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शहडोल का शिव मंदिर, जो दिलाता है खजुराहो की याद - शिव लिंग

हमारे देश में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपनी भव्यता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. शहडोल का विराट मंदिर ऐसा मंदिर है जिसे देखकर आपको खजुराहो के मंदिरों की याद आ जाएगी

मंदिर जो दिलाता है खजुराहो की याद
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Published : Oct 31, 2019, 5:38 PM IST

शहडोल- मध्यप्रदेश में कई ऐसी अमूल्य धरोहरें हैं जो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश का नाम भी रोशन करती हैं. विंध्य क्षेत्र के शहडोल में भी एक ऐसा ही ऐतिहासिक मंदिर है, जो अपने अंदर कई सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, कलात्मक खूबसूरती बटोरे हुए है. कलचुरी कालीन इस मंदिर को लोग विराट मंदिर के नाम से जानते हैं. इसकी अद्भुत कलाकृतियां देख आप भी हतप्रभ रह जाएंगे.

मंदिर जो दिलाए खजुराहो की याद


अद्भुत है शिल्पकला

विराट मंदिर की शिल्पकला अद्भुत है. मंदिर के ऊपरी भाग में महामंडप के एक छोर से दूसरे छोर तक अप्सराओं की भाव भंगिमाओं का अंकन है जो सौंदर्य का अनुमप नमूना है. भगवान गणेश की नृत्य मुद्रा में मूर्ति स्थापित है जिनके हाथ में
सर्प, कमल, परशु और मोदक है तो भद्ररथ में कार्तिकेय की प्रतिमा है. इसी तरह से अर्धनारेश्वर, सरस्वती, दुर्गा के अलावा मंदिर में मिथुन के प्रतिमाएं बहुतायत में है.


मंदिर का विराट इतिहास

  • विराट मंदिर का इतिहास 10वीं,11वीं शताब्दी का है.
  • कलचुरी राजा युवराज देव प्रथम ने मंदिर का निर्माण कराया था.
  • विराट मंदिर पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है.
  • मंदिर की लंबाई 46 फीट, चौड़ाई 34 फीट और ऊंचाई 72 फीट है.
  • मंदिर का तल विन्यास महामंडप, अंतराल वर्गाकार गर्भगृह में विभाजित है.
  • ये मंदिर सप्त रची शैली, वास्तु शिल्पन में शिल्पित किया गया है.

विराट मंदिर में छोटे शिव लिंग

इतने बड़े मंदिर के गर्भगृह में छोटे शिवलिंग हैं, जो आकर्षण का केंद्र हैं. छोटे शिवलिंग के बारे में पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार इतने बड़े शरीर में आत्मा बहुत सूक्ष्म होता है, ठीक इसी तरह मंदिर में परमात्मा के स्वरूप में शिवलिंग विराजमान हैं... कलचुरी कालीन राजा युवराज देव प्रथम भगवान शिव के उपासक थे और उन्होंने ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था.

लगता है भव्य मेला

विराट मंदिर बाणगंगा के पास ही है, बाणगंगा का पावन कुंड ऋषि मुनियों का आश्रम इसके आंचल में ही स्थित है. इसी कुंड में मकर संक्रांति के पुण्य पर्व पर भगवान विराटेश्वर शिव का दर्शन कर पुण्य लाभ कमाते हैं. रीवा नरेश महाराज मार्तण्ड सिंह ने इस मेले का उद्घाटन किया था. इस मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.

शहडोल- मध्यप्रदेश में कई ऐसी अमूल्य धरोहरें हैं जो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश का नाम भी रोशन करती हैं. विंध्य क्षेत्र के शहडोल में भी एक ऐसा ही ऐतिहासिक मंदिर है, जो अपने अंदर कई सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, कलात्मक खूबसूरती बटोरे हुए है. कलचुरी कालीन इस मंदिर को लोग विराट मंदिर के नाम से जानते हैं. इसकी अद्भुत कलाकृतियां देख आप भी हतप्रभ रह जाएंगे.

