शहडोल। अन्न उगाना कितना कठिन काम है यह अन्नदाता ही जानता है. बदलते वक्त के साथ खेती का तरीका बदला, किसानी के तरीके भी बदल गए. इस उम्मीद के साथ कि खेती के तरीके बदलने से मुनाफा कमाया जा सकता है. लेकिन अन्नदाता के लिए इन तरीकों से भी खेती में आमदनी नहीं बढ़ाई जा सकी. किसानों का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो दूसरे के खेतों पर या तो रेंट में खेती करते हैं या फिर बटाईदार के तौर पर खेती करता है. ऐसे किसानों की स्थिति और खराब हो जाती है, और मुनाफा कमाना उससे भी ज्यादा मुश्किल. साल दर साल इन किसानों की परेशानी बढ़ती जा रही है.
खेती पर मौसम की मार
खेती हर वर्ष लाभ का सौदा ही बने यह तय नहीं है. क्योंकि खेती बहुत कुछ मौसम पर भी निर्भर करता है. अगर प्राकृतिक आपदा आ गई तो फिर खेती में नुकसान तय है. पिछले कुछ सालों से जलवायु परिवर्तन भी देखने को मिल रहा है. कभी बारिश हो जाती है, तो कभी ओले गिरने लगते हैं. बारिश के चक्र में बहुत कुछ परिवर्तन देखने को मिला है. जिससे किसानों की फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है. उन्नत खेती के दौर में तरह-तरह के रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में फसलों पर तरह-तरह के रोग भी आते हैं. जिससे किसानों की फसल को नुकसान होता है और उनके निदान में खेती की लागत भी बढ़ती है.
किराए पर जमीन लेकर खेती करना मुश्किल
किसान भैयालाल सिंह दूसरे की जमीन रेंट पर लेकर खेती करते हैं. भैयालाल ज्यादातर धान और गेहूं उगाते हैं. लेकिन इन दिनों वह सब्जियां लगा रहे हैं. वहीं अचानक मौसम बदलने से उनका काफी नुकसान हो गया. तीन-चार दिन की लगातार बारिश और ओलाबारी ने उनकी फसल को काफी नुकसान पहुंचाया. बाकी कसर कोरोनाकाल ने पूरी कर दी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसान को कैसे नुकसान होता है, और कैसे जो पूंजी वह खेती में निवेश करता है, उसे निकालना तक मुश्किल हो जाता है. भैयालाल बताते हैं कि जो पैसा उन्होंने कर्ज में लिया था उसे वह अब उसे चुका नहीं पा रहे हैं. ऐसा स्थिति सिर्फ इनकी ही नहीं है बाकी किसान भी धीरे-धीरे कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं.
ऐसे बढ़ती हैं किसानों की मुश्किलें
भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह कहते हैं कि किराए पर खेत लेकर खेती करने की प्रथा बहुत पुरानी है. जिन किसानों के पास जमीन होती है और अगर किसी कारण वह खेती नहीं कर पाते हैं, तो वह अपनी जमीन किराए पर दे देते हैं. जिसके बाद जो किसान किराए पर जमीन लेता है, उसे जमीन के मालिक को साल में एक बंधी हुई रकम, कई बार रकम के साथ में कुछ गल्ला और तय अनाज देना होता है. भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष का कहना है कि ऐसे में खेती करने वाले किसान की हालत शुरू में ही बिगड़ जाती है और वह कभी भी मुनाफा नहीं कमा पाता. शासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए.
किसानों की मदद के लिए योजना बनाई जानी चाहिए. क्योंकि जिन किसानों के पास जमीन नहीं होती है उन्हें लोन भी नहीं मिल पाता है. फिर वह मजबूरन अपनी निजी पूंजी और साहूकार से कर्ज लेकर खेत में निवेश करते हैं. वहीं जब फसल को घाटा होता है तो वह कर्ज तले दब जाते हैं.
- भानु प्रताप सिंह, जिला अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ
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लागत बढ़ने से होता है नुकसान
मौजूदा हालातों में खेती यंत्रों पर आश्रित हो गई है, या कहें कि मशीनरी पर शिफ्ट हो चुकी है. खेतों की जुताई से लेकर कटाई करने तक हर चीज में मशीन का उपयोग होता है. उन्नत खेती करने पर ज्यादातर महंगे रसायनिक खाद की जरूरत होती है. क्योंकि मजदूर भी आजकल बहुत कम मिलते हैं, इसलिए मजदूरी भी ज्यादा लगती है. बीज के दाम बढ़ गए हैं, खाद महंगा हो गई है. कृषि में उपयोग होने वाली मशीनें भी काफी महंगी मिलती है. पेट्रोल-डीजल के दाम भी ऊंचाई छू रहे हैं. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि खेती करने के लिए किसानों को काफी लागत लगानी पड़ती है. वहीं अगर मौसम की मार पड़ती है या किसी वजह से फसल खराब होती है, तो किसान को काफी नुकसान उठाना पड़ता है.
शासन को खेती की लागत को कम करने पर जोर देना चाहिए. खेती के लिए जो बीज और खाद मिलती है, उनके दाम कम करने चाहिए. डीजल-पेट्रोल भी सब्सिडी पर मिलने चाहिए, जिससे खेती की लागत ना बढ़े. इसके अलावा कम ब्याज पर ऋण की भी व्यवस्था होनी चाहिए. साथ ही जिन किसानों के पास खेत नहीं है उन्हें खेती के लिए ऋण कैसे मिले इस पर भी ध्यान देना चाहिए.
- सत्येंद्र नाथ, कृषि एक्सपर्ट