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ये कैसा विकास, 21वीं सदी में भी अंधेरे में रहने को मजबूर ग्रामीण - Kota Gram Panchayat

21वीं सदी में भी देश के कई गांव ऐसे हैं जहां बिजली नहीं पहुंची. एमपी में भी लोग अंधेरे पर रहने को मजबूर है. देखिए बिना बिजली के गांव पर ईटीव्ही भारत की ग्राउंड रिपोर्ट...

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अंधेरे में रहने को मजबूर ग्रामीण
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Published : Dec 27, 2020, 5:49 PM IST

शहडोल। आज देश भले ही 21वीं सदी में पहुंच गया हो, लेकिन जिले के कुछ आदिवासी बहुल गांव ऐसे हैं, जहां ग्रामीण अंधेरे में रहने को मजबूर हैं. देश को आजाद हुए 7 दशक हो गए, लेकिन आज तक इन गांवों में बिजली नहीं पहुंची. यहां के ग्रामीण आज भी बिजली के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

अंधेरे में रहना, इच्छा या मजबूरी?

आज भी जैतपुर विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत जिला मुख्यालय से करीब 70 से 80 किलोमीटर दूर केशवाही के पास बसे कई गांव ऐसे हैं, जहां के लोगों को बिना बिजली के जिंदगी बसर करना मजबूरी है. यहां के ग्रामीण आज भी बिना बिजली के जीवन यापन कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इनकी समस्याओं के बारे में जनप्रतिनिधि और प्रशासन को पता नहीं, लेकिन कोई सुध लेने के लिए तैयार नहीं है. लोगों की माने तो हर गांव की आबादी अच्छी खासी है, लेकिन अब तक यहां बिजली नहीं पहुंची.


इन गांवों में नहीं है बिजली

तराई डोल के ग्रामीण बताते हैं कि, जैतपुर विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत केशवाही से लगे हुए कई गांव में बिजली नहीं है. जिनमें केशव डोल, तराई डोल, कोरकुटी डोल, चिरईपानी, कोटि, ठुनमुन डोल, अमली टोला, कोठरा, सगरा टोला, कनौजा डोल, अतरौठी, कछार, नवाटोला शामिल है. आलम यह है कि ग्रामीण अंधेरे में जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं.

बिन बिजली बड़ी समस्या

ग्रामीणों का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि बिना बिजली के गांव का विकास कैसे हो. इतना ही नहीं, बिजली सप्लाई नहीं होने से एक सीजन की खेती भी नहीं हो पा रही है. सिंचाई का साधन नहीं है. अगर बिजली हो, तो खेती भी अच्छे से हो सकेगी.

बिजली के नाम पर पैसों की ठगी

केशव ढोल गांव की रहने वाली एक महिला बताती हैं कि, बिजली के बिना बड़ी समस्या होती है. आलम यह है कि, कुछ लोगों ने बिजली लगवाने का आश्वासन दिया, तो कुछ लोग पैसा लेकर चले गए, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ.

अंधेरे में रहने को मजबूर ग्रामीण
बच्चों ने छोड़ी पढ़ाई, कुछ चिमनी में कर रहे संघर्ष
कुछ युवक ऐसे है जो 8वीं तक ही पढ़े हैं, क्योंकि उनके गांव में ना तो पुल है और ना ही बिजली. चिमनी के सहारे पढ़ने वाले छात्र भी सीमित हैं. कईयों ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. 12वीं क्लास की छात्रा बताती हैं कि वह हर दिन साइकिल के जरिए अपने गांव से पढ़ाई करने के लिए जाती हैं. बिजली नहीं होने के चलते चिमनी और लालटेन से मजबूरन पढ़ना होता है, जिससे काफी दिक्कतें होती है.
जानिए अब तक क्यों नहीं पहुंची बिजली ?
कार्यपालन अभियंता मुकेश सिंह बताते है कि नवाटोला गांव में सोलर सिस्टम से विद्युतीकरण किया गया था. कोटा ग्राम पंचायत में भी सौर ऊर्जा से विद्युतीकरण के लिए भेजा गया. लेकिन लोगों ने सौर ऊर्जा लगाने नहीं दिया. अब उनकी मांग हैं कि उनके क्षेत्र में तार खंभे लगाए जाएं. कलेक्टर को डीएमएफ फंड की स्वीकृत के लिए भेजा गया है. आदिम जाति कल्याण विभाग को भी स्वीकृत के लिए पेपर भेजा गया है, क्योंकि विभाग के पास वर्तमान में विद्युतीकरण की कोई भी योजना मंडल में संचालित नहीं की जा रही है. इसलिए विद्युतीकरण किया जाना मंडल के व्यय से संभव नहीं है. कलेक्टर की अध्यक्षता में डीएमएफ फंड की रिक्वायरमेंट भेजी गई है. अगर फंड का आवंटन हो जाता है और शासन स्तर पर भी कोई विद्युतीकरण योजना आती है, तो उसके लिए भी डीपीआर बनाकर शासन को भेजा जाएगा.

