शहडोल। मध्य प्रदेश में आदिवासी सीटों पर भी इस बार गजब का मुकाबला देखने को मिल रहा है. वैसे भी एमपी विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों को काफी अहम भी माना जा रहा है. या यूं कहें कि उन्हें गेम चेंजर भी माना जा रहा है और इसीलिए बीजेपी हो या कांग्रेस सभी पार्टियों के दिग्गज नेता इन सीटों को साधने में लगे हैं. वोटर्स को अपने पाले में लाने में लगे हुए हैं. ऐसे में आदिवासी सीटों पर इस बार माहौल भी काफी गर्म है. चुनाव से पहले आखिर जनता का मूड क्या है, इसे जानने के लिए ईटीवी भारत के शहडोल से संवाददाता अखिलेश शुक्ला ने जिले के जयसिंहनगर विधानसभा सीट के लोगों से बात की तो लोगों ने अलग-अलग राय रखी. किसी ने भाजपा किसी ने कांग्रेस तो किसी ने दोनों को नकारा. कुल मिलाकर इस बार का चुनाव काफी रोचक होने जा रहा है. कौन बाजी मारेगी कौन हारेगा इस पर सस्पेंस अभी बरकरार है.
जयसिंहनगर विधानसभा सीट का समीकरण: शहडोल जिले के जयसिंहनगर विधानसभा सीट के समीकरण की बात करें तो जयसिंहनगर विधानसभा सीट आदिवासी आरक्षित सीट है. यहां पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है. भाजपा के जयसिंह मरावी यहां से विधायक हैं, लेकिन इस बार जो टिकट का वितरण हुआ है उसमें यहां से जयसिंह मरावी को टिकट नहीं दिया गया है बल्कि जैतपुर की विधायक मनीषा सिंह को यहां से प्रत्याशी बनाया गया है. जयसिंह मरावी को जैतपुर विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया गया. मतलब दो विधायकों की सीटों की अदला-बदली की गई है.
कांग्रेस ने नरेंद्र मरावी पर लगाया दांव: वहीं, कांग्रेस की ओर से पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्र मरावी को प्रत्याशी बनाया गया है. हालांकि जयसिंहनगर विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है. विंध्य जनता पार्टी की प्रत्याशी फूलवती सिंह, जो कि भारतीय जनता पार्टी से ही नाराज होकर इस चुनावी समर में मैदान पर हैं और अब विंध्य जनता पार्टी के बैनर तले ही वह चुनाव लड़ रहे हैं. जो इस चुनाव को दिलचस्प और रोचक भी बना रही हैं, इसके अलावा भाजपा के ललन सिंह भी नाराज होकर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान पर हैं.
डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से बीजेपी का कब्जा: जयसिंहनगर विधानसभा सीट की बात की जाए तो इस विधानसभा सीट पर डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय हो गया है, जब से यहां पर बीजेपी का कब्जा है. मतलब कांग्रेस के लिए यह सीट इतनी आसान नहीं होने वाली है. साल 2008 में बीजेपी से सुंदर सिंह यहां विधायक रहे. साल 2013 से बीजेपी की प्रमिला सिंह यहां से विधायक बनीं, और 2018 में जय सिंह मरावी विधायक रहे. अब 2023 में कौन विधायक बनेगा देखना दिलचस्प होगा. बीजेपी से ही कोई प्रत्याशी चुनकर आएगा या फिर कांग्रेस बाजी मार ले जाएगी या फिर निर्दलीय या विंध्य जनता पार्टी की फूलवती यहां से कुछ कर पाएंगी.
एमपी में आदिवासी सीट अहम: देखा जाए तो मध्य प्रदेश में आदिवासी सीटों को इस बार काफी अहम माना जा रहा है. मध्य प्रदेश में 47 आदिवासी आरक्षित सीट है. जिसमें से जो भी पार्टी इन सीटों पर सबसे ज्यादा जीत हासिल करती है, सबसे ज्यादा सीट जीतने में कामयाब होती है सत्ता में उसी की सरकार बनती है. इसीलिए सभी पार्टियां इन सीटों को साधने में लगी हुई हैं. 2003 से आंकड़ों पर नजर डालें तो 2003, 2008, 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने इन आदिवासी सीटों पर बढ़त बनाई थी. जिससे उनकी सरकार बनी थी. 2018 में कांग्रेस ने इन आदिवासी सीटों पर बढ़त बनाई तो कांग्रेस की सरकार बन गई थी. कुल मिलाकर सत्ता की चाभी इन्हीं 47 आदिवासी सीटों से होकर गुजरती है. इसलिए सभी पार्टियों के की नजर इन 47 आदिवासी सीटों पर भी टिकी हुई है.