शहडोल। सती प्रथा देश की सबसे दर्दनाक परंपरा है, जिसके तहत सैकड़ों साल पहले महिलाओं को निर्ममता से मृत पति की चिता में जिंदा जला दिया जाता था. इसके अलावा कुछ पत्नियां अपने पति की मौत के बाद खुद ही सती हो जाती थीं. सती प्रथा भारतीय समाज के लिए सैकड़ों सालों तक अभिशाप बन कर रही है. इस दर्दनाक प्रथा को खत्म करने में राजा राममोहन राय के योगदान कभी नहीं भुलाया नहीं जा सकता है. सती प्रथा भले ही खत्म हो चुकी है, लेकिन आज भी उसके अवशेष या यूं कहें कि प्रमाण जिंदा हैं. बघेलखंड के शहडोल जिले का एक गांव आज भी इस परंपरा का गवाह है. यहां आज भी सती चबूतरा मौजूद है, जहां सती स्तंभ, सती फलक स्थापित हैं. ये सभी 21वीं सदी में भी लोगों के लिए चर्चा का विषय है.
शहडोल जिला मुख्यालय से 15-20 किलोमीटर दूर स्थित है सिंहपुर गांव. जहां देश की सबसे दर्दनाक परंपरा के सबूत आज भी मिलते हैं. रोंगटे खड़े कर देने वाली सैकड़ों सालों तक चली सती प्रथा, के तहत महिलाओं को निर्ममता से मृत पति की चिता में जिंदा जला दिया जाता था. कुछ महिलाएं तो ऐसी भी थीं, जो खुद ही पति की चिता में सती हो जाती थीं.
अस्तित्व के लिए लड़ रही शिलाएं-स्मृतियां
सिंहपुर गांव के 82 साल के बुजुर्ग रामस्वयंवर पांडे ने बताया कि गांव में स्थित ये तीनों ही सती चबूतरे बहुत प्राचीन है. वहां पहले महिलाएं सती हुआ करती थीं. बुजुर्ग राम स्वयंवर पांडे कहते हैं कि सती चबूतरा गलत नहीं है. हम लोग तो यहां के पुराने बाशिंदा हैं. हमारे पूर्वज बताते थे कि यहां महिलाएं पहले सती हुई हैं. उन्होंने बताया कि पुरातत्व विभाग के अधीन होने के बाद सती प्रथा के ये जो प्रमाण हैं, वे अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं. इसके अलावा आसपास जो पुरातत्व मंदिर हैं, पंचमठा मंदिर है, वहां न तो पुरातत्व विभाग ध्यान दे रहा है और न ही सरकार इसके लिए कुछ कर रही है.
वनांचल आदिवासी क्षेत्र में भी महिलाएं हुईं सती
पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार बताते हैं कि सबसे पहले मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में, मालवा और महाकौशल में बहुतायत में सती पिलर, सती स्तंभ, सती फलक के सेपरेट प्रतिमाएं और उनकी स्मृति में बनाए गए हैं. जो कि आज भी शहडोल जिले में मौजूद है.
रामनाथ सिंह परमार कहते हैं कि शहडोल जिला मुख्य रूप से वनांचल क्षेत्र था. इसे आदिवासी अंचल कहना चाहिए और ये बेल्ट छिंदवाड़ा से लेकर रायगढ़ तक है. शहडोल जिला मुख्यालय के सोहागपुर, बाणगंगा क्षेत्र में भी एक सती स्मृति फलक है और फिर शहडोल से थोड़ी दूर 15 किलोमीटर दूर रजहा तालाब के ऊपर भी सती प्रथा के स्मृति फलक मौजूद हैं. साथ ही सती चबूतरे मौजूद हैं.
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खास है इनकी पहचान
पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार बताते हैं कि इनकी विशेष रूप से पहचान होती है. इन स्मृतियों में नायिका के हाथ उठे हुए होते हैं. नायिका दोनों हाथों के पंजे ऊपर की ओर उठाए दिखती हैं. साथ में प्रतिमा के दोनों किनारे चंद्रमा और सूर्य का अंकन होता है, जो स्मृति दिलाता है कि जब तक इस धरती पर सूरज और चंद्रमा है, तब तक उनकी स्मृतियां बनी रहेंगी.
पुरात्तवविदों के मुताबिक शहडोल में जिले में स्थित सती प्रतिमाएं 18वीं सदी की हैं. ये सती स्मृति के फलक जो विद्यमान हैं, वो गवाह हैं कि वनांचल आदिवासी क्षेत्र में भी महिलाएं सती हुई हैं. जो कि इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं.