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MP में बनानी है सरकार, तो इस अंचल को नहीं कर सकते नजर अंदाज, पढ़िए विंध्य में बजेगा किसका डंका - Madhya Pradesh election 2023 results

Vindhya Region Politics: 3 दिसंबर यानि की फैसले की घड़ी, इस दिन के इंतजार में प्रदेश के कई नेता अपनी धड़कने थाम के बैठे हैं. 3 दिसंबर को सभी के भाग्य का फैसला होगा. एमपी में अगर विंध्य क्षेत्र की बात करें, तो इस बार यहां सभी की नजरें गड़ी हुई है. इसकी वजह है कि इस क्षेत्र में बीजेपी-कांग्रेस के अलावा आप, सपा और बसपा भी पूरी जोर आजमाइश करते नजर आए.

MP Election Result on 3 December
विंध्य में किसका बजेगा डंका
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 2, 2023, 2:48 PM IST

शहडोल। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, एग्जिट पोल भी आ चुके हैं. बस अब अब मतगणना का इंतजार है. आखिर इस बार मध्य प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी. मध्य प्रदेश पर इस बार देशभर की नजर है, क्योंकि सबसे रोचक मुकाबला मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में ही था. इस बार मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी कांग्रेस दोनों काफी उत्साहित भी हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां अपने-अपने दावे कर रही है. देखा जाए तो इस बार मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में विन्ध्य अंचल पर भी सबकी नजर रहने वाली है, क्योंकि एमपी का विंध्य उलटफेर के लिए जाना जाता रहा है. यहां पर बीजेपी के लिए जहां अपनी सीट बचाने की चुनौती है, तो कांग्रेस के लिए विंध्य में फिर से वापसी करने का चैलेंज है.

विंध्य में इस बार किसका बजेगा डंका: विंध्य क्षेत्र में टोटल 30 विधानसभा सीट आती हैं और इस 30 सीटों का समीकरण ऐसा है कि यहां अक्सर उलटफेर होते रहे हैं. यहां भाजपा-कांग्रेस ही नहीं बल्कि बीएसपी सपा जैसी पार्टियों को भी समय-समय पर कुछ सीटों पर जीत मिलती रही है. इसलिए भी विंध्य पर सब की नजर रहती है. पिछले कुछ पंचवर्षीय से देखें तो विंध्य क्षेत्र में बीजेपी ने अपनी अच्छी खासी दखल बना ली है. पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव में जहां मध्य प्रदेश में बीजेपी को काफी झटका लगा था, लेकिन विंध्य क्षेत्र से बीजेपी पार्टी ने 30 सीट में से 24 जीतने में कामयाबी हासिल की थी. जबकि सरकार बनाने के बाद भी कांग्रेस को महज 6 सिटी ही इस क्षेत्र से मिली थी, इसलिए भी इस बार सब की नजर विंध्य पर है.

बीजेपी की ओर से जहां बड़े-बड़े दिग्गज नेता चुनाव प्रचार करने के लिए विंध्य क्षेत्र में उतरे तो कांग्रेस ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. ऐसे में इस बार देखना दिलचस्प होगा कि 3 तारीख को जब रिजल्ट आएगा, तो विंध्य की जनता इस बार किस ओर जाती है.

कौन छोड़ पाया कितना असर: विंध्य क्षेत्र इस बार चुनाव से पहले ही सुर्खियों में आ गया था. सीधी पेशाब कांड में आरोपी प्रवेश शुक्ला पर कार्रवाई की गई थी. इसके बाद कहा जा रहा था कि भाजपा के खिलाफ ब्राह्मणों की नाराजगी बढ़ गई है. नारायण त्रिपाठी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर विंध्य जनता पार्टी के नाम से एक अलग पार्टी ही गठित कर डाली है. विंध्य क्षेत्र में जाति फैक्टर का भी अच्छा खासा असर माना जाता है. साथ ही इस चुनाव में एक नई पार्टी की भी एंट्री हुई है और वह भी अपनी किस्मत आजमा रही है.

