बच्चों को भी मिट्टी के गणेश बनाने के लिए प्रेरित किया. यहां वर्कशॉप आयोजित कर मैंने विद्यार्थियों के साथ-साथ स्टाफ सदस्यों को भी मिट्टी के गणेश बनाना सिखाया. अब यह काम पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ मेरी हॉबी भी बन चुका है.

कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास

कोरोना काल के चलते इस बार स्कूल-कॉलेज बंद हैं. सामाजिक दूरियां बनाकर रखना है. इसके लिए मैंने इस बार ऑनलाईन क्लास लेकर अपने अभियान को जारी रखा. दिन में करीब 3 घंटे की ऑनलाईन क्लास लेकर मैं लोगों को मिट्टी के गणेश बनाना सिखा रही हूं. खास बात यह है कि इस काम के लिए बिंदू ने प्रशिक्षणार्थियों से कोई शुल्क नहीं लिया. बिंदू ने बताया कि पिछले चार सालों में मैंने करीब एक हजार लोगों को मिट्टी के गणेश बनाना सिखाए हैं. मैंने जिन लोगों को इस अभियान से जोड़ा, वे लोग स्वप्रेरणा से इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए दूसरों को मिट्टी के गणेश बनाना सिखा रहे हैं. पर्यावरण संरक्षण का यह अभियान अब चैन के रूप में काम कर रहा है.

गणेश प्रतिमा के लगेंगे स्टॉल

बिंदू ने बताया कि मैं इस बार सेवा भारती ग्रुप के साथ जुड़ी हूं, ग्रुप की महिलाओं को मैंने मिट्टी से गणेश जी बनाना सिखाया है. इन महिलाओं ने मिट्टी के गणेश जी बना लिए हैं. अब ये महिलाएं और उनके परिवार के सदस्य स्टॉल लगाकर प्रतिमाओं का विक्रय करेंगे. पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ बिंदू पौधरोपण को भी बड़ा महत्व देती हैं. यही कारण है कि बिंदू और उनकी टीम ने जिन गणेश प्रतिमाओं का निर्माण किया है, उनमें फूल वाले पौधों के बीज डाले हैं. इसके पीछे बिंदू का मानना है कि लोग जहां भी इन प्रतिमाओं का विसर्जन करेंगे, वहां प्रतिमा के अंदर रखे बीज अंकुरित होंगे और आने वाले समय में सुंदर पौधे से विशाल पेड़ बनेंगे.

शाजापुर। आगामी 22 अगस्त से पूरे देश में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाएगा. हालांकि इस बार कोरोना काल के चलते इस त्योहर की रंगत कम देखने को मिलेगी. वहीं इस बार शाजापुर जिले में पीओपी की जगह मिट्टी के गणेश बनाए जा रहे हैं, जो आने आने वाली गणेश चतुर्थी पर हमारे घरों की शोभा बढ़ाएंगे. स्थानीय निवासी बिंदू ठोमरे ने इस बार पर्यावरण बचाने के उद्देश्य से मिट्टी के गौरी पुत्र बनाने का बीड़ा उठाया है. बिंदू खुद तो मिट्टी के गणेश बना ही रह है, साथ ही दूसरों को भी मिट्टी के गणेश निशुल्क बनाना सिखा रही है.

ईटीवी भारत से चर्चा करते हुए बिंदू ने बताया कि मैं अपने परिवार के साथ करीब 4 साल पहले विसर्जन स्थल पर गई थी. जहां पर विसर्जन होने के लिए आई अधिकांश मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी हुई थी. कुछ दिन बाद मैं फिर उस जगह पहुंची, लेकिन वहां का नजारा देखकर मेरा दिल पसीज गया. विसर्जित की गई अधिकांश मूर्तियां उसी हाल में वहां जीर्ण-शीर्ण पड़ी हुई थी. इससे मेरी धार्मिक भावना भी आहत हुई, साथ ही पर्यावरण के साथ हो रहे खिलवाड़ को भी मैंने करीब से देखा. तभी मैंने प्रण लिया कि पहले मैं खूद बदलूंगी, इसके बाद दूसरों को बदलने का प्रयास करुंगी.

