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खनिज संपदा के लिए शहडोल पूरे देश में प्रसिद्ध, पर्यटन के क्षेत्र में आज भी खोज रहा अपनी पहचान

शहडोल खनिज संपदाओं के लिए जाना जाता है. यहां कोयला और मीथेन काफी मात्रा में है, लेकिन साथ ही ये पूरा संभाग बेहद खूबसूरत है और यहां कई दर्शनीय स्थल हैं. हालांकि सरकारी उपेक्षा के कारण आज भी शहडोल पर्यटन के क्षेत्र में अपनी जगह ढूंढ रहा है.

shahdol is seeking for its identity in tourism
पर्यटन में अपनी पहचान को तरसता शहडोल
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Published : Dec 2, 2019, 10:29 AM IST

शहडोल। इस जिले को प्रकृति ने दिल खोलकर सुंदरता बख्शी है. नैसर्गिक सुंदरता से घिरा शहडोल ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध है. यहां की नदियां, पेड़-पौधे, जंगल, पुरातात्विक धरोहरें, अद्भुत और चमत्कारी मंदिर किसी का भी मन मोह लेती हैं, लेकिन आजतक आदिवासी अंचल के इस जिले में किसी ने कोई काम नहीं किया है. अगर इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाए, तो शहडोल का बड़ा नाम होगा.

जिले के समाजसेवी सुशील सिंघल कहते हैं कि शहडोल को कुदरत ने भरपूर सौंदर्य दिया है. यहां के जितने भी दर्शनीय स्थल हैं, अगर उन्हें विकसित कर दिया जाए, तो सरकार को रेवेन्यू तो आएगा ही साथ ही शहडोल का नाम भी देश-विदेश में प्रसिद्ध होगा.

पर्यटन में अपनी पहचान को तरसता शहडोल
सुशील सिंघल कहते हैं कि शहडोल सम्भाग में बहुत सारे दर्शनीय स्थल हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की उपेक्षा के कारण ये जिला हमेशा उपेक्षित रहा. पुरात्वविद् और इतिहासकार रामनाथ सिंह परमार कहते हैं कि शहडोल को दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए.

गौरतलब है कि शहडोल कोयला और मीथेन गैस के लिए तो अपनी खास पहचान रखता ही है, लेकिन ये अंचल पर्यटन स्थल के तौर पर भी अपनी एक खास पहचान भारत के नक्शे में बना सकता है, बस जरूरत है इसे विकसित करने की.

शहडोल। इस जिले को प्रकृति ने दिल खोलकर सुंदरता बख्शी है. नैसर्गिक सुंदरता से घिरा शहडोल ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध है. यहां की नदियां, पेड़-पौधे, जंगल, पुरातात्विक धरोहरें, अद्भुत और चमत्कारी मंदिर किसी का भी मन मोह लेती हैं, लेकिन आजतक आदिवासी अंचल के इस जिले में किसी ने कोई काम नहीं किया है. अगर इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाए, तो शहडोल का बड़ा नाम होगा.

जिले के समाजसेवी सुशील सिंघल कहते हैं कि शहडोल को कुदरत ने भरपूर सौंदर्य दिया है. यहां के जितने भी दर्शनीय स्थल हैं, अगर उन्हें विकसित कर दिया जाए, तो सरकार को रेवेन्यू तो आएगा ही साथ ही शहडोल का नाम भी देश-विदेश में प्रसिद्ध होगा.

पर्यटन में अपनी पहचान को तरसता शहडोल
सुशील सिंघल कहते हैं कि शहडोल सम्भाग में बहुत सारे दर्शनीय स्थल हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की उपेक्षा के कारण ये जिला हमेशा उपेक्षित रहा. पुरात्वविद् और इतिहासकार रामनाथ सिंह परमार कहते हैं कि शहडोल को दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए.

