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16 दिवसीय श्राद्धपक्ष में निभाई जा रही प्राचीन परंपरा, बेटियों ने की संझा बाई पूजा - 16 Day Shraddha Paksha

मालवांचल के शाजापुर जिले में संझा बाई की पूजा अर्चना की परंपरा वर्षों पुरानी है. मान्यता है कि संजा बाई के रूप में श्राद्ध के 16 दिनों तक अलग-अलग प्रतिमाओं को बनाया जाता है. जिनकी पूजा अर्चना की जाती है. संझा बाई की पूजा अर्चना कुंवारी लड़कियां मनवांछित वर पाने के लिए करती हैं.

Shajapur
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Published : Sep 16, 2020, 1:46 PM IST

शाजापुर। 16 दिवसीय श्राद्धपक्ष के दौरान पाटला पूनम (पूर्णिमा) से संझा बाई का भी पूजन शुरू हो जाता है. शहर सहित अंचलों में संझा बाई का पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है. वैसे तो अधिकांश स्थानों पर बाजार में मिलने वाले संझा बाई के फोटो को दीवार पर चिपकाकर उसकी आरती करती की जाती है, लेकिन शहर सहित ग्रामीण अंचलों में कई लोग ऐसे भी हैं, जो आज भी प्राचीन परंपरा को जीवित रखे हुए हैं.

इसी क्रम में शहर के भावसार मोहल्ला में महिलाओं एवं युवतियों सहित छोटी-छोटी बालिकाओं द्वारा श्राद्धपक्ष के पहले दिन से ही दीवार पर गोबर और फूलों की मदद से संझा बाई बनाकर उसका पूजन किया जा रहा है. शाम होते ही बालिकाएं एकत्रित होकर संझा बाई के मालवी भाषा में प्रचलित गीत गाती है. क्षेत्र की महिलाएं भी इस कार्य में बालिकाओं के साथ रहती है.

महिलाओं ने बताया कि पुरानी पंरपरा से नई पीढ़ी अवगत हो इसके चलते गोबर की संझा का निर्माण किया गया, 10 दिन प्रतिदिन के हिसाब से गोबर की अलग-अलग आकृतियां संझा बाई पर बनाई गई, इसके बाद 11वें दिन किलाकोट का निर्माण करते हुए सभी आकृतियों को एक साथ संझाबाई में बनाया गया. सर्वपितृमोक्ष अमावस्या पर संझा बाई का पर्व संपन्न होगा. इसके बाद संझा बाई को दीवार से निकालकर जलस्रोतों में प्रवाहित किया जाएगा.

शाजापुर। 16 दिवसीय श्राद्धपक्ष के दौरान पाटला पूनम (पूर्णिमा) से संझा बाई का भी पूजन शुरू हो जाता है. शहर सहित अंचलों में संझा बाई का पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है. वैसे तो अधिकांश स्थानों पर बाजार में मिलने वाले संझा बाई के फोटो को दीवार पर चिपकाकर उसकी आरती करती की जाती है, लेकिन शहर सहित ग्रामीण अंचलों में कई लोग ऐसे भी हैं, जो आज भी प्राचीन परंपरा को जीवित रखे हुए हैं.

इसी क्रम में शहर के भावसार मोहल्ला में महिलाओं एवं युवतियों सहित छोटी-छोटी बालिकाओं द्वारा श्राद्धपक्ष के पहले दिन से ही दीवार पर गोबर और फूलों की मदद से संझा बाई बनाकर उसका पूजन किया जा रहा है. शाम होते ही बालिकाएं एकत्रित होकर संझा बाई के मालवी भाषा में प्रचलित गीत गाती है. क्षेत्र की महिलाएं भी इस कार्य में बालिकाओं के साथ रहती है.

महिलाओं ने बताया कि पुरानी पंरपरा से नई पीढ़ी अवगत हो इसके चलते गोबर की संझा का निर्माण किया गया, 10 दिन प्रतिदिन के हिसाब से गोबर की अलग-अलग आकृतियां संझा बाई पर बनाई गई, इसके बाद 11वें दिन किलाकोट का निर्माण करते हुए सभी आकृतियों को एक साथ संझाबाई में बनाया गया. सर्वपितृमोक्ष अमावस्या पर संझा बाई का पर्व संपन्न होगा. इसके बाद संझा बाई को दीवार से निकालकर जलस्रोतों में प्रवाहित किया जाएगा.

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