आम आदमी पार्टी ने भी अपनी पूरी ताकत यहां लगाई है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री लगातार यहां चुनावी दौरे करते रहे. आप ने अपना पूरा फोकस ही यहां लगाया. इसके अलावा बहुजन समाजवादी पार्टी से मायावती ने भी कई सभाएं की. समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव ने कई सभाऐं की. विंध्य की अहमियत को ऐसे समझ सकते हैं कि बीजेपी भले ही विंध्य को अपना गढ़ बना चुकी है, लेकिन इस बार खुद पीएम नरेंद्र मोदी कई बार विंध्य क्षेत्र के दौरे पर आए. जेपी नड्डा, अमित शाह जैसे नेताओं ने यहां रैलियां की, तो वहीं कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी के दौरे हुए. प्रियंका गांधी ने भी यहां सभाएं की. कुल मिलाकर इस बार विंध्य क्षेत्र पर सभी दिग्गज पार्टियों और बड़े नेताओं की नजर थी.

Vindhya Region Politics
कांग्रेस

आम आदमी पार्टी जहां मध्य प्रदेश में विधानसभा में जाने का रास्ता विंध्य क्षेत्र से ही तलाश रही है, तो वहीं सपा बसपा भी विंध्य क्षेत्र से अपनी जड़ें एमपी में मजबूत करने की कोशिश में है, क्योंकि विंध्य क्षेत्र अक्सर ही उलट फेर के लिए जाना जाता रहा है.

विंध्य में समय-समय पर मिलता रहा मौका: देखा जाए तो विंध्य क्षेत्र में इसलिए भी बीजेपी कांग्रेस के अलावा दूसरी पार्टियां पूरी ताकत लगाती हैं, क्योंकि यहां से समय-समय पर दूसरी पार्टियों के नेताओं को भी मौका मिलता रहा है. साल 1991 में बसपा का पहला लोकसभा सदस्य विंध्य क्षेत्र से चुना गया था. यहां की राजनीति में कम्युनिस्टों को भी प्रतिनिधित्व मिला है. विंध्य उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है, इसलिए भी यहां सपा और बसपा के भी विधायक जीतते रहे हैं. इस बार आम आदमी पार्टी भी यहां से काफी उम्मीद लगाए बैठी हुई है, क्योंकि उसने पिछले साल 2022 में सिंगरौली की मेयर सीट जीती थी.

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बसपा

किस्मत का फैसला भी तीन दिसंबर को होना है. विंध्य क्षेत्र को बीएसपी भी अपना वोट बैंक मानती है, क्योंकि तीन बार उसकी पार्टी से लोकसभा सांसद चुने गए 1991, 1996 और 2009 में. यहां से 1993 और 2003 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के उम्मीदवार राम लखन शर्मा भी दो बार चुने गए.

पिछले कुछ चुनाव में विंध्य में किसका रहा जोर:

