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सांसद ज्ञान सिंह के आदर्श ग्राम में नहीं आया कोई बदलाव, सड़क, बिजली, पानी की समस्या से जूझ रहा केलमनियां - कांग्रेस
शहडोल सांसद ज्ञान सिंह के आदर्श गांव केलमनियां में पिछले पांच साल में कोई बदलाव नहीं आया है. गांव में पानी सड़क जैसी कई समस्यायें जस की तस है. जिस पर ग्रामीणों का कहना है कि सांसद ने इन समस्यायों को दूर करने के लिए कोई काम नहीं किया है.
शहडोल सांसद का आदर्श गांव केलमनियां
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Published : Apr 15, 2019, 8:57 PM IST
शहडोल। कच्ची सड़कें, पानी की समस्या और गांव में फैली गंदगी, ये हालात है शहडोल सांसद ज्ञान सिंह के आदर्श गांव केलमानियां की. पांच साल पहले जब केलमनियां आदर्श गांव के लिये चुना गया था. तब यहां के लोगों को लगा था कि उनके हालात अब बदलने वाले है. लेकिन पिछले पांच सालों में ऐसा कुछ बदलाव नजर नहीं आता. गांव में सबसे बड़ी समस्या पानी की है. 2 हजार 246 लोगों की आबादी वाले आदर्श ग्राम केलमनियां में पानी के लिए केवल एक हैंडपंप है. जिसपर दिनभर पानी के लिये गांव के लोग जद्दोजहद करते नजर आते है.
कहने को तो गांव में हाईस्कूल है, स्कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि शिक्षकों की कमी से परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जबकि सड़क मार्ग कच्चा होने से बरसात में छात्रों भी नहीं आ पाते. सांसद की बेरूखी का आलम यह है कि केलमनियां के अधिकतर लोग अपने सांसद का नाम तक नहीं जानते. स्थानीय कहते है कि ज्ञान सिंह सांसद बनने के बाद गांव में केवल एक बार ही आए है.
शहडोल सांसद के आदर्श गांव में नहीं बदले हालात। ग्रामीणों का आरोप है कि सांसद बुनियादी सुविधाओं को लेकर गंभीर नहीं है. रोजगार न होने से गांव के युवा भी सांसद पर नाराजगी जाहिर करते है. उनका मानना है कि अच्छी खासी पढा़ई करने के बाद भी उन्हें रोजगार के लिए परेशान होना पड़ता है.ग्रामीणों की समस्यायें सुनने के बाद तो यही कहा जा सकता है कि केलमनियां गांव आदर्श गांव की श्रेणी में अब भी खरा नहीं उतरता. हालांकि बीजेपी से सांसद ज्ञान सिंह का इस बार पार्टी ने टिकट कांट दिया है. ऐसे में इस गांव के की और आने वाला सांसद ध्यान देता है या नहीं यह देखने वाली बात होगी.
शहडोल। कच्ची सड़कें, पानी की समस्या और गांव में फैली गंदगी, ये हालात है शहडोल सांसद ज्ञान सिंह के आदर्श गांव केलमानियां की. पांच साल पहले जब केलमनियां आदर्श गांव के लिये चुना गया था. तब यहां के लोगों को लगा था कि उनके हालात अब बदलने वाले है. लेकिन पिछले पांच सालों में ऐसा कुछ बदलाव नजर नहीं आता. गांव में सबसे बड़ी समस्या पानी की है. 2 हजार 246 लोगों की आबादी वाले आदर्श ग्राम केलमनियां में पानी के लिए केवल एक हैंडपंप है. जिसपर दिनभर पानी के लिये गांव के लोग जद्दोजहद करते नजर आते है.
कहने को तो गांव में हाईस्कूल है, स्कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि शिक्षकों की कमी से परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जबकि सड़क मार्ग कच्चा होने से बरसात में छात्रों भी नहीं आ पाते. सांसद की बेरूखी का आलम यह है कि केलमनियां के अधिकतर लोग अपने सांसद का नाम तक नहीं जानते. स्थानीय कहते है कि ज्ञान सिंह सांसद बनने के बाद गांव में केवल एक बार ही आए है.
