शहडोल। आदिवासी जिला शहडोल ऐतिहासिक, पुरातात्विक, भौगोलिक और सांस्कृतिक तौर पर काफी ज्यादा समृद्ध है, पर्यटन दिवस के इस विशेष अवसर पर हम बताएंगे की शहडोल जिले में पर्यटन को लेकर कितनी संभावनाएं हैं और इनका विकास आखिर अब तक क्यों नहीं हो पाया. जिले में आलम ये है कि इन धरोहरों को संभालने वाला कोई नहीं है, इन ऐतिहासिक जगहों की सुरक्षा करने वाला कोई नहीं है. शहडोल को अगर पर्यटन का केंद्र बना कर देखा जाए तो यहां पर अपार संभावनाएं हैं, जो पर्यटकों को बहुत लुभा सकती हैं और शहडोल संभाग पर्यटन का बहुत बड़ा केंद्र बन सकता है.
शहडोल का पुराना नाम विराट नगरी
शहडोल संभाग को बहुत ही करीब से जानने वाले पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार बताते हैं की शहडोल प्राचीन समय में विराट नगरी के नाम से प्रसिद्ध थी और यहां पर पुरातत्व और पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र बन सकते हैं. यहां अकूट प्राकृतिक धरोहर हैं और पर्यटन की दृष्टि से यहां ऐतिहासिक, पुरातत्व, जैविक और ईको टूरिज्म की बहुत सारी संभावनाएं हैं जो पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.
शहडोल मुख्यालय में कलचुरी कालीन चमत्कारी ऐतिहासिक विराट मंदिर, बाणगंगा ऐतिहासिक कुंड, सोहागपुर की प्राचीन गढ़ी, वहां पर स्थित बावड़ी, इसके अलावा बूढ़ी माई मंदिर, जिला पुरातत्व संग्रहालय, मोहन राम मंदिर, पंचायती मंदिर स्थित हैं. जिला मुख्यालय के चारों दिशाओं में कलचुरी कालीन गणेश जी की प्रतिमा स्थापित हैं, जो बेहद अद्भुत हैं.
शहडोल के पर्यटन स्थल
शहडोल मुख्यालय से दक्षिण की ओर कंकाली देवी मंदिर पर्यटन का बड़ा केंद्र है. इसके बाद सिंहपुर में पचमठा और काली मंदिर है जो ऐतिहासिक स्थल है. इसके अलावा लखबरिया की गुफाएं हैं जो दूसरी सदी से लेकर छठी सदी के बीच की हैं.
वहां पर एक गुफा में अर्धनारीश्वर शिवलिंग है. इसके अलावा जैतपुर के पास पुरातत्व और पर्यटन की दृष्टि से भटिया देवी मंदिर है. शहडोल से उत्तर की ओर जयसिंह नगर के पास घाटी डोंगरी में देवी मंदिर और वहीं पर प्रौगेतिहासिक काल के पुराने फॉसिल्स वाले क्षेत्र जो अंतोली में हैं, वो देखने को मिलेंगे. वहीं पर राम पथ गमन जो की गांधीया नामक स्थान पर है, जहां राम भगवान रुके हुए थे. अपने वनवास के दौरान वो भी पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकता है. ब्यौहारी की ओर थोड़ा और आगे चलें तो प्राचीन स्थल गैबी नाथ जी की गुफाएं हैं और वहीं पर गोदावल का मंदिर और मेला स्थान भी है. मऊ में पुरातत्व स्थल है जो राज्य की ओर से संरक्षित भी है. जहां पर छठवीं सदी से लेकर 13वीं और 14वीं सदी तक के कला शिल्पन और मंदिर वास्तु देखने को मिलती है.
शहडोल की खूबसूरती दुनिया को देखनी बाकी
पर्यटन विशेषज्ञ श्रीधर राव को घूमना बहुत ज्यादा पसंद है और अक्सर ये देश के अलग-अलग हिस्सों में घूमते रहते हैं. शहडोल के रहने वाले श्रीधर राव बताते हैं कि शहडोल सांस्कृतिक तौर पर ऐतिहासिक तौर पर और पुरातात्विक दृष्टि से बहुत रिच है. हरा-भरा है, हर तरह से समृद्ध है. यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन शहडोल में शासन की उदासीनता कह लीजिए और उस उदासीनता की वजह से यहां के पर्यटन पर किसी का ध्यान नहीं गया.
शहडोल में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन अब इस क्षेत्र का दुर्भाग्य कहिए या फिर कुछ और कह लीजिए इतने साल हो गए, देश 21वीं सदी में पहुंच गया, लेकिन अब तक पर्यटन के क्षेत्र में इस आदिवासी अंचल को विकसित करने के बारे में किसी ने नहीं सोचा और ना ही यहां की धरोहरों को समेटने, सहेजने के बारे में अब तक किसी ने ध्यान दिया.