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अंधविश्वास ने ली मासूम की जान, बच्ची को गर्म सलाखों से दागा, इलाज के दौरान तोड़ा दम

शहडोल में दगना कुप्रथा की शिकार एक मासूम बच्ची की आज मौत हो गई. 26 जनवरी को परिजनों ने बीमार बच्ची को ठीक करने दागा था, जहां हालत नाजूक होने पर उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन अंधविश्वास पर बीमार बच्ची पर भारी पड़ गया और बच्ची जिंदगी की जंग हार गई.

dagna kupratha in shahdo
बच्ची गर्म सलाखों से दागा
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Published : Feb 2, 2023, 9:09 PM IST

Updated : Feb 2, 2023, 9:31 PM IST

शहडोल। हमारे समाज में अभी भी कई ऐसी कुप्रथा हैं, जो इंसानों के मन में घर कर गई है. शासन और प्रशासन के लाख जतन व जागरूकता अभियान के बाद भी इस अंधविश्वास से बाहर नहीं निकल पा रहे, जिसका खामियाजा उन मासूमों को झेलना पड़ता है. ऐसा ही मामला शहडोल में देखने मिला है. जहां 26 जनवरी को गर्म सलाखों से दागी गई 3 महीने की मासूम ने आज जिला अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया है.

दगना कुप्रथा का शिकार मासूम: यह पूरा मामला शहडोल जिले के सिंहपुर अंतर्गत कठौतिया गांव का है. जहां एक 3 माह की मासूम बच्ची दगना कुप्रथा का शिकार हो गई थी. बताया जा रहा है कि मासूम बच्ची जन्म के बाद से ही बीमार चल रही थी. निमोनिया और धड़कन तेज चलने की समस्या थी तो परिजनों को इलाज की जगह दगना कुप्रथा पर ज्यादा भरोसा हुआ. परिजनों ने इलाज के नाम पर उस दूध मुंही बच्ची को गर्म सलाखों से दगवा दिया था. आलम यह रहा कि दगना कुप्रथा की शिकार मासूम बच्ची ठीक होने की वजह जिंदगी और मौत से जूझने लगी.

शहडोल में इलाज पर अंधविश्वास हावी, मासूम को गर्म सलाखों से दागा, इलाज जारी

हालत नाजूक होने पर अस्पताल में कराया था भर्ती: मासूम की हालत जब ज्यादा बिगड़ने लगी तो परिजनों ने उसे आनन-फानन में शहडोल मेडिकल कॉलेज में कुछ दिन पहले भर्ती कराया था. मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विभाग की टीम अपनी निगरानी में उस मासूम का इलाज कर रही थी. बताया जा रहा है कि शुरुआत में तो उसकी हालत नाजुक थी लेकिन बीच में उसकी हालत में सुधार भी हुआ. आखिर में उसकी जिंदगी को मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों की टीम भी नहीं बचा सकी.

बुंदेलखंड में जारी हैं बाल विवाह, लड़कियों की शादी की उम्र 21 करने से क्या कुप्रथा पर लग जाएगी रोक?

प्रशासन का दावा: वहीं इस पूरे मामले को लेकर शहडोल कलेक्टर वंदना वैद्य का कहना है की हमारे यहां सिंहपुर में जिस बच्ची के दागने की घटना हुई थी. हमारे सीएमएचओ और जिला महिला बाल विकास अधिकारी लगातार उस बच्ची और उनके परिजन के संपर्क में थे. उस बच्ची की मौत निमोनिया के कारण हुई है. यह बात सही है कि बच्ची को दागा गया था. दागना एक कुप्रथा है, जिसे समय-समय पर प्रशासन गर्भवती महिलाएं जब होती हैं, उसी समय से उनकी काउंसलिंग शुरू कर देता है. जब बच्चा होता है उसकी छुट्टी के समय भी उन्हें समझाया जाता है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लगातार गांव-गांव जाकर माताओं को कह रही हैं कि कुछ भी हो जाए अगर बच्चा बीमार हो तो डॉक्टर को दिखाएं ना कि बच्चों को दागे. अभी जिस बच्ची के साथ यह घटना हुई है आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने दो बार गृह पंजी में लिखा है कि उसकी माता को दो बार समझाइश दी जा चुकी है. उसकी मां को समझाइश दी गई थी कि बच्चे को निमोनिया या बुखार था तो उसे तुम दागना मत, उसके बावजूद उस बच्ची को दागा गया. जब अस्पताल में डॉक्टर और महिला बाल विकास के अधिकारी गए तो मालूम पड़ा कि 15 दिन पहले बच्ची को दागा गया था. दागने के जो घाव थे वह पूरे भर चुके थे, बच्चे में निमोनिया बढ़ गया था. निमोनिया का संक्रमण बढ़ने के कारण उस बच्ची की मौत हो गई. अब जिला प्रशासन पहले से भी सख्त तरीके से कारवाई करेगा.

