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ये है स्वच्छता अभियान की हकीकत, ओडीएफ जिले में शौचालय के नाम पर रस्म अदायगी

एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को स्वच्छ बनाने का सपना देख रहे हैं और दूसरी ओर इस तरह से उनके सपनों पर पलीता लगाया जा रहा.

ये है स्वच्छता अभियान की हकीकत
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Published : Jul 18, 2019, 2:00 AM IST

शहडोल। देश के पीएम भले ही कितना भी स्वच्छता के लिए जागरूक हो या फिर लगातार स्वच्छता के लिए अपील करते हुए नजर आते हो, लेकिन राज्य के ओडीएफ जिले शहडोल का हाल कुछ और ही है,यहां शौचालय का निर्माण तो किया गया लेकिन आधी अधूरा.

ये है स्वच्छता अभियान की हकीकत


मामला शहडोल जिले के देवगवां गांव में आने वाली कटहरी, जरवाही, सेमरिया और देवगवां गांव का है, दरअसल यहां पर पीएम मोदी के स्वच्छता अभियान के तहत शौचालयों का निर्माण होना था, टेंडर भी डाले गए ठेकेदारों को टेंडर भी मिल गए,उसके बाद वहां शौचालय का निर्माण तो हुआ लेकिन सिर्फ कागजों में,सभी शौचालयों के निर्माण की राशि भी स्वीकृत कर दी गई.


इस जिले को केंद्र सरकार की तरफ से ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित भी कर दिया गया, हालांकि यहां की सच्चाई पूरी तरह से उलट है यहां शौचालय के नाम पर सिर्फ दीवार हैं या फिर दो शौचालय को मिला कर एक बनाया गया उसमें भी पाइपलाइन नहीं है,यहां के रहवासियों का कहना है कि उनको खुले में शौच जाना अच्छा नहीं लगता लेकिन जब शौचालय पूरी तरह से बना ही नहीं है तो हम क्या करें.
एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को स्वच्छ बनाने का सपना देख रहे हैं और दूसरी ओर इस तरह से उनके सपनों पर पलीता लगाया जा रहा. अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि कहीं पूरे आदिवासी जिले के गांवों का भी तो कुछ ऐसा ही हाल नहीं है. जिला कागजों में तो ओडीएफ हो गया है लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है.

शहडोल। देश के पीएम भले ही कितना भी स्वच्छता के लिए जागरूक हो या फिर लगातार स्वच्छता के लिए अपील करते हुए नजर आते हो, लेकिन राज्य के ओडीएफ जिले शहडोल का हाल कुछ और ही है,यहां शौचालय का निर्माण तो किया गया लेकिन आधी अधूरा.

ये है स्वच्छता अभियान की हकीकत


मामला शहडोल जिले के देवगवां गांव में आने वाली कटहरी, जरवाही, सेमरिया और देवगवां गांव का है, दरअसल यहां पर पीएम मोदी के स्वच्छता अभियान के तहत शौचालयों का निर्माण होना था, टेंडर भी डाले गए ठेकेदारों को टेंडर भी मिल गए,उसके बाद वहां शौचालय का निर्माण तो हुआ लेकिन सिर्फ कागजों में,सभी शौचालयों के निर्माण की राशि भी स्वीकृत कर दी गई.


इस जिले को केंद्र सरकार की तरफ से ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित भी कर दिया गया, हालांकि यहां की सच्चाई पूरी तरह से उलट है यहां शौचालय के नाम पर सिर्फ दीवार हैं या फिर दो शौचालय को मिला कर एक बनाया गया उसमें भी पाइपलाइन नहीं है,यहां के रहवासियों का कहना है कि उनको खुले में शौच जाना अच्छा नहीं लगता लेकिन जब शौचालय पूरी तरह से बना ही नहीं है तो हम क्या करें.
एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को स्वच्छ बनाने का सपना देख रहे हैं और दूसरी ओर इस तरह से उनके सपनों पर पलीता लगाया जा रहा. अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि कहीं पूरे आदिवासी जिले के गांवों का भी तो कुछ ऐसा ही हाल नहीं है. जिला कागजों में तो ओडीएफ हो गया है लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है.