शहडोल। आज देश भले ही 21वीं सदी में पहुंच गया हो, लेकिन जिले के कुछ आदिवासी बहुल गांव ऐसे हैं, जहां ग्रामीण अंधेरे में रहने को मजबूर हैं. देश को आजाद हुए 7 दशक हो गए, लेकिन आज तक इन गांवों में बिजली नहीं पहुंची. यहां के ग्रामीण आज भी बिजली के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

अंधेरे में रहना, इच्छा या मजबूरी?

आज भी जैतपुर विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत जिला मुख्यालय से करीब 70 से 80 किलोमीटर दूर केशवाही के पास बसे कई गांव ऐसे हैं, जहां के लोगों को बिना बिजली के जिंदगी बसर करना मजबूरी है. यहां के ग्रामीण आज भी बिना बिजली के जीवन यापन कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इनकी समस्याओं के बारे में जनप्रतिनिधि और प्रशासन को पता नहीं, लेकिन कोई सुध लेने के लिए तैयार नहीं है. लोगों की माने तो हर गांव की आबादी अच्छी खासी है, लेकिन अब तक यहां बिजली नहीं पहुंची.


इन गांवों में नहीं है बिजली

तराई डोल के ग्रामीण बताते हैं कि, जैतपुर विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत केशवाही से लगे हुए कई गांव में बिजली नहीं है. जिनमें केशव डोल, तराई डोल, कोरकुटी डोल, चिरईपानी, कोटि, ठुनमुन डोल, अमली टोला, कोठरा, सगरा टोला, कनौजा डोल, अतरौठी, कछार, नवाटोला शामिल है. आलम यह है कि ग्रामीण अंधेरे में जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं.

बिन बिजली बड़ी समस्या

ग्रामीणों का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि बिना बिजली के गांव का विकास कैसे हो. इतना ही नहीं, बिजली सप्लाई नहीं होने से एक सीजन की खेती भी नहीं हो पा रही है. सिंचाई का साधन नहीं है. अगर बिजली हो, तो खेती भी अच्छे से हो सकेगी.

बिजली के नाम पर पैसों की ठगी

केशव ढोल गांव की रहने वाली एक महिला बताती हैं कि, बिजली के बिना बड़ी समस्या होती है. आलम यह है कि, कुछ लोगों ने बिजली लगवाने का आश्वासन दिया, तो कुछ लोग पैसा लेकर चले गए, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ.

अंधेरे में रहने को मजबूर ग्रामीण
बच्चों ने छोड़ी पढ़ाई, कुछ चिमनी में कर रहे संघर्ष
कुछ युवक ऐसे है जो 8वीं तक ही पढ़े हैं, क्योंकि उनके गांव में ना तो पुल है और ना ही बिजली. चिमनी के सहारे पढ़ने वाले छात्र भी सीमित हैं. कईयों ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. 12वीं क्लास की छात्रा बताती हैं कि वह हर दिन साइकिल के जरिए अपने गांव से पढ़ाई करने के लिए जाती हैं. बिजली नहीं होने के चलते चिमनी और लालटेन से मजबूरन पढ़ना होता है, जिससे काफी दिक्कतें होती है.
जानिए अब तक क्यों नहीं पहुंची बिजली ?
कार्यपालन अभियंता मुकेश सिंह बताते है कि नवाटोला गांव में सोलर सिस्टम से विद्युतीकरण किया गया था. कोटा ग्राम पंचायत में भी सौर ऊर्जा से विद्युतीकरण के लिए भेजा गया. लेकिन लोगों ने सौर ऊर्जा लगाने नहीं दिया. अब उनकी मांग हैं कि उनके क्षेत्र में तार खंभे लगाए जाएं. कलेक्टर को डीएमएफ फंड की स्वीकृत के लिए भेजा गया है. आदिम जाति कल्याण विभाग को भी स्वीकृत के लिए पेपर भेजा गया है, क्योंकि विभाग के पास वर्तमान में विद्युतीकरण की कोई भी योजना मंडल में संचालित नहीं की जा रही है. इसलिए विद्युतीकरण किया जाना मंडल के व्यय से संभव नहीं है. कलेक्टर की अध्यक्षता में डीएमएफ फंड की रिक्वायरमेंट भेजी गई है. अगर फंड का आवंटन हो जाता है और शासन स्तर पर भी कोई विद्युतीकरण योजना आती है, तो उसके लिए भी डीपीआर बनाकर शासन को भेजा जाएगा.
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