मंदिर जो दिलाए खजुराहो की याद


अद्भुत है शिल्पकला

विराट मंदिर की शिल्पकला अद्भुत है. मंदिर के ऊपरी भाग में महामंडप के एक छोर से दूसरे छोर तक अप्सराओं की भाव भंगिमाओं का अंकन है जो सौंदर्य का अनुमप नमूना है. भगवान गणेश की नृत्य मुद्रा में मूर्ति स्थापित है जिनके हाथ में
सर्प, कमल, परशु और मोदक है तो भद्ररथ में कार्तिकेय की प्रतिमा है. इसी तरह से अर्धनारेश्वर, सरस्वती, दुर्गा के अलावा मंदिर में मिथुन के प्रतिमाएं बहुतायत में है.


मंदिर का विराट इतिहास

  • विराट मंदिर का इतिहास 10वीं,11वीं शताब्दी का है.
  • कलचुरी राजा युवराज देव प्रथम ने मंदिर का निर्माण कराया था.
  • विराट मंदिर पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है.
  • मंदिर की लंबाई 46 फीट, चौड़ाई 34 फीट और ऊंचाई 72 फीट है.
  • मंदिर का तल विन्यास महामंडप, अंतराल वर्गाकार गर्भगृह में विभाजित है.
  • ये मंदिर सप्त रची शैली, वास्तु शिल्पन में शिल्पित किया गया है.

विराट मंदिर में छोटे शिव लिंग

इतने बड़े मंदिर के गर्भगृह में छोटे शिवलिंग हैं, जो आकर्षण का केंद्र हैं. छोटे शिवलिंग के बारे में पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार इतने बड़े शरीर में आत्मा बहुत सूक्ष्म होता है, ठीक इसी तरह मंदिर में परमात्मा के स्वरूप में शिवलिंग विराजमान हैं... कलचुरी कालीन राजा युवराज देव प्रथम भगवान शिव के उपासक थे और उन्होंने ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था.

लगता है भव्य मेला

विराट मंदिर बाणगंगा के पास ही है, बाणगंगा का पावन कुंड ऋषि मुनियों का आश्रम इसके आंचल में ही स्थित है. इसी कुंड में मकर संक्रांति के पुण्य पर्व पर भगवान विराटेश्वर शिव का दर्शन कर पुण्य लाभ कमाते हैं. रीवा नरेश महाराज मार्तण्ड सिंह ने इस मेले का उद्घाटन किया था. इस मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.

Intro:Note_ स्पेशल स्टोरी। प्रदेश की धरोहर।

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पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार का वर्जन है।

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इस स्लग में विसुअल हैं।


मध्यप्रदेश की शान है ये विराट मंदिर, इसकी कलाकृतियां देख खजुराहो की यादें ताज़ा हो जाएंगी

शहडोल- मध्यप्रदेश में कई ऐसी अमूल्य धरोहरें हैं जो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश का नाम भी रोशन करती हैं, विंध्य क्षेत्र के शहडोल जिले में भी एक ऐसा ही ऐतिहासिक मंदिर है जो अपने अंदर कई सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, कलात्मक खूबसूरती बटोरे हुए है। कलचुरिकालीन इस मंदिर को लोग विराट मंदिर के नाम से जानते हैं ये मंदिर शहडोल जिला मुख्यालय में स्थित है। इसकी अद्भुत कलाकृतियां देख आप भी हतप्रभ रह जाएंगे।





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जिला मुख्यालय में स्थित विराट मंदिर प्रदेश की अमूल्य धरोहर है, बाणगंगा के पास स्थित ये अद्भुत विराट शिव मंदिर कलचुरिकालीन है। इस प्राचीन मंदिर में अद्भुत कलाकृतियां हैं, जो इसे एक अलग ही पहचान दिलातीं हैं। इस मंदिर में गढे गए कलाओं को एक बार देखने पर आप को खजुराहो की याद जरूर आ जायेगी।

मंदिर का इतिहास

इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार बताते हैं कि ये मंदिर 10वीं, 11वीं सदी का है, इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी राजाओं ने करवाया था।ये मंदिर पूरी तरह से शिव को समर्पित है।

