शहडोल। महिला दिवस के पहले हम उस गांव की कहानी बताने जा रहे हैं, जहां 10 से 15 लड़कियां नेशनल फुटबॉल प्लेयर रही हैं, साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर अपने जिले का नाम रोशन कर चुकी हैं. एक आदिवासी गांव की इन लड़कियों का फुटबॉल के प्रति जुनून देखते ही बनता है.
आज हम जिस गांव के लड़कियों की कहानी बताने जा रहे हैं, वो जिला मुख्यालय से करीब पांच से सात किलोमीटर दूर विचारपुर गांव की है, इस आदिवासी बहुल गांव में लड़कियां भी यहां लड़कों की तरह फुटबॉल में अव्वल हैं और इसका सबूत है, यहां की लड़कियों की कामयाबी. इस गांव की करीब 10 से 12 लड़कियां नेशनल फुटबॉल प्लेयर हैं.
यहां की लड़कियां नही है लड़कों से कम
हमने गांव की तीन उन लड़कियों से बात की, जो फुटबॉल के खेल में एक- दो नहीं बल्कि कई नेशनल खेल चुकी हैं और आज भी फुटबॉल खेलती हैं. प्लेयर सुजाता कुंडे फुटबॉल में 15 नेशनल खेल चुकी हैं, वो बताती हैं कि, बचपन से फुटबॉल खेल रही हैं, बहुत छोटी सी उम्र से ही फुटबॉल के मैदान में आने लगी थी और आज तक खेल रही है और इसके लिए मेहनत करती हैं.
वहीं गांव की प्लेयर लक्ष्मी सहीस बतातीं हैं कि, अब तक फुटबॉल के इस खेल में 9 नेशनल और 3 यूनिवर्सिटी खेल चुकी हैं. लक्ष्मी का कहना हैं कि, उनके चाचा, मामा सभी लोग अपने समय में खेलते थे और अब वो खेल रही हैं.
ट्रेनर नीलेन्द्र कुंडे बताते हैं कि, इस गांव की 10 से 15 लड़कियां फुटबॉल में कई नेशनल खेल चुकी हैं. जिनमे से कुछ की शादी हो गई और वो अपने गांव से दूसरी जगह पर चली गईं, तो वहीं कुछ अभी भी खेल रही हैं.
ये लड़कियां, लड़कों से कम नहीं हैं. लेकिन अफसोस की बात है की, इतने नेशनल खेलने के बाद भी इन्हें सर्टिफिकेट और मेडल के अलावा कुछ नहीं मिला. देश में इतना अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी, आज इन्हें कोई नहीं जानता.