शहडोल। शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है, यहां चारों ओर जंगल ही जंगल पाए जाते हैं, या यूं कहें कि इस क्षेत्र को प्रकृति का वरदान मिला हुआ है. यहां कई ऐसे अद्भुत पेड़ पौधे हैं, जो आदिवासी समाज के लोगों के लिए जीवन यापन का बड़ा माध्यम है. इन्हीं में से एक महुआ का पेड़ है. महुआ का पेड़ काफी कीमती होता है, इसका फूल, फल सब कुछ बहुत बहुमूल्य होता है. साल भर लोग इसके फल और फूल का इंतजार करते हैं, क्योंकि यह काफी कीमती दामों पर बिकता है, या यूं कहें कि आदिवासियों का ये बटुआ माना जाता है. मुश्किल घड़ी में काम आने वाला धन माना जाता है, लेकिन इस बार आदिवासियों के इस बटुए पर भी कुदरत का कहर बरपा है. इस बिगड़ते मौसम ने महुआ की फसल को भी चौपट कर दिया है.
मौसम की मार, महुआ की फसल बेकार: शहडोल जिले में काफी तादात में महुआ के पेड़ पाए जाते हैं. जब महुआ के पेड़ पर फूल लगते हैं तो उसे समेटने के लिए आदिवासियों में एक अलग ही क्रेज देखा जाता है. आदिवासी समाज के लोग बड़े ही उत्साह के साथ महुआ के फूल को बटोरने जाते हैं, फिर उसे घर लाकर सुखाते हैं. उसके बाद अच्छी कीमत पर बेचते हैं. जिससे उन्हें पैसे भी मिल जाते हैं और उनका काम भी चल जाता है. इसीलिए महुआ के फूल को आदिवासियों का बटुआ भी कहा जाता है. आदिवासी समाज के लोग इस मौसम में सुबह-सुबह इकठ्ठे होकर महुआ के फूल बटोरने जाते हैं. कभी कभी वे रात-रात भर महुआ के पेड़ के नीचे उसकी रखवाली करते हैं. मौजूदा साल महुआ के फसल पर भी कुदरत का कहर बरपा है. अचानक की मौसम बिगड़ा है. पिछले 15-20 दिन से जब से महुआ की फसल आनी शुरू हुई है, तभी से मौसम ने भी बिगड़ना शुरू किया है. अब आलम यह है कि जिस तरह से आसमान में बादल आते हैं, आंधी तूफान चलता है और बिजली चमकती है, उसकी वजह से महुआ की फसल नष्ट हो चुकी है.
बारिश, बादल और ओला ने सब बर्बाद कर दिया: पिछले 15-20 दिन से महुआ की फसल आनी शुरू हुई है. महुआ के पेड़ पर महुआ के फूलों का लगना शुरू हुआ है. उसी समय से ही मौसम ने करवट बदली है, कभी बारिश होती है कभी बादल आते हैं. महुआ के फसल के लिए यह सभी बहुत घातक हैं. बादल गरजना, बिजली चमकना, ओले गिरना यह महुआ की फसल को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. बारिश के चलते जो थोड़ी बहुत महुआ की फसल आ रही, उसे लोग सुखा नहीं पा रहे हैं. वह नष्ट हो जा रही है. इन दिनों तो आलम यह है कि पेड़ों के नीचे महुआ के फूल गिरते रहते हैं, लेकिन कोई उसे समेटने वाला नहीं है. लोग अब महुआ की फसल को समेटने ही नहीं जाते हैं.
मुश्किल घड़ी का सहारा: देखा जाए तो महुआ की फसल ग्रामीणों के लिए मुश्किल घड़ी का एक बहुत बड़ा सहारा है. महुआ की फसल पर ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे बड़ा अधिकार महिलाओं का होता है. इसे समेटने के लिए भी ज्यादातर महिलाएं ही जाती हैं. सुखाने से लेकर बेचने तक का काम महिलाएं ही करती हैं. इससे जो पैसे आते हैं, उसका इस्तेमाल भी ज्यादातर जगहों पर महिलाएं ही करती हैं, इसलिए महुआ की फसल को महिलाओं का ही पैसा माना जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि साल भर वह इसका इंतजार करते हैं कि महुआ की फसल आएगी और वह उससे कुछ पैसे बनाएंगे, लेकिन मौजूदा साल बड़ा झटका लगा है. ग्रामीणों की मानें तो महुआ की फसल को बेचकर वह कुछ पैसे कमा लेते हैं लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हो पाएगा क्योंकि फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई है.
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मार्च अप्रैल का महीना उत्सव वर्ष: ग्रामीण क्षेत्रों में कई सालों तक सेवा देने वाले आदिवासी किसानों के बीच लगातार काम करने वाले पूर्व ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी अखिलेश नामदेव बताते हैं कि महुआ एक ऐसी फसल है, जो ग्रामीण किसान आदिवासी किसानों के लिए उत्सव वर्ष लेकर आता है. देखा जाए तो शहडोल संभाग ही पूरा आदिवासी इलाका है. यहां के अधिकांश लोगों का जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन वन उपज है. वन उपज में महुआ अपनी प्रमुख भूमिका रखता है. यही वजह है कि मार्च और अप्रैल का महीना हमारे ग्राम वासियों द्वारा और आदिवासियों द्वारा उत्सव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है. इसके फल को इसके फूल को सभी किसान धनार्जन करने में इस्तेमाल करते हैं. इस बार जैसे ही महुआ के फूल गिरने की स्थिति आई वैसे ही बादल ओला पानी गिरने की वजह से फसल नष्ट हो गई. आदिवासी किसानों की आर्थिक स्थिति में भी इसका असर देखने को मिलेगा.