  1. पिछले कुछ चुनाव से विंध्य में किसका दबदबा रहा, इसे ऐसे समझ सकते हैं.
  2. पिछले 20 साल में चार चुनाव हुए. जिसमें से 12 से अधिकतम सीट किसी भी चुनाव में कांग्रेस पार्टी नहीं जीत पाई और पिछले 20 साल से कांग्रेस के लिए विंध्य एक बड़ी चुनौती बन गया.
  3. 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज चार सीट ही मिली थी, जबकि भारतीय जनता पार्टी को 18 सीट मिली थी. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भी अपने प्रदर्शन से सबको चौंकाया था और सपा के तीन प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.
  4. साल 2008 के विधानसभा चुनाव में विभिन्न क्षेत्र में कांग्रेस की सीटों की संख्या और घट गई. यहां तो कांग्रेस का और भी खराब प्रदर्शन रहा था. महज दो सीट ही कांग्रेस विंध्य में जीत सकी थी.
  5. 2008 में कांग्रेस को मात्र दो सीट मिली थी और कांग्रेस से ज्यादा बसपा को तीन सीट मिली थी. विंध्य में बसपा दूसरे नंबर की पार्टी बन गई थी.
  6. साल 2013 की विधानसभा चुनाव में विंध्य में 30 सीट में से 12 सीट जीतने में कांग्रेस कामयाब रही. यहां कुछ उसने अपने प्रदर्शन में सुधार किया था, लेकिन यहां भी बीजेपी आगे ही रही. 16 सीट जीतने में कामयाब रही और पिछले 20 साल में यही एक साल था जब कांग्रेस को इतनी सीट मिली थी
  7. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता की चाबी तो हासिल कर ली, लेकिन विंध्य में यहां भी कांग्रेस की स्थिति और खराब रही. 2018 में 30 विधानसभा सीटों में कांग्रेस को महज 6 सीट मिली, जबकि भाजपा ने 24 सीटों में जीत हासिल की.

साख भी दांव पर लगी: सिहावल विधानसभा सीट से कमलेश्वर पटेल के लिए साख की लड़ाई है. इस बार अपनी पार्टी विंध्य जनता पार्टी से चुनाव लड़ रहे नारायण त्रिपाठी की साख भी दांव पर लगी हुई है. इन पर भी सबक नजर है. इसके अलावा सीधी विधानसभा सीट पर सबकी नजर रहेगी. वजह है यहां सीधी पेशाब कांड हुआ था, जो पूरे देश भर में सुर्खियों में था. यहां से बीजेपी ने अपने सबसे दिग्गज नेता का टिकट काटकर सांसद रीती पाठक को चुनावी मैदान में उतारा है. यहां जो उनके विधायक थे, केदार शुक्ला वह निर्दलीय ही चुनाव लड़े हैं. ऐसे में यहां भी एक वर्चस्व की लड़ाई है.

साथ ही सतना सीट से सांसद गणेश सिंह चुनावी मैदान में हैं. इन पर भी नजर रहेगी, उनकी साख भी दांव पर लगी हुई है, तो वहीं रीवा से राजेन्द्र शुक्ला पर भी नजर रहेगी. पिछली बार रीवा की सभी विधानसभा सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. इस बार राजेन्द्र शुक्ला के प्रदर्शन के साथ ही उनके जिले के सभी विधानसभा सीट पर भी नजर रहेगी.

Vindhya Region Politics
बीजेपी

कई और ऐसी सीट हैं, विंध्य में जहां पर कई दिग्गज चुनाव लड़ रहे हैं. सबके लिए इस बार का चुनाव काफी अहम है. बड़ी और कड़ी परीक्षा भी है, तो कई जगह से निर्दलीय भी दावे कर रहे हैं. दूसरी पार्टियों के प्रत्याशी भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं. इसके अलावा विंध्य क्षेत्र के आदिवासी बहुल इलाके शहडोल संभाग की बात करें तो यहां पर भी आदिवासी सीटों पर इस बार दो मंत्रियों की साख दांव पर लगी है. मानपुर विधानसभा क्षेत्र से जहां मंत्री मीना सिंह की साख दांव पर लगी है. चुनाव से पहले इनका काफी विरोध भी था. मीना सिंह काफी सुर्खियों में भी रही हैं, तो वही अनूपपुर विधानसभा सीट से बिसाहुलाल के लिए भी एक बड़ी चुनौती है और उनकी साख भी दांव पर लगी है.

यहां पढ़ें...

