शहडोल। महंगाई की मार से इन दिनों आम जनता त्रस्त है. जिले में पेट्रोल और डीजल कब का शतक लगा चुका है. रसोई गैस का सिलेंडर (cost of cylinder) भी हजार रुपये पार करने को आतुर है. वर्तमान में घरेलू गैस 907 रुपये 50 पैसे प्रति सिलेंडर बिक रही है. ये सभी आम इंसान के जरूरत का अहम हिस्सा है. इनके बिना इंसान का गुजारा मुश्किल है. शहडोल जिला भले ही आदिवासी बाहुल्य (Tribe District) जिला है, लेकिन बदलते वक्त के साथ शहर छोड़िए, अब गांव-गांव घरेलू रसोई गैस का ही इस्तेमाल हो रहा है.
बायो गैस बन सकती है बड़ा सहारा
इमरजेंसी में ही लोग दूसरे साधन का इस्तेमाल खाना बनाने के लिए करते हैं. ऐसे में रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने सभी को त्रस्त कर दिया है. लोगों के लिए रसोई गैस (Kitchen Gas) की टंकी को फिर से रिफिल कराना अब इतना आसान नहीं रह गया है. एक तरह से कहा जाए तो अब रसोई गैस की महंगाई की मार से लोग परेशान हैं. ऐसे में महंगाई के इस दौर में ग्रामीण अंचलों में बायो गैस (गोबर गैस) (Bio Gas) लोगों के लिए बड़ा सहारा बन सकती है.
रसोई गैस पर भी महंगाई की मार
एलपीजी रसोई गैस के बढ़ते दाम ने आम जनता का हाल बेहाल कर दिया है. ऐसे में अब लोगों के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया है कि वो करें तो करें क्या. लोग घरेलू रसोई गैस का ऑप्शन तलाश रहे हैं, जिससे इस महंगे रसोई गैस से छुटकारा मिल सके. हलांकि अगर हम अपने पुराने साधनों पर जाएं तो ग्रामीण क्षेत्रों में किसान परिवारों में अक्सर इस्तेमाल होने वाली गोबर गैस (बायो गैस) सयंत्र एक बड़ा ऑप्शन इस महंगाई के दौर में ग्रामीणों के लिए बन सकता है.
गोबर गैस से हो सकता है समाधान
देखा जाए तो गोबर गैस कोई नया नहीं है. पहले भी ग्रामीण क्षेत्रों में किसान परिवारों में लोग गोबर गैस का इस्तेमाल करते थे. आज भी जिले के कई आदिवासी गांव ऐसे हैं, जहां सिर्फ गोबर गैस का ही इस्तेमाल हो रहा है, इससे लोग फ्री में रसोई के इस्तेमाल के लिए गैस पा रहे हैं. इसके साथ ही उन्हें अच्छा खाद भी मिल जा रहा है. इसे लगाने के लिए सरकार की अच्छी योजना भी है, जिससे इसे लगाने वाले हर वर्ग के लोगों को अच्छा अनुदान भी मिल रहा है. मतलब इसे हर वर्ग का व्यक्ति आसानी से अपने घर पर लगवा भी सकता है, ऐसे में गोबर गैस सयंत्र इस बढ़ती महंगाई में लोगों की समस्या का बड़ा समाधान बन सकता है. और इस महंगाई की मार से लोगों को राहत भी दिला सकता है.
बायो गैस (गोबर गैस) प्लांट के लिए क्या है योजना ?
बायो गैस योजना के बारे में कृषि विभाग के एसडीओ सीआर अहिरवार बताते हैं कि वैसे तो बहुत सारी योजनाएं संचालित है, इनमें से एक बायोगैस निर्माण (गोबर गैस) योजना भी संचालित है हो रही है. यह बायोगैस संयंत्र निर्माण के लिए चलाई जा रही है. इसमें एमपी एग्रो के माध्यम से किसानों को अनुदान भी दिया जाता है. सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ये अनुदान 11,000 रुपये हैं, और एसटी एससी वर्ग के लोगों के लिए ₹12,000 का अनुदान दिया जाता है.
इस तरह तैयार किया जाता है प्लांट
इसके लिए एक प्लांट बनाकर उसमें गोबर डाला जाता है. उससे गैस बनाई जाती है. इसके बाद बने खाद को खेती के लिए इस्तेमाल कर लिया जाता है. इससे फायदा ये होता है कि जब गैस बनती है तो वह रसोई के काम आती है. इससे रसोई गैस के महंगे सिलेंडर को भरवाने से निजात मिलती है. इससे जैविक खाद भी बन जाता है, जो किसानों की खेतों की फसल के काम आता है. एक अनुमान के मुताबिक इस बायो गैस प्लांट को लगाने में 15 से 20 हजार रुपए का टोटल खर्च आता है, जिसमें ज्यादातर पैसा अनुदान में मिल जाता है.
इस योजना के लिए कौन-कौन पात्र होगा ?
इसके बारे में कृषि विभाग के एसडीओ बताते हैं कि इसके लिए सबसे बड़ी पात्रता यही है कि जो भी व्यक्ति बायोगैस संयंत्र लगवाना चाहता है, उसके पास मवेशी होना अत्यंत आवश्यक है. अगर किसान 2 घन मीटर या 3 घन मीटर का बायोगैस संयंत्र बनवाना चाहता है, तो उसके पास कम से कम पांच से सात मवेशी होने चाहिए, जिससे गोबर गैस संयंत्र चलाने के लिए जो गोबर की जरूरत होती है हर दिन के लिए उसकी पूर्ति होती रहे. मवेशी पात्रता शर्त में सबसे ज्यादा अहम है. बाकी जमीन के प्रबंधन की बात है तो किसके पास कितनी जमीन है इसका बंधन नहीं है.
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ऐसे करें अप्लाई
अगर कोई व्यक्ति अपने घर में बायो गैस संयंत्र (गोबर गैस) का प्लांट लगाना चाहता है तो वह अपने क्षेत्र के क्षेत्रीय ग्रामीण विस्तार अधिकारी से संपर्क करके प्लांट लगवा सकता है. वहीं वरिष्ठ कृषि अधिकारी से संपर्क करके आवेदन में उपयुक्त डाक्यूमेंट्स लगाकर आवेदन कर सकता है. यह आवेदन वरिष्ठ कृषि अधिकारी के पास आता है. वहां से जिले उप संचालक के पास जाता है. वहां से फॉर्म को स्वीकृति प्रदान की जाती है. स्वीकृत के बाद आदेश हो जाता है. उसके बाद उतने गड्ढे खुदवा लेते हैं और गड्ढा खुदवाने के बाद जो राशि है, उनके अकाउंट में ट्रांसफर हो जाती है.