शहडोल। हमारे समाज में अभी भी कई ऐसी कुप्रथा हैं, जो इंसानों के मन में घर कर गई है. शासन और प्रशासन के लाख जतन व जागरूकता अभियान के बाद भी इस अंधविश्वास से बाहर नहीं निकल पा रहे, जिसका खामियाजा उन मासूमों को झेलना पड़ता है. ऐसा ही मामला शहडोल में देखने मिला है. जहां 26 जनवरी को गर्म सलाखों से दागी गई 3 महीने की मासूम ने आज जिला अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया है.

दगना कुप्रथा का शिकार मासूम: यह पूरा मामला शहडोल जिले के सिंहपुर अंतर्गत कठौतिया गांव का है. जहां एक 3 माह की मासूम बच्ची दगना कुप्रथा का शिकार हो गई थी. बताया जा रहा है कि मासूम बच्ची जन्म के बाद से ही बीमार चल रही थी. निमोनिया और धड़कन तेज चलने की समस्या थी तो परिजनों को इलाज की जगह दगना कुप्रथा पर ज्यादा भरोसा हुआ. परिजनों ने इलाज के नाम पर उस दूध मुंही बच्ची को गर्म सलाखों से दगवा दिया था. आलम यह रहा कि दगना कुप्रथा की शिकार मासूम बच्ची ठीक होने की वजह जिंदगी और मौत से जूझने लगी.

शहडोल में इलाज पर अंधविश्वास हावी, मासूम को गर्म सलाखों से दागा, इलाज जारी

हालत नाजूक होने पर अस्पताल में कराया था भर्ती: मासूम की हालत जब ज्यादा बिगड़ने लगी तो परिजनों ने उसे आनन-फानन में शहडोल मेडिकल कॉलेज में कुछ दिन पहले भर्ती कराया था. मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विभाग की टीम अपनी निगरानी में उस मासूम का इलाज कर रही थी. बताया जा रहा है कि शुरुआत में तो उसकी हालत नाजुक थी लेकिन बीच में उसकी हालत में सुधार भी हुआ. आखिर में उसकी जिंदगी को मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों की टीम भी नहीं बचा सकी.

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प्रशासन का दावा: वहीं इस पूरे मामले को लेकर शहडोल कलेक्टर वंदना वैद्य का कहना है की हमारे यहां सिंहपुर में जिस बच्ची के दागने की घटना हुई थी. हमारे सीएमएचओ और जिला महिला बाल विकास अधिकारी लगातार उस बच्ची और उनके परिजन के संपर्क में थे. उस बच्ची की मौत निमोनिया के कारण हुई है. यह बात सही है कि बच्ची को दागा गया था. दागना एक कुप्रथा है, जिसे समय-समय पर प्रशासन गर्भवती महिलाएं जब होती हैं, उसी समय से उनकी काउंसलिंग शुरू कर देता है. जब बच्चा होता है उसकी छुट्टी के समय भी उन्हें समझाया जाता है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लगातार गांव-गांव जाकर माताओं को कह रही हैं कि कुछ भी हो जाए अगर बच्चा बीमार हो तो डॉक्टर को दिखाएं ना कि बच्चों को दागे. अभी जिस बच्ची के साथ यह घटना हुई है आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने दो बार गृह पंजी में लिखा है कि उसकी माता को दो बार समझाइश दी जा चुकी है. उसकी मां को समझाइश दी गई थी कि बच्चे को निमोनिया या बुखार था तो उसे तुम दागना मत, उसके बावजूद उस बच्ची को दागा गया. जब अस्पताल में डॉक्टर और महिला बाल विकास के अधिकारी गए तो मालूम पड़ा कि 15 दिन पहले बच्ची को दागा गया था. दागने के जो घाव थे वह पूरे भर चुके थे, बच्चे में निमोनिया बढ़ गया था. निमोनिया का संक्रमण बढ़ने के कारण उस बच्ची की मौत हो गई. अब जिला प्रशासन पहले से भी सख्त तरीके से कारवाई करेगा.

Last Updated : Feb 2, 2023, 9:31 PM IST
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