विंध्य में दिग्गजों का होना है फैसला: देखा जाए तो विंध्य पर इस बार सबकी नजर रहेगी, क्योंकि अक्सर ही विंध्य क्षेत्र में उलट फेर होते रहे हैं. नए-नए लोगों को मौके मिलते रहे हैं, विंध्य क्षेत्र में टोटल 9 जिले आते हैं. जिसमें रीवा, शहडोल, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया, मैहर और मऊगंज शामिल है. इस बार 3 दिसंबर को जो फाइनल रिजल्ट आने हैं. उसमें कई दिग्गजों का फैसला भी होना है. कईयों की प्रतिष्ठा का भी सवाल है. यहां पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अजय सिंह राहुल चुरहट से बुरी तरह से हार गए थे.

शहडोल। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, एग्जिट पोल भी आ चुके हैं. बस अब अब मतगणना का इंतजार है. आखिर इस बार मध्य प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी. मध्य प्रदेश पर इस बार देशभर की नजर है, क्योंकि सबसे रोचक मुकाबला मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में ही था. इस बार मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी कांग्रेस दोनों काफी उत्साहित भी हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां अपने-अपने दावे कर रही है. देखा जाए तो इस बार मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में विन्ध्य अंचल पर भी सबकी नजर रहने वाली है, क्योंकि एमपी का विंध्य उलटफेर के लिए जाना जाता रहा है. यहां पर बीजेपी के लिए जहां अपनी सीट बचाने की चुनौती है, तो कांग्रेस के लिए विंध्य में फिर से वापसी करने का चैलेंज है.

विंध्य में इस बार किसका बजेगा डंका: विंध्य क्षेत्र में टोटल 30 विधानसभा सीट आती हैं और इस 30 सीटों का समीकरण ऐसा है कि यहां अक्सर उलटफेर होते रहे हैं. यहां भाजपा-कांग्रेस ही नहीं बल्कि बीएसपी सपा जैसी पार्टियों को भी समय-समय पर कुछ सीटों पर जीत मिलती रही है. इसलिए भी विंध्य पर सब की नजर रहती है. पिछले कुछ पंचवर्षीय से देखें तो विंध्य क्षेत्र में बीजेपी ने अपनी अच्छी खासी दखल बना ली है. पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव में जहां मध्य प्रदेश में बीजेपी को काफी झटका लगा था, लेकिन विंध्य क्षेत्र से बीजेपी पार्टी ने 30 सीट में से 24 जीतने में कामयाबी हासिल की थी. जबकि सरकार बनाने के बाद भी कांग्रेस को महज 6 सिटी ही इस क्षेत्र से मिली थी, इसलिए भी इस बार सब की नजर विंध्य पर है.

बीजेपी की ओर से जहां बड़े-बड़े दिग्गज नेता चुनाव प्रचार करने के लिए विंध्य क्षेत्र में उतरे तो कांग्रेस ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. ऐसे में इस बार देखना दिलचस्प होगा कि 3 तारीख को जब रिजल्ट आएगा, तो विंध्य की जनता इस बार किस ओर जाती है.

कौन छोड़ पाया कितना असर: विंध्य क्षेत्र इस बार चुनाव से पहले ही सुर्खियों में आ गया था. सीधी पेशाब कांड में आरोपी प्रवेश शुक्ला पर कार्रवाई की गई थी. इसके बाद कहा जा रहा था कि भाजपा के खिलाफ ब्राह्मणों की नाराजगी बढ़ गई है. नारायण त्रिपाठी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर विंध्य जनता पार्टी के नाम से एक अलग पार्टी ही गठित कर डाली है. विंध्य क्षेत्र में जाति फैक्टर का भी अच्छा खासा असर माना जाता है. साथ ही इस चुनाव में एक नई पार्टी की भी एंट्री हुई है और वह भी अपनी किस्मत आजमा रही है.

