शहडोल- मध्यप्रदेश में कई ऐसी अमूल्य धरोहरें हैं जो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश का नाम भी रोशन करती हैं. विंध्य क्षेत्र के शहडोल में भी एक ऐसा ही ऐतिहासिक मंदिर है, जो अपने अंदर कई सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, कलात्मक खूबसूरती बटोरे हुए है. कलचुरी कालीन इस मंदिर को लोग विराट मंदिर के नाम से जानते हैं. इसकी अद्भुत कलाकृतियां देख आप भी हतप्रभ रह जाएंगे.
अद्भुत है शिल्पकला
विराट मंदिर की शिल्पकला अद्भुत है. मंदिर के ऊपरी भाग में महामंडप के एक छोर से दूसरे छोर तक अप्सराओं की भाव भंगिमाओं का अंकन है जो सौंदर्य का अनुमप नमूना है. भगवान गणेश की नृत्य मुद्रा में मूर्ति स्थापित है जिनके हाथ में
सर्प, कमल, परशु और मोदक है तो भद्ररथ में कार्तिकेय की प्रतिमा है. इसी तरह से अर्धनारेश्वर, सरस्वती, दुर्गा के अलावा मंदिर में मिथुन के प्रतिमाएं बहुतायत में है.
मंदिर का विराट इतिहास
- विराट मंदिर का इतिहास 10वीं,11वीं शताब्दी का है.
- कलचुरी राजा युवराज देव प्रथम ने मंदिर का निर्माण कराया था.
- विराट मंदिर पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है.
- मंदिर की लंबाई 46 फीट, चौड़ाई 34 फीट और ऊंचाई 72 फीट है.
- मंदिर का तल विन्यास महामंडप, अंतराल वर्गाकार गर्भगृह में विभाजित है.
- ये मंदिर सप्त रची शैली, वास्तु शिल्पन में शिल्पित किया गया है.
विराट मंदिर में छोटे शिव लिंग
इतने बड़े मंदिर के गर्भगृह में छोटे शिवलिंग हैं, जो आकर्षण का केंद्र हैं. छोटे शिवलिंग के बारे में पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार इतने बड़े शरीर में आत्मा बहुत सूक्ष्म होता है, ठीक इसी तरह मंदिर में परमात्मा के स्वरूप में शिवलिंग विराजमान हैं... कलचुरी कालीन राजा युवराज देव प्रथम भगवान शिव के उपासक थे और उन्होंने ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था.
लगता है भव्य मेला
विराट मंदिर बाणगंगा के पास ही है, बाणगंगा का पावन कुंड ऋषि मुनियों का आश्रम इसके आंचल में ही स्थित है. इसी कुंड में मकर संक्रांति के पुण्य पर्व पर भगवान विराटेश्वर शिव का दर्शन कर पुण्य लाभ कमाते हैं. रीवा नरेश महाराज मार्तण्ड सिंह ने इस मेले का उद्घाटन किया था. इस मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.