Intro:note_ इसमें कई वर्जन हैं पहले अलग अलग गांव के ग्रामीणों के हैं, फिर आखिरी में जिला पंचायत के प्रभारी सीईओ अशोक ओहरी का है।

स्वच्छता अभियान का ऐसा सच जो मोदी के सपने को पहुंचा रहा ठेस, शौचालय के नाम पर इतना बड़ा 'खेल'

शहडोल- शहडोल जिला ओडीएफ जिला घोषित हो चुका है, लेकिन आज हम जो हक़ीक़त आपको दिखाने जा रहे हैं उसे देखने के बाद आप भी हैरान रह जाएंगे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को स्वच्छ बनाने का सपना देख रहे हैं और इसके लिये तरह तरह के अभियान चला रहे हैं यहां तक कि फ्री में घर घर में शौचालय तक बनवाये जा रहे हैं लेकिन मोदी के सपने को लोग किस तरह से चकनाचूर कर रहे हैं इसे देखकर आप भी हैरान रह जाएंगे।

शहडोल जिला ओडीएफ हो चुका है तो हमने भी सोचा क्यों न कुछ गांव का हाल ही जान लें, हम जिला मुख्यालय से ज्यादा दूर नहीं कुछ ही किलोमीटर के गावों में पहुंचे। और वहां जो देखा उसे देखकर हैरान रह गए, शौचालय के नाम पर यहां जिस तरह की अनियमितता देखने को मिली, और लोगों ने खुद बताया कि आखिर वो क्यों शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते कारण जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। इन गांवों के शौचालयो की हक़ीक़त देखने के बाद तो अब पूरे जिले के गावों में बने शौचालयों पर सवाल खड़े होने लगे हैं कहीं जिले के और गावों का भी तो यही हाल नहीं है।


Body:'साहब जब सही तरीके से बना हो तब न जाएं'

शहडोल जिला मुख्यालय से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है देवगवां ग्राम पंचायत और उस ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले कटहरी, जरवाही, सेमरिया और खुद देवगवां ग्राम के शौचालयों का हाल बेहाल है, कहीं एक ही जगह पर तीन शौचालय एक साथ जोड़कर बना दिये गए हैं, कहीं लोहे की जगह लकड़ी लगाई गई है, कहीं का शौचालय का गेट टूटा हुआ है, कहीं मर्यादा का गेट लगा है और स्वच्छता का शौचालय बना है, कहीं शौचालय की दीवार तो तन गई लेकिन गड्ढा नही खुदा तो कहीं पाइप नही लगा। एक तरह से कहा जाए तो इस आदिवासी बाहुल्य गावों के जितने भी लोगों के पास हम पहुंचे हर किसी के पास शिकायतों की लंबी लिस्ट थी। कई लोगों ने शौचालय के पूरा न बनने की बात कही मतलब आधा अधूरा बनाकर छोड़ दिया, किसी ने कमजोर होने की बात कही और बताया कि ये इतना कमजोर बनाया गया है कि कभी भी उनके बच्चे बुजुर्गों पर गिर सकता है वो कैसे इस्तेमाल करें, लोगों ने कहा हम बाहर नहीं जाना चाहते लेकिन जब सही से बना ही नहीं तो हम इसका इस्तेमाल कैसे करें, पहले ये पूरी तरह से बन तो जाए। इन शौचालयों की दीवार तो तान दी गई लेकिन ये अंदर से खोखला है आधा अधूरा है।

कुछ लोगों ने तो यहां तक इल्जाम लगाया कि स्वच्छता के तहत शौचालय के लिए उनसे पैसे निकलवा लिए जाते हैं, और मर्यादा के तहत जो पुराने शौचालय बने हैं उन्हे ही रिपेरिंग करवा दे रहे और उसे भी पूरा नहीं कर रहे। वो शौचालय चलने योग्य ही नहीं हैं।

जनपद सीईओ से जांच करवाएंगे

इस पूरे मामले में जिला पंचायत के प्रभारी सीईओ अशोक ओहरी ने कहा है कि जनपद सीईओ से इसकी जांच करवाई जाएगी।






Conclusion:गौरतलब है कि एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को स्वच्छ बनाने का सपना देख रहे हैं और दूसरी ओर इस तरह से उनके सपनों पर पलीता लगाया जा रहा। जिस तरह से इन गांवों के शौचालयों का हाल बेहाल है,अब सवाल खड़े हो रहे हैं कहीं इस ओडीएफ पूरे आदिवासी जिले के गावों का भी तो कुछ ऐसा ही हाल नहीं है। जिला कागजों में तो ओडीएफ हो गया है लेकिन वास्तविकता कुछ और है और बहुत गंभीर भी है, जो पूरे सिस्टम के कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा रहा है।
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