2 साल तक घर में बनाई प्रतिमा

बिंदू ने बताया कि शुरुआत के दो साल मैंने घर पर ही मिट्टी के गणेश जी बनाए. 10 दिन तक उनका विधिवत पूजन-अर्चन करने के बाद चतुर्दशी पर गमले में उनका विसर्जन किया. इससे मुझे दो तरह के फायदे हुए. पहला महंगे दाम पर पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली पीओपी की प्रतिमा खरीदना नहीं पड़ी और दूसरा विसर्जन स्थल पर प्रतिमाओं की दुर्दशा नहीं देखना पड़ी. जिससे मेरी धार्मिक भावना भी आहत नहीं हुई.

फूड कलर से रंगती हैं प्रतिमा

बिंदू ने बताया कि उनके द्वारा प्रतिमाओं का निशुल्क वितरण किया जाता है. लेकिन, वे प्रतिमा लेने वाले से एक संकल्प जरूर लेती हैं कि वे जिस भी गमले या स्थान पर इस प्रतिमा का विसर्जन करेंगे, वहां एक पौधा भी जरूर लगाएंगे. इससे प्रतिमा के अंदर रखे बीज के साथ-साथ रोपा गया पौधा भी अंकुरित होगा. बिंदू ने बताती हैं कि ईकोफ्रेंडली गणेश बनाने के लिए वे किसी भी तरह के आर्टिफिशियल कलर का प्रयोग नहीं करतीं. बल्कि फूड कलर से मिट्टी के गणेश जी का रंगरोगन करती हैं. इससे पर्यावरण को हानी नहीं पहुंचती है. इस तरह से ये प्रतिमाएं नाममात्र की लागत में तैयार हो जाती हैं और प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में कारगर साबित होती हैं.


बीते साल स्कूल-कॉलेजों में दिया प्रशिक्षण

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही बिंदू ने बताया कि मैं तो घर में मिट्टी के गणेश जी बना रही थी और उनका गमले में विसर्जन कर रही थी. लेकिन, दूसरे लोग अभी भी पीओपी से बनी मूर्तियों को विसर्जित कर पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहे थे. इसे रोकने के लिए मैंने पिछले साल घर से बाहर निकलकर स्कूल और कॉलेजों में पढऩे वाले बच्चों को भी मिट्टी के गणेश बनाने के लिए प्रेरित किया. यहां वर्कशॉप आयोजित कर मैंने विद्यार्थियों के साथ-साथ स्टाफ सदस्यों को भी मिट्टी के गणेश बनाना सिखाया. अब यह काम पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ मेरी हॉबी भी बन चुका है.

कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास

कोरोना काल के चलते इस बार स्कूल-कॉलेज बंद हैं. सामाजिक दूरियां बनाकर रखना है. इसके लिए मैंने इस बार ऑनलाईन क्लास लेकर अपने अभियान को जारी रखा. दिन में करीब 3 घंटे की ऑनलाईन क्लास लेकर मैं लोगों को मिट्टी के गणेश बनाना सिखा रही हूं. खास बात यह है कि इस काम के लिए बिंदू ने प्रशिक्षणार्थियों से कोई शुल्क नहीं लिया. बिंदू ने बताया कि पिछले चार सालों में मैंने करीब एक हजार लोगों को मिट्टी के गणेश बनाना सिखाए हैं. मैंने जिन लोगों को इस अभियान से जोड़ा, वे लोग स्वप्रेरणा से इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए दूसरों को मिट्टी के गणेश बनाना सिखा रहे हैं. पर्यावरण संरक्षण का यह अभियान अब चैन के रूप में काम कर रहा है.

गणेश प्रतिमा के लगेंगे स्टॉल

बिंदू ने बताया कि मैं इस बार सेवा भारती ग्रुप के साथ जुड़ी हूं, ग्रुप की महिलाओं को मैंने मिट्टी से गणेश जी बनाना सिखाया है. इन महिलाओं ने मिट्टी के गणेश जी बना लिए हैं. अब ये महिलाएं और उनके परिवार के सदस्य स्टॉल लगाकर प्रतिमाओं का विक्रय करेंगे. पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ बिंदू पौधरोपण को भी बड़ा महत्व देती हैं. यही कारण है कि बिंदू और उनकी टीम ने जिन गणेश प्रतिमाओं का निर्माण किया है, उनमें फूल वाले पौधों के बीज डाले हैं. इसके पीछे बिंदू का मानना है कि लोग जहां भी इन प्रतिमाओं का विसर्जन करेंगे, वहां प्रतिमा के अंदर रखे बीज अंकुरित होंगे और आने वाले समय में सुंदर पौधे से विशाल पेड़ बनेंगे.

Last Updated : Aug 20, 2020, 5:01 PM IST
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