शहडोल। कोरोना काल का असर हर वर्ग पर पड़ा है. इससे शिक्षा का क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा है. प्राइवेट स्कूलों पर भी इस कोरोना काल का बुरा असर पड़ा है, क्योंकि स्कूलों का संचालन अब तक शुरू नहीं हो सका है. जिसके चलते प्राइवेट स्कूलों के संचालकों के लिए अब भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. कई अशासकीय स्कूल और वहां के शिक्षक आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं. ऐसे में अशासकीय विद्यालय संचालक संगठन ने मांग की है कि प्रदेश शासन में पिछले कुछ सालों का जो उनके आरटीई का पैसा फंसा हुआ है, शासन अगर अशासकीय विद्यालयों को उनके इस मद के पैसे जारी कर दें, तो इस संकट काल में उनकी मदद होगी.
इसके अलावा अशासकीय विद्यालयों के संचालक संगठन ने इस कोरोना काल के समय में और भी कई मांगे की है. अशासकीय विद्यालय संचालक संघ के संभागीय अध्यक्ष संजय मिश्रा ने कहा कि इस कोरोना काल का असर प्राइवेट स्कूल और वहां के शिक्षकों पर बहुत ज्यादा पड़ा है. जिसके चलते लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. ऐसे में अशासकीय विद्यालय संचालक संघ ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि राइट टू एजुकेशन, आरटीई के अंतर्गत जो 25% अशासकीय विद्यालयों में छात्र निशुल्क अध्ययनरत रहते हैं. उनके शुल्क पिछले कई साल से अब तक मध्यप्रदेश शासन के पास लंबित हैं.
मान्यता नवीनीकरण के लिए नवंबर महीने में आखिरी तारीख है जिसमें प्रत्येक स्कूल को शिक्षा विभाग से मान्यता लेने पर कक्षा 9 से 12 तक ₹45,000 लगेंगे. इस कोरोना काल में 45,000 देना बहुत मुश्किल है. ऐसे में अशासकीय विद्यालय संचालक संघ ने मांग की है कि 5 साल के लिए मान्यता रिन्यू कर दी जाए और जब समय उपयुक्त आएगा, तो सभी लोग उसका भुगतान करेंगे.
इसके अलावा अशासकीय विद्यालय संचालक संघ ने मांग की है कि जो टैक्स लग रहे हैं, विद्यालय का, प्रॉपर्टी, नगरपालिका जो भी टैक्स लगाया जा रहा है उस पर रोक लगनी चाहिए.
इसके अलावा अशासकीय विद्यालय संचालक संघ ने मांग की है कि अब जब देश में सब कुछ खुल गया है तो स्कूलों को भी ओपन करना चाहिए. अशासकीय विद्यालय संचालक संघ का कहना है कि कोरोना काल में आर्थिक संकट से पहले ही स्कूल गुजर रहे हैं. अभिभावक फीस दे नहीं रहे हैं, उनका साफ कहना है कि जब स्कूल ही नहीं खुले हैं, बच्चे पढ़ने ही नहीं जा रहे हैं, तो किस बात की फीस दी जाए. जबकि ऑनलाइन क्लासेज जारी है, ऐसे में इन तमाम समस्याओं से गुजर रहे प्राइवेट स्कूल के संचालकों ने मुख्यमंत्री से कई मांगे की हैं, कि उनकी समस्याओं की ओर भी ध्यान दिया जाए.
आरटीई शुल्क के 7 अरब बकाया
अशासकीय विद्यालय संचालक संघ के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल प्रसाद निगम कहते हैं कि प्रदेश में जितने भी अशासकीय विद्यालय संचालित हैं किसी भी विद्यालय को आरटीई की फीस अब तक शासन ने नहीं दी है. अगर पूरे स्कूलों के आरटीई शुल्क की बात की जाए तो वह लगभग 7 अरब के करीब की है. शहडोल जिले में ही 2017-18 में 2 करोड़ रुपए बकाया है, और 18-19 में ढाई से तीन करोड़ के लगभग की राशि अभी रोकी गई है. अगर यह राशि सरकार अशासकीय स्कूलों को इस मुश्किल घड़ी में दें. तो काफी कुछ विद्यालयों को लाभ मिल जाएगा.
आर्थिक तंगी से गुजर रहे कई अशासकीय विद्यालय
अशासकीय विद्यालय भी आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं आज पूरे प्रदेश में 45,000 विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं. जो भुखमरी के कगार पर आ गए हैं. अगर अनुमान लगाया जाए कि एक विद्यालय में 10 टीचर हैं तो आप अनुमान लगा सकते कितने टीचरों है जो बेरोजगार हो रहे हैं. कोई पान का ठेला खोल रहा है, कोई सुसाइड कर रहा है. ऐसी कई बातें हमारे सामने आ रही हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री से मांग हैं कि अशासकीय विद्यालयों की इन मांगों की ओर भी इस कोरोना संकट में ध्यान दिया जाए.
गौरतलब है कि अशासकीय विद्यालय संचालक संघ ने साफ कहा है कि अगर उनकी मांगे नहीं मानी गई तो अब अशासकीय विद्यालय संचालक संगठन उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होगा. क्योंकि कई अशासकीय स्कूल अभी आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं और मध्यप्रदेश शासन में पिछले कई सत्र का उनका आरटीई का पैसा फंसा हुआ है, जो भुगतान नहीं किया गया है और यह पुराने सत्रों के हैं ऐसे में अशासकीय विद्यालय संचालक संघ ने उस पैसे को मध्यप्रदेश शासन से जल्द भुगतान करने की मांग की है.