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शहडोल के महालक्ष्मी मंदिर पर लोगों की अटूट श्रद्धा, जानें आखिर क्यों चढ़ता है जलेबी का प्रसाद

शहडोल जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्थित सिंदुरी गांव में एक ऐसा मंदिर है जो अनायास ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ले. यहां पहुंचते ही एक अलग ही सुकून और शांति का एहसास होता है. धीरे-धीरे यह मंदिर महालक्ष्मी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है.दीपावली के दिन तो अब यहां काफी तादाद में लोग पहुंचते हैं.

Mahalaxmi temple of Shahdol
शहडोल के महालक्ष्मी मंदिर पर लोगों की अटूट श्रद्धा
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Published : Nov 3, 2021, 9:11 AM IST

शहडोल। शहडोल जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्थित सिंदुरी गांव में एक ऐसा मंदिर है जो अनायास ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ले. यहां पहुंचते ही एक अलग ही सुकून और शांति का एहसास होता है. धीरे-धीरे यह मंदिर महालक्ष्मी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है, और लोग इस मंदिर में स्थित पुरातात्विक महत्व की सदियों पुरानी प्रतिमा को मां लक्ष्मी के तौर पर पूजते हैं. इतना ही नहीं लोगों का मानना है कि यहां अगर जलेबी का प्रसाद चढ़ाया जाए तो माता जल्दी प्रसन्न होती है, धीरे-धीरे दीपावली के दिन तो अब यहां काफी तादाद में लोग पहुंचने लगे हैं.

शहडोल के महालक्ष्मी मंदिर पर लोगों की अटूट श्रद्धा




पहाड़ी के ऊपर स्थित महालक्ष्मी मंदिर

शहडोल जिला मुख्यालय से लगभग 5 से 7 किलोमीटर दूर सिंदूरी ग़ांव में एक छोटे से पहाड़ी के ऊपर स्थित है महालक्ष्मी मंदिर. यह एक ऐसा भव्य मंदिर जहां चारों ओर प्राकृतिक छटा देखने को मिलेगी और मंदिर प्रांगण लगभग 10 से 12 एकड़ में फैला हुआ है. कई देवी-देवताओं के दर्शन आपको इस छोटी सी जगह पर एकसाथ हो जाएंगे. धीरे-धीरे यह मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है. इस मंदिर में कई सदी ईसवी पुरानी पुरातात्विक महत्व की एक प्रतिमा है, जिसे लोग माता लक्ष्मी के नाम से पूजते हैं. इस मंदिर में विराजी मां लक्ष्मी पर लोगों का इतना अटूट भरोसा है कि लोगों का मानना है कि कोई भी संकट हो, कोई भी मनोकामना हो, माता से सामने सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.

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कई नामों से प्रसिद्ध है मंदिर

महालक्ष्मी मंदिर के पुजारी उमाशंकर तिवारी इस मंदिर की देखरेख करते हैं, वह बताते हैं कि इस मंदिर को आसपास के ग्रामीण ठड्डी देवी, डोंगरहाई देवी, भुवनेश्वरी देवी कई नामों से जानते हैं. पहले तो यहां के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग यहां पहुंचते थे लेकिन अब साल दर साल शहरी क्षेत्रों के लोग भी पहुंचने आने लगे हैं. दीपावली के दिन तो यहां भक्तों की अच्छी भीड़ होती है.

10वीं शताब्दी की है प्रतिमा

पुजारी उमाशंकर तिवारी बताते हैं कि यहां महालक्ष्मी की प्रतिमा अद्भुत है. पुजारी की मानें तो ये प्रतिमा 10वीं शताब्दी की है, और इसमें महालक्ष्मी का ही स्वरूप नज़र आता है. प्रतिमा के एकदम नीचे कमल का आसन है, गणेश जी इनके वाहन हैं. इस प्रतिमा में जो निशानियां है गणेश जी, मोर और फिर शेर ये तीनों वाहन होने के कारण महालक्ष्मी स्वरूप का यहां वर्णन है, देवी पुराण में इनके वर्णन के आधार पर माता भुवनेश्वरी के तौर पर इन्हें जाना जाता है. दीपावली के दिन यहां काफी अच्छी भीड़ होती है, दीप दान देने के लिए शहरवासी यहां आते हैं,पास में एक डैम है जहां दीप प्रज्वलिति कर दान किया जाता है.

देवी को जलेबी का प्रसाद अतिप्रिय

पुजारी उमाशंकर तिवारी कहते हैं कि यहां विराजी देवी को मिष्ठान का प्रसाद अति प्रिय है, उसमें भी खासकर जलेबी का प्रसाद. उमाशंकर तिवारी बताते हैं कि यहां ज्यादातर भक्त जलेबी का ही प्रसाद चढ़ाते हैं. ऐसी मान्यता है कि अगर जलेबी का प्रसाद चढ़ाकर कोई भी मनोकामना यहां मांगी जाएं तो वह तुरंत पूर्ण होती है. स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां कोई भी मन्नत मांगता है तो वह जरूर पूरी होती है. यहां आने वाले भक्तों का इस मंदिर पर अटूट आस्था है.