मंदिर का निर्माण आयताकार ऊंची जगती में किया गया है जिसकी लंबाई लगभग 46 फुट, और चौड़ाई 34 फुट है, वहीं मंदिर की ऊंचाई 72 फिट है। मंदिर का तल विन्यास महामंडप, अंतराल वर्गाकार गर्भगृह में विभाजित है।

मंदिर पूर्वाभिमुख एवं सप्तरथ मंदिर वास्तु विधा पर निर्मित है, इसमें प्रमुख रूप से अर्धमंडप, मंडप, अंतराल, और गर्भ गृह, इस विन्यास में इसका शिल्पन हुआ है, ये मंदिर सप्त रची शैली, वास्तु शिल्पन में शिल्पित किया गया है।

अद्भुत है शिल्पकला

विराट मंदिर की मूर्तिकला अद्भत है, बाह्य भाग के ऊपर बीच में महामंडप के एक किनारे से दूसरे किनारे तक अप्सराओं का कई भाव भंगिमाओं में अंकन है, जो प्रतिमा शास्त्रीय एवं सौंदर्य की दृष्टि से अनुपम है, भद्र रथिकाओं में नीचे की ओर नृत्य मुद्रा में गणेश की प्रतिमा का उल्लेख है जिनके हाथ में सर्प, कमल, परशु, मोदक, है। दूसरे भद्ररथ में कार्तिकेय की प्रतिमा है जो भग्न है।
कोण रथ के तटों पर बाह्य, हयग्रीव, ब्राह्मणी का दृश्य, भद्ररथ के बीच में भिपूरा तक मूर्तियों का शिल्पन है। अर्धनारेश्वर, सरस्वती, अष्ठदिकपाल, दुर्गा इसके अलावा मंदिर में मिथुन दृश्य बहुतायत में है।

इतने बड़े मंदिर में छोटे शिव आकर्षण का केंद्र

इतने बड़े मंदिर के गर्भगृह में छोटे शिवलिंग हैं, जो आकर्षण का केंद्र हैं, और अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए हैं, इतने छोटे शिवलिंग के बारे में पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार इतने बड़े शरीर में आत्मा बहुत सूक्ष्म होता है ठीक इसी तरह मंदिर में परमात्मा के स्वरूप में शिवलिंग विराजमान हैं। कलचुरिकालीन राजा युवराज देव प्रथम भगवान शिव के उपासक थे , और उन्होंने ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था।

लगता है मेला

विराट मंदिर बाणगंगा के पास ही है, बाणगंगा का पावन कुंड ऋषि मुनियों का आश्रम इसके आंचल में ही स्थित है, बाणगंगा के पावन कुंड में मकर संक्रांति के पुण्य पर्व पर आस पास के हज़ारों नर नारी स्नान कर विराट मंदिर में जाकर भगवान विराटेश्वर शिव का दर्शन कर पुण्य लाभ कमाते हैं। रीवा नरेश महाराज मार्तण्ड सिंह ने इस मेले का उद्घाटन किया था। इस मेले में सभी समुदाय के लोग आते हैं।












Conclusion:दूर दूर से आते हैं पर्यटक

जिले का ये विराट मंदिर पर्यटन का बड़ा केन्द्र है और इस मंदिर की कलाकृतियों को देखने, मंदिर के गर्भगृह में विराजे भगवान शिव के दर्शन करने दूर दूर से पर्यटक आते हैं।

खजुराहो की याद दिलाता है ये मंदिर

जिले में स्थित ये धरोहर खजुराहो की याद भी दिलाता है, ब्रिटिश इतिहासकार बैंगलर ने इस मंदिर को खजुराहो के समकालीन निरूपित किया है। इस मंदिर की उच्च शिल्प कला को देखकर हमें खजुराहो की याद आती है, पुरातत्वविद रामनाथ सिंह के मुताबिक खजुराहो की प्रतिमाओं का जो काम कला का संदर्शन है, उनका छाप यहां के मंदिर में भी नज़र आता है।

अब ये मंदिर भारत सरकार के सरंक्षण में है

शहडोल जिले में स्थित ये विराट मंदिर कलचुरी नरेशों की शैव धर्म के प्रतीक स्तंभ के रूप में अनेकता में एकता लिए आज भी अपने विशाल रूप में अडिग है, अब ये मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के सरंक्षण में है।

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