आम आदमी पार्टी ने भी अपनी पूरी ताकत यहां लगाई है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री लगातार यहां चुनावी दौरे करते रहे. आप ने अपना पूरा फोकस ही यहां लगाया. इसके अलावा बहुजन समाजवादी पार्टी से मायावती ने भी कई सभाएं की. समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव ने कई सभाऐं की. विंध्य की अहमियत को ऐसे समझ सकते हैं कि बीजेपी भले ही विंध्य को अपना गढ़ बना चुकी है, लेकिन इस बार खुद पीएम नरेंद्र मोदी कई बार विंध्य क्षेत्र के दौरे पर आए. जेपी नड्डा, अमित शाह जैसे नेताओं ने यहां रैलियां की, तो वहीं कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी के दौरे हुए. प्रियंका गांधी ने भी यहां सभाएं की. कुल मिलाकर इस बार विंध्य क्षेत्र पर सभी दिग्गज पार्टियों और बड़े नेताओं की नजर थी.

Vindhya Region Politics
कांग्रेस

आम आदमी पार्टी जहां मध्य प्रदेश में विधानसभा में जाने का रास्ता विंध्य क्षेत्र से ही तलाश रही है, तो वहीं सपा बसपा भी विंध्य क्षेत्र से अपनी जड़ें एमपी में मजबूत करने की कोशिश में है, क्योंकि विंध्य क्षेत्र अक्सर ही उलट फेर के लिए जाना जाता रहा है.

विंध्य में समय-समय पर मिलता रहा मौका: देखा जाए तो विंध्य क्षेत्र में इसलिए भी बीजेपी कांग्रेस के अलावा दूसरी पार्टियां पूरी ताकत लगाती हैं, क्योंकि यहां से समय-समय पर दूसरी पार्टियों के नेताओं को भी मौका मिलता रहा है. साल 1991 में बसपा का पहला लोकसभा सदस्य विंध्य क्षेत्र से चुना गया था. यहां की राजनीति में कम्युनिस्टों को भी प्रतिनिधित्व मिला है. विंध्य उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है, इसलिए भी यहां सपा और बसपा के भी विधायक जीतते रहे हैं. इस बार आम आदमी पार्टी भी यहां से काफी उम्मीद लगाए बैठी हुई है, क्योंकि उसने पिछले साल 2022 में सिंगरौली की मेयर सीट जीती थी.

Vindhya Region Politics
बसपा

किस्मत का फैसला भी तीन दिसंबर को होना है. विंध्य क्षेत्र को बीएसपी भी अपना वोट बैंक मानती है, क्योंकि तीन बार उसकी पार्टी से लोकसभा सांसद चुने गए 1991, 1996 और 2009 में. यहां से 1993 और 2003 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के उम्मीदवार राम लखन शर्मा भी दो बार चुने गए.

पिछले कुछ चुनाव में विंध्य में किसका रहा जोर:

  1. पिछले कुछ चुनाव से विंध्य में किसका दबदबा रहा, इसे ऐसे समझ सकते हैं.
  2. पिछले 20 साल में चार चुनाव हुए. जिसमें से 12 से अधिकतम सीट किसी भी चुनाव में कांग्रेस पार्टी नहीं जीत पाई और पिछले 20 साल से कांग्रेस के लिए विंध्य एक बड़ी चुनौती बन गया.
  3. 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज चार सीट ही मिली थी, जबकि भारतीय जनता पार्टी को 18 सीट मिली थी. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भी अपने प्रदर्शन से सबको चौंकाया था और सपा के तीन प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.
  4. साल 2008 के विधानसभा चुनाव में विभिन्न क्षेत्र में कांग्रेस की सीटों की संख्या और घट गई. यहां तो कांग्रेस का और भी खराब प्रदर्शन रहा था. महज दो सीट ही कांग्रेस विंध्य में जीत सकी थी.
  5. 2008 में कांग्रेस को मात्र दो सीट मिली थी और कांग्रेस से ज्यादा बसपा को तीन सीट मिली थी. विंध्य में बसपा दूसरे नंबर की पार्टी बन गई थी.
  6. साल 2013 की विधानसभा चुनाव में विंध्य में 30 सीट में से 12 सीट जीतने में कांग्रेस कामयाब रही. यहां कुछ उसने अपने प्रदर्शन में सुधार किया था, लेकिन यहां भी बीजेपी आगे ही रही. 16 सीट जीतने में कामयाब रही और पिछले 20 साल में यही एक साल था जब कांग्रेस को इतनी सीट मिली थी
  7. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता की चाबी तो हासिल कर ली, लेकिन विंध्य में यहां भी कांग्रेस की स्थिति और खराब रही. 2018 में 30 विधानसभा सीटों में कांग्रेस को महज 6 सीट मिली, जबकि भाजपा ने 24 सीटों में जीत हासिल की.

