शहडोल। भारत कृषि प्रधान देश है और इन दिनों भारत में नेचुरल फार्मिंग (प्राकृतिक खेती) की चर्चा जोरों पर है. सरकार भी इस ओर ज्यादा जोर दे रही है, मध्यप्रदेश में भी प्राकृतिक खेती को लेकर काफी तैयारी की जा रही है. पूरे प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार, अधिकारी-कर्मचारियों के माध्यम से किसानों को प्रेरित करने में जुटी हुई है. शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है और यहां पर प्राकृतिक खेती को लेकर इस बार क्या तैयारी है, साथ ही यहां कितनी संभावनाएं हैं, इस खबर में पूरा पढ़ें.
प्राकृतिक खेती को लेकर क्या है तैयारी: शहडोल आदिवासी बाहुल्य कृषि प्रधान जिला है. यहां पर गांव-गांव में खेती किसानी होती है और ज्यादातर लोग खरीफ सीजन में खेती करते हैं. ऐसे में खरीफ सीजन के लिए खेती की शुरुआत में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं. किसान भी इसकी तैयारी शुरू कर चुके हैं और उन्हें बारिश का इंतजार है. ऐसे में इस आदिवासी बाहुल्य जिले में प्राकृतिक खेती को लेकर क्या तैयारी है? प्रशासन की ओर से अब तक क्या तैयारी की गई हैं और क्या प्लान है. जिससे किसानों को इस ओर प्रेरित किया जा सके.
जैविक खेती की ओर बढ़ें किसान: विभाग के परियोजना संचालक आरपी झारिया बताते हैं कि इस बार खरीफ सीजन में शासन का ये रुझान है कि किसान ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक खेती की ओर जाएं. दिनों दिन जो अनाज है, पृथ्वी है, पानी है, वायु है, ये सभी दूषित हो रहा है. उसकी सुरक्षा और मानव सेहत को ध्यान में रखते हुए किसानों को प्राकृतिक खेती जैविक खेती की ओर जाना चाहिए. जिससे उन्हें शुद्ध भोजन, शुद्ध फल और आहार, सब्जी मिल सके.
कार्यशाला का आयोजन कर दिया गया प्रशिक्षण: प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अभी हाल ही में 19 मई को प्राकृतिक खेती पर जिला स्तर पर एक कार्यशाला का आयोजन किया था. जिसमें कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक बाहर से आए हुए मास्टर ट्रेनर, जिले के ग्रामीण विस्तार अधिकारी, पशु चिकित्सा अधिकारी, उद्यानिकी विभाग के अधिकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया है. यहां से ट्रेनिंग लेने के बाद ये अधिकारी कर्मचारी ग्राउंड लेवल पर विकास खंड के गांव-गांव जाकर किसानों को जैविक खेती करने संबंधित जानकारी देंगे.
अभी 500 किसानों को कर रहे तैयार: विभाग के परियोजना संचालक आरपी झारिया ने बताया कि ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों के माध्यम से जिले के लगभग 500 किसानों का चयन कर रहे हैं. जिसमें उन किसानों के पास जो निर्धारित रकबा है, उसमें से कुछ ना कुछ रकबे में वो प्राकृतिक खेती करें, इस ओर उन्हें प्रेरित कर रहे हैं. जिससे उन्हें शुद्ध भोजन उपलब्ध हो सके. उन्होनें बताया कि शहडोल में प्राकृतिक खेती की ज्यादा संभावना है. क्योंकि यहां पहले से ही फर्टिलाइजर और कीटनाशक का उपयोग काफी कम है. अगर यहां का किसान मन बना ले, तो वो प्राकृतिक खेती में सफल हो सकता है.
किसानों को लगातार किया जा रहा प्रेरित: परियोजना संचालक आरपी झारिया ने किसानों से आग्रह करते हुए कहा कि यहां संभावनाएं बहुत हैं. जैसे यहां पहले से ही कोदो है, कुटकी है, तिल है, राम तिल है, मसूर है, अलसी है. इन फसलों को यहां के अधिकतर किसान जैविक तौर पर लेते है. थोड़ा-बहुत फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करते हैं, अगर वो फर्टिलाइजर इस्तेमाल ना करें तो किसानों को अच्छा मूल्य भी मिल सकता है और नेचुरल फार्मिंग भी हो जाएगी. अधिकारियों की मानें तो किसानों के पास संभावनाएं यहां बहुत ज्यादा है. किसानों को लगातार प्रेरित किया जा रहा है, देखा जाए तो जिले में अधिकांश रकबा धान और गेहूं का है. धान का कुछ ऐसा क्षेत्र है, जहां पानी का भराव नहीं होता है. उचहन क्षेत्र में भी लोग धान की खेती करते हैं, जबकि धान की फसल को पानी की जरूरत पड़ती है. ऐसे में अगर किसान इन जगहों पर दलहन और तिलहन की फसलें लें और नेचुरल फार्मिंग के तहत लें, तो उन्हें बहुत फायदा होगा.