शहडोल। शहडोल जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्थित सिंदुरी गांव में एक ऐसा मंदिर है जो अनायास ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ले. यहां पहुंचते ही एक अलग ही सुकून और शांति का एहसास होता है. धीरे-धीरे यह मंदिर महालक्ष्मी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है, और लोग इस मंदिर में स्थित पुरातात्विक महत्व की सदियों पुरानी प्रतिमा को मां लक्ष्मी के तौर पर पूजते हैं. इतना ही नहीं लोगों का मानना है कि यहां अगर जलेबी का प्रसाद चढ़ाया जाए तो माता जल्दी प्रसन्न होती है, धीरे-धीरे दीपावली के दिन तो अब यहां काफी तादाद में लोग पहुंचने लगे हैं.

शहडोल के महालक्ष्मी मंदिर पर लोगों की अटूट श्रद्धा




पहाड़ी के ऊपर स्थित महालक्ष्मी मंदिर

शहडोल जिला मुख्यालय से लगभग 5 से 7 किलोमीटर दूर सिंदूरी ग़ांव में एक छोटे से पहाड़ी के ऊपर स्थित है महालक्ष्मी मंदिर. यह एक ऐसा भव्य मंदिर जहां चारों ओर प्राकृतिक छटा देखने को मिलेगी और मंदिर प्रांगण लगभग 10 से 12 एकड़ में फैला हुआ है. कई देवी-देवताओं के दर्शन आपको इस छोटी सी जगह पर एकसाथ हो जाएंगे. धीरे-धीरे यह मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है. इस मंदिर में कई सदी ईसवी पुरानी पुरातात्विक महत्व की एक प्रतिमा है, जिसे लोग माता लक्ष्मी के नाम से पूजते हैं. इस मंदिर में विराजी मां लक्ष्मी पर लोगों का इतना अटूट भरोसा है कि लोगों का मानना है कि कोई भी संकट हो, कोई भी मनोकामना हो, माता से सामने सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.

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कई नामों से प्रसिद्ध है मंदिर

महालक्ष्मी मंदिर के पुजारी उमाशंकर तिवारी इस मंदिर की देखरेख करते हैं, वह बताते हैं कि इस मंदिर को आसपास के ग्रामीण ठड्डी देवी, डोंगरहाई देवी, भुवनेश्वरी देवी कई नामों से जानते हैं. पहले तो यहां के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग यहां पहुंचते थे लेकिन अब साल दर साल शहरी क्षेत्रों के लोग भी पहुंचने आने लगे हैं. दीपावली के दिन तो यहां भक्तों की अच्छी भीड़ होती है.

10वीं शताब्दी की है प्रतिमा

पुजारी उमाशंकर तिवारी बताते हैं कि यहां महालक्ष्मी की प्रतिमा अद्भुत है. पुजारी की मानें तो ये प्रतिमा 10वीं शताब्दी की है, और इसमें महालक्ष्मी का ही स्वरूप नज़र आता है. प्रतिमा के एकदम नीचे कमल का आसन है, गणेश जी इनके वाहन हैं. इस प्रतिमा में जो निशानियां है गणेश जी, मोर और फिर शेर ये तीनों वाहन होने के कारण महालक्ष्मी स्वरूप का यहां वर्णन है, देवी पुराण में इनके वर्णन के आधार पर माता भुवनेश्वरी के तौर पर इन्हें जाना जाता है. दीपावली के दिन यहां काफी अच्छी भीड़ होती है, दीप दान देने के लिए शहरवासी यहां आते हैं,पास में एक डैम है जहां दीप प्रज्वलिति कर दान किया जाता है.

देवी को जलेबी का प्रसाद अतिप्रिय

पुजारी उमाशंकर तिवारी कहते हैं कि यहां विराजी देवी को मिष्ठान का प्रसाद अति प्रिय है, उसमें भी खासकर जलेबी का प्रसाद. उमाशंकर तिवारी बताते हैं कि यहां ज्यादातर भक्त जलेबी का ही प्रसाद चढ़ाते हैं. ऐसी मान्यता है कि अगर जलेबी का प्रसाद चढ़ाकर कोई भी मनोकामना यहां मांगी जाएं तो वह तुरंत पूर्ण होती है. स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां कोई भी मन्नत मांगता है तो वह जरूर पूरी होती है. यहां आने वाले भक्तों का इस मंदिर पर अटूट आस्था है.

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