साख भी दांव पर लगी: सिहावल विधानसभा सीट से कमलेश्वर पटेल के लिए साख की लड़ाई है. इस बार अपनी पार्टी विंध्य जनता पार्टी से चुनाव लड़ रहे नारायण त्रिपाठी की साख भी दांव पर लगी हुई है. इन पर भी सबक नजर है. इसके अलावा सीधी विधानसभा सीट पर सबकी नजर रहेगी. वजह है यहां सीधी पेशाब कांड हुआ था, जो पूरे देश भर में सुर्खियों में था. यहां से बीजेपी ने अपने सबसे दिग्गज नेता का टिकट काटकर सांसद रीती पाठक को चुनावी मैदान में उतारा है. यहां जो उनके विधायक थे, केदार शुक्ला वह निर्दलीय ही चुनाव लड़े हैं. ऐसे में यहां भी एक वर्चस्व की लड़ाई है.

साथ ही सतना सीट से सांसद गणेश सिंह चुनावी मैदान में हैं. इन पर भी नजर रहेगी, उनकी साख भी दांव पर लगी हुई है, तो वहीं रीवा से राजेन्द्र शुक्ला पर भी नजर रहेगी. पिछली बार रीवा की सभी विधानसभा सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. इस बार राजेन्द्र शुक्ला के प्रदर्शन के साथ ही उनके जिले के सभी विधानसभा सीट पर भी नजर रहेगी.

Vindhya Region Politics
बीजेपी

कई और ऐसी सीट हैं, विंध्य में जहां पर कई दिग्गज चुनाव लड़ रहे हैं. सबके लिए इस बार का चुनाव काफी अहम है. बड़ी और कड़ी परीक्षा भी है, तो कई जगह से निर्दलीय भी दावे कर रहे हैं. दूसरी पार्टियों के प्रत्याशी भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं. इसके अलावा विंध्य क्षेत्र के आदिवासी बहुल इलाके शहडोल संभाग की बात करें तो यहां पर भी आदिवासी सीटों पर इस बार दो मंत्रियों की साख दांव पर लगी है. मानपुर विधानसभा क्षेत्र से जहां मंत्री मीना सिंह की साख दांव पर लगी है. चुनाव से पहले इनका काफी विरोध भी था. मीना सिंह काफी सुर्खियों में भी रही हैं, तो वही अनूपपुर विधानसभा सीट से बिसाहुलाल के लिए भी एक बड़ी चुनौती है और उनकी साख भी दांव पर लगी है.

यहां पढ़ें...

विंध्य में दिग्गजों का होना है फैसला: देखा जाए तो विंध्य पर इस बार सबकी नजर रहेगी, क्योंकि अक्सर ही विंध्य क्षेत्र में उलट फेर होते रहे हैं. नए-नए लोगों को मौके मिलते रहे हैं, विंध्य क्षेत्र में टोटल 9 जिले आते हैं. जिसमें रीवा, शहडोल, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया, मैहर और मऊगंज शामिल है. इस बार 3 दिसंबर को जो फाइनल रिजल्ट आने हैं. उसमें कई दिग्गजों का फैसला भी होना है. कईयों की प्रतिष्ठा का भी सवाल है. यहां पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अजय सिंह राहुल चुरहट से बुरी तरह से हार गए थे.

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