गौरतलब है कि शहडोल कोयला और मीथेन गैस के लिए तो अपनी खास पहचान रखता ही है, लेकिन ये अंचल पर्यटन स्थल के तौर पर भी अपनी एक खास पहचान भारत के नक्शे में बना सकता है, बस जरूरत है इसे विकसित करने की.

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इस स्लग में दो वर्जन है पहला वर्जन सीए और समाजसेवी सुशील सिंघल का, दूसरा वर्जन है पुरातत्वविद और इतिहासकार रामनाथ सिंह परमार का।

mp_sha_02_paryatan_akhilesh_shukla_ptc_7203529 इस स्लग में पीटूसी है।

खनिज संपदा के लिये तो ये क्षेत्र पूरे देश में प्रसिद्ध है, लेकिन पर्यटन के तौर पर क्षेत्र उपेक्षित क्यों रहा ? यहां है अपार संभावनाएं

शहडोल- शहडोल जिला खनिज संपदाओं से भरा हुआ जिला है ये क्षेत्र कोयला, मीथेन गैस के लिए तो फेमस है और यहां इसका दोहन भी भरपूर हो रहा है, बड़ी बड़ी कंपनियां क्षेत्र में खनिज संपदाओं का दोहन कर रही हैं लेकिन क्या आपको पता है इस क्षेत्र में कई ऐसी जगह भी हैं जिन्हें अगर समय रहते पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाए तो आज शहडोल को लोग पर्यटन स्थल के तौर पर भी जानने लगेंगे लेकिन अफ़सोस इतने सालों में इस मामले में शहडोल आज भी उपेक्षित है। इस दिशा में आजतक न शासन और न ही प्रशासन किसी का भी ध्यान नहीं गया।


Body:शहडोल की धरा पर जब आप आएंगे तो आपको को यहां प्रकृति का अद्भुत दर्शन होगा, ये अंचल प्रकृति की खूबसूरती ओढ़े हुए है, ये क्षेत्र ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक, सांस्कृतिक स्थलों से भरा हुआ है, यहां की नदियां, पेड़ पौधे, जंगल, पुरात्तव की धरोहरें, अद्भुत और चमत्कारी मंदिर, आपका मनमोह लेंगी। हर जगह अपने साथ अलग अलग इतिहास को समेटे हुए है लेकिन आजतक आदिवासी अंचल के इस जिले में इस क्षेत्र में किसी ने कोई काम नहीं किया। अगर इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाए तो शहडोल भी इस क्षेत्र में बड़ा नाम होगा।

इस दिशा में उपेक्षित रहा ये अंचल

शहडोल के बुद्धजीवी वर्ग सुशील सिंघल जो एक सीए हैं समाजसेवी भी हैं कहते हैं कि इस क्षेत्र में शहडोल हमेशा ही उपेक्षित रहा है, शहडोल को कुदरत ने प्रकृति से भरपूर सौंदर्यीकरण दे रखा है, पूरा संभाग ही बहुत सुंदर है, और यहां जितने भी दर्शनीय स्थल हैं अगर उन्हें विकसित कर दिया जाए इनको एक दो दिन के टूर प्रोग्राम के तहत डिज़ाइन कर दिया जाए तो इससे सरकार को रेवेन्यू तो आएगा ही साथ ही शहडोल का नाम भी प्रसिद्ध होगा।
सुशील सिंघल कहते हैं कि शहडोल सम्भाग में बहुत सारी चीजें हैं लेकिन इनके विकास के लिए शहडोल हमेशा उपेक्षित रहा, अगर यहां के अद्भुत जगहों को थोड़ा विकसित कर दिया जाए तो हम भी अपने जिले को भारत के नक़्शे में पर्यटन के क्षेत्र में भी दिखा सकते हैं।

पर्यटन की अपार संभावनाएं

पुरात्वविद और इतिहासकार रामनाथ सिंह परमार कहते हैं कि जिले में पर्यटन की बहुत संभावनाएं हैं और ये शुरू से ही रही हैं, और अभी भी हैं, शहडोल में कई प्राकृतिक और दर्शनीय स्थल हैं, जो पर्यटन के लिये उपयोगी हैं ।


