शहडोल। कहते हैं जहां चाह वहां राह, कुछ ऐसा ही कर दिखाया है कुदरी गांव के रहने वाले किसान खड़ग सिंह ने. जिन्होंने जल संरक्षण की दिशा में ऐसा नायब काम किया है जो लोगों के लिए एक बड़ा उदाहरण बन सकता है. बारिश के पानी को बूंद-बूंद के साथ संचय करना कोई खड़ग सिंह से सीखे. विश्व जल दिवस में देखिये वाटर कंजर्वेशन पर ईटीवी भारत की ये स्पेशल रिपोर्ट...
बूंद-बूंद पानी का संचय
शहडोल जिला मुख्यालय से लगे कुदरी गांव में किसान खड़ग सिंह रहते हैं. जो कई सालों से करीब 15 से 16 एकड़ जमीन पर खेती करते आ रहे हैं. अपने खेतों पर हर सीजन की फसल लगाते हैं लेकिन खेती में जो सबसे बड़ी जरूरत की चीज होती है, पानी की उपलब्धता अगर पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है तो फिर बेहतर खेती संभव नहीं है और ये समस्या अधिकतर किसानों के पास देखने को मिलती भी है. भले ही किसान खेती के लिए बोर की व्यवस्था कर ले, लेकिन ज्यादा रकबे में जब खेती करने की बात आती है तो पानी की समस्या उसे भी होती ही है. कहीं सिंचाई के लिए पानी पूरा नहीं होता या फिर वॉटर लेवल कम होने की वजह से बोर भी काम करना बंद कर देता है.
बूंद-बूंद बचाई
लेकिन इस समस्या से निजात पाने के लिए किसान खड़ग सिंह ने एक ऐसी तरकीब निकाली, जो अब लोगों के लिए बड़ा उदाहरण बन गया है. आपने यह कहते तो सुना ही होगा कि बरसात के पानी को बूंद-बूंद बचाइए. एक बूंद भी पानी को व्यर्थ ना जाने दीजिए और खड़ग सिंह ने ये करके दिखाया है. जितना भी बारिश का पानी उनके खेतों में आता है और उनके आसपास के दायरे में बरसात का व्यर्थ पानी बहता हुआ मिलता है. खड़ग सिंह उस बूंद बूंद पानी का संचय करते हैं और फिर उस पानी से वो तीन सीजन में खेती भी करते हैं. अलग-अलग फसलों की खेती करते हैं.
तालाब में बारिश के पानी का बूंद-बूंद संचय
किसान खड़ग सिंह बताते हैं कि शुरुआत में जब वह खेती करते थे तो उन्हें पानी की कमी होने लगी थी. तब उन्होंने यह तरकीब सोची थी और उनके दिमाग में आया कि जो उनके खेतों में पानी आता है और व्यर्थ बहकर चला जाता और कोई भी उसका इस्तेमाल नहीं करता, क्यों ना उस पानी को रोक दिया जाए और उसे खेत में ही कहीं पर संग्रहित किया जाए अलग-अलग जगहों पर और इसके लिए उन्होंने पहले तो बरसात के पानी को अपने खेत में ही रुकने की व्यवस्था बनाई. जहां से बरसात में पानी का एक बार आता है. वहां पानी को रोका और जो भी पानी उनके आसपास के दायरे से व्यर्थ बहता है. जिसका कोई इस्तेमाल नहीं होता है. बारिश में उसे वो अपने खेतों पर लाते हैं और उस पानी का संचय करने के लिए खेत में ही 3 तालाब का निर्माण कराया और उस पानी को उन तालाबों में शिफ्ट करने की व्यवस्था बनाई.
वॉटर मैनेजमेंट
एक तालाब में तो उसी जगह से जहां वह पानी को रोकते हैं. वहीं से ओवरफ्लो होकर तालाब में जाता है और जब वह तालाब फुल हो जाता है, तो उसे ढ़क कर दिया जाता है और फिर बाकी के दो तालाबों में बकायदे पंप लगाकर बारिश के समय में उसे भरा जाता है. ताकि वो भी आने वाले समय के लिए फुल हो जाएं और यह तालाब छोटे नहीं अच्छे खासे बड़े बड़े तालाब हैं. जिनसे अच्छे खासे रकबे की सिंचाई होती है और फिर इसी तालाब के पानी से वह तीन सीजन की खेती करते हैं और खेती कम से कम 15 से 16 एकड़ के रकबे में अलग-अलग फसलों की करते हैं. जिसमें वो इन्हीं तालाबों के पानी से सिंचाई भी करते हैं और उन्हें अब अपने खेतों में पानी की कभी कमी नहीं होती है.
जानिए इससे क्या फायदे हुए ?