शहडोल पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थल है जो पर्यटन के लिए मुख्य रूप से उपयोगी है। दूसरा यहां की प्राकृतिक नेचुरिलटी है वो भी यहां पर्यटन के लिए बहुत उत्तम है।

शहडोल जिले के चारो दिशाओं में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं ऐसे ऐसे स्थल हैं जो आपको रोमांचित कर देंगे। जिले के ब्यौहारी ब्लॉक की बात करें तो यहां का गोदावल स्थान जो गैबीनाथ के गुफाओं के नाम से प्रसिद्ध है, पुरातात्विक स्थल में छिपाड़नाथ का हनुमान मंदिर, मउ में गुप्त काल से लेकर अद्यतन तक खेरमाता मढ़िया, इसके अलावा वहीं पर 20 से 22 टीले हैं जो पुरात्विक स्थल के रूप में चिन्हित हैं।

जयसिंहनगर का घाटी डोंगरी ये भी पुरातात्विक स्थल है, वहीं पर विशेष रूप के फॉसिल्स भी है घाटी डोंगरी मंदिर से जुड़ा है, इसके अलावा चितराव में रॉक सेंटर, गन्धिया गांव में सीतमढी को रामपथ गमन के तौर पर चिन्हित किया गया है।

गोहपारू के पास ही सीतामढिया के नाम से ही छोटी छोटी गुफाएं भी हैं, क्षीरसागर, जहां मुड़ना और सोन नदी का संगम है।

इसके अलावा शहडोल में विराटमंदिर, बाणगंगा, बूढ़ी माई, दुर्गा मंदिर, जिला मुख्यालय का पुरातत्व का संग्रहालय, अंतरा में कंकाली मंदिर, सिंहपुर में काली मंदिर अंतरा और सिंहपुर पुरातात्विक तौर पर भी दर्शनीय है। सिंहपुर का पचमठा मंदिर।

शहडोल से पूर्व की ओर लखबरिया की गुफाएं जो एक लाख गुफाओं के लिए प्रसिद्ध हैं, पांडवो के साथ इन गुफाओं की कहानी जुड़ी हुई है, यहां गुफाएं और प्रतिमाएं हैं,शिवलिंग भी है, रामजानकी मंदिर भी है जिसके पीछे भी राम के वनवास की कहानी छिपी है। यहीं जैतपुर की ओर द्योरी गांव में छोटी लखबरिया है यहां भी गुफाएं और प्रतिमाएं हैं।

भठिया में भठिया देवी मंदिर, जो प्राचीन स्थल है, कलचुरी पीरियड का है।

इसके अलावा भी जिले भर में कई ऐसी छोटी बड़ी दर्शनीय स्थल हैं जो अपने आप में खूबसूरती बटोरे हुए हैं बस उन्हें जरूरत है विकसित करने की।

पुरातत्वविद और इतिहासकार रामनाथ सिंह परमार की मानें तो शहडोल को केंद्र बनाकर ये क्षेत्र दो दिन का पर्यटन स्थल हो सकता है यहां दो दिन तक पर्यटक आनंद ले सकते हैं और फिर यहीं से बांधवगढ़ और अमरकंटक के भी दर्शन कर सकते हैं।


Conclusion:गौरतलब है कि शहडोल कोयला, मीथेन गैस के लिए तो अपनी खास पहचान रखता ही है, लेकिन ये अंचल पर्यटन स्थल के तौर पर भी अपनी एक खास पहचान भारत के नक़्शे में बना सकता है लेकिन बस इसे विकसित करने की जरूरत है, उस क्षेत्र में काम करने की जरूरत है। जिसे लेकर ये क्षेत्र पूरी तरह से उपेक्षित रहा इस ओर न तो शासन और न ही प्रशासन किसी का ध्यान कभी नहीं गया।
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