खेत में तीन तालाब बन जाने से और उसमें हर समय पानी भरा रहने से पहला तो उनके खेतों में वाटर लेवल सुधर गया उनके खेत में ही नहीं बल्कि आसपास के जो दूसरे खेत भी हैं और दूसरे लोगों की जमीन है वहां भी वाटर लेवल सुधर गया दूसरा खेतों में बरसात में पानी जब भर जाता है तो हर सीजन में सिंचाई के काम आता है इसके अलावा वह उन्हीं तालाबों में मछली पालन का भी काम करवाते हैं.
खेती के लिए नहीं होती पानी की कमी
जिससे कुछ पैसे की आय हो जाती है और इतना ही नहीं जो समस्या आती है कि बोर कराने के बाद पानी सिंचाई के लिए पूरा नहीं हो पाता कम पानी निकलता है या फिर बोर काम करना ही बंद कर देता है तो वह समस्याएं भी दूर हो गई क्योंकि तालाब में पानी भरा रहने से वाटर लेवल भी मेंटेन रहता है. इस तरह से किसान खड़ग सिंह बरसात के पानी का बेहतर इस्तेमाल कर अब काफी खुश हैं. क्योंकि उनको अपनी खेती में अब कभी पानी की कमी नहीं होती, साथ ही बरसात के पानी का एक अच्छे तरीके से वो संरक्षण भी कर रहे हैं जिससे उन्हें आत्मिक सुकून भी मिलता है। किसान खड़ग सिंह बताते हैं कि ये सबकुछ उन्होंने खुद की सोच से तैयार किया है.
हर सीजन में अलग अलग फसलों की खेती
किसान खड़ग सिंह बताते हैं कि वह करीब 15 से 16 एकड़ रकबे में खेती करते हैं और कई सीजन की खेती करते हैं. जिसमें धान अरहर उड़द तिल खरीफ सीजन में खेती करते हैं, तो रबी सीजन में गेहूं चना मटर और 12 महीने अपने खेतों पर गन्ना भी लगाते हैं इसके अलावा सब्जियों की भी खेती किसान खड़ग सिंह अपने खेतों पर करते हैं.
मेहनत और संघर्ष का परिणाम है
पूर्व कृषि विस्तार अधिकारी अखिलेश नामदेव कहते हैं कि वो उनसे लंबे समय से जुड़े हैं और उनके संघर्ष और मेहनत को बहुत करीब से देखा है अखिलेश नामदेव कहते हैं कि खेती में पानी की आवश्यकता अमूल्य है, किसान खड़ग सिंह के बारे में अखिलेश नामदेव बताते हैं कि पहले जब ये खेती किया करते थे तो उन्हें ज्यादा फायदा नहीं मिल पाता था लेकिन इसके बाद जब उनसे चर्चा हुई कि उसे कैसे बेहतर किया जाए तो उसके बाद उन्होंने अपने खेतों में ऐसा स्ट्रक्चर बनाया की खेत का पानी खेत में ही रह जाए, और वो इसमें सफल भी हुए और उसका परिणाम ये हुआ कि खेत का पानी खेत में ही रहा और उसके बाद उनके खेती में भी इसका असर देखने को मिला.
फसलों के साथ साथ होता है मछली पालन
उनमें आर्थिक सुधार होने लगा. उन्हें खेती से अच्छा उत्पादन मिलने लगा. आर्थिक स्थिति भी उनकी धीरे-धीरे सुधरने लगी और ये उनके मेहनत और संघर्ष का परिणाम है जो दिखाई देने लगा है. आज वह गन्ने की भी फसल लगाते हैं. सब्जी, गेहूं, धान और हर तरह की फसलों की खेती करते हैं. खेतों में 3 तालाब बनाए हैं तो उसमें मछली पालन भी कर लेते हैं. जिससे कुछ आय भी हो जाती है. आसपास का वॉटर लेवल भी बना रहता है. वॉटर लेवल को बढ़ाने में, वर्षा जल का मैं कहूंगा कि जीरो रन ऑफ वाटर है मतलब एक बूंद भी पानी का अपने खेत से बाहर ना जाने देना और इसका इस्तेमाल करना इससे बेहतर काम और क्या हो सकता है.
वॉटर कंजर्वेशन का नायब
गौरतलब है कि किसान खड़ग सिंह ने जिस तरह से वाटर कंजर्वेशन का एक नया तरीका निकाला और अपनी खेती के लिए पानी की समस्या को दूर किया साथ ही खेतों में वाटर लेवल को भी मेंटेन किया वाकई काबिले तारीफ है. बारिश के पानी का बूंद-बूंद इस्तेमाल कर उन्होंने वाटर कंजर्वेशन की दिशा में एक नायाब उदाहरण पेश किया है. किसान खड़ग सिंह की इस सोच और उनके काम के बारे में जानकर हर कोई अब उनकी तारीफ कर रहा है और ये सबकुछ किसान खड़ग सिंह ने अपनी मेहनत के दम पर बनाया है, अगर हर कोई बरसात के पानी का इस तरह से इस्तेमाल करने लग जाए और बरसात के पानी को व्यर्थ ही बहकर व्यर्थ न जाने ना दे, तो निश्चित तौर पर जल संकट से पार पाया जा सकता है.