शहडोल सांसद के आदर्श गांव में नहीं बदले हालात। ग्रामीणों का आरोप है कि सांसद बुनियादी सुविधाओं को लेकर गंभीर नहीं है. रोजगार न होने से गांव के युवा भी सांसद पर नाराजगी जाहिर करते है. उनका मानना है कि अच्छी खासी पढा़ई करने के बाद भी उन्हें रोजगार के लिए परेशान होना पड़ता है.ग्रामीणों की समस्यायें सुनने के बाद तो यही कहा जा सकता है कि केलमनियां गांव आदर्श गांव की श्रेणी में अब भी खरा नहीं उतरता. हालांकि बीजेपी से सांसद ज्ञान सिंह का इस बार पार्टी ने टिकट कांट दिया है. ऐसे में इस गांव के की और आने वाला सांसद ध्यान देता है या नहीं यह देखने वाली बात होगी.
Intro:नोट- जो बुजुर्ग कुर्सी में बैठकर बाईट दे रहा है जिसके दाढ़ी पके हुए है उसका नाम परमा यादव है, एक युवा लड़के की बाईट है उसका नाम रामकुमार है, एक नहाकर बुजुर्ग आ रहा उसका नाम जीवन हैं बाईट है, एक सांवला सा है उसका नाम कल्लू है इसकी भी बाईट है, एक महिला की बाईट है उसका नाम कमलवती है, एक कुर्सी नें बैठे मोटे से व्यक्ति की बाईट है कुर्सी में बैठा है स्कूल के इंचार्ज प्रिंसिपल जोगेश्वर संत हैं।
अपने आदर्श ग्राम के लिए सांसद नहीं बन सके आदर्श, समस्याओं से घिरे हैं ग्रामीण
शहडोल- लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है शहडोल लोकसभा सीट में 29 अप्रैल को चुनाव होने हैं, शहडोल लोकसभा सीट इस बार टिकट वितरण से ही सुर्खियों में है, क्योंकि मौज़ूदा बीजेपी सांसद का टिकट काट दिया गया, जिस पर उन्होंने नाराजगी भी जाहिर की, निर्दलीय चुनाव लड़ने तक का ऐलान कर दिया, हालांकि बाद में पर्चा नहीं भरा है। लेकिन अभी तक नाराजगी दूर नहीं हुई है। हमने भी सोचा जब सांसद टिकट के लिए इतने नाराज़ हैं तो क्यों न उनके आदर्श ग्राम में ही जाकर उनका काम देख लिया जाए। शहडोल लोकसभा सीट में सांसद का आदर्श ग्राम है केलमानिया, जो आदिवासी बाहुल्य गांव हैं जहां बैगा और कोल समाज के लोग ज्यादा पाए जाते हैं। इस गांव में आज भी 5 साल में कुछ नहीं बदला है कहने को तो आदर्श गांव है लेकिन यहां कुछ भी दूसरे गांवों से अलग विकास नहीं हुआ है। लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।
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आदिवासी बाहुल्य गांव है केलमानिया
केलमानिया ग्राम पंचायत जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर है, पहाडों के पास बसा है प्रकृति की सुन्दरता यहां आपको देखने को तो मिल जाएगी लेकिन ये गांव आज भी सांसद के गोद लेने के बाद भी आदर्श नहीं बन पाया। यहां समस्याओं का अंबार है, केलमानिया गांव अदिवासी बाहुल्य गांव है यहां बैगा और कोल समाज के लोग ज्यादा तादाद में मिल जाएंगे। इस ग्राम पंचायत की जनसंख्या टोटल 2246 है, जिसमें लगभग 1300 वोटर्स हैं। स्कूल 12 वीं तक है, एक स्वास्थ्य केंद्र भी है।
अब जानिए इस आदर्श ग्राम की हकीकत
सुनने से ही बड़ा अच्छा लगता है की सांसद का आदर्श ग्राम है, 5 साल में ये गांव कुछ अलग होगा, ये गांव दूसरे गांव के लिए एक मिसाल बनेगा, लेकिन जब हम केलमानिया गांव पहुंचे तो यहां की हकीकत कुछ अलग ही थी, यहां के ज्यादातर आदिवासी सांसद ज्ञान सिंह को पहचानते ही नहीं, अंदाज़ा लगा सकते हैं कि विकास कितना हुआ होगा।
हम जैसे ही केलमानिया गांव पहुंचे वहीं मेन रोड से लगा हुआ मिला उपस्वास्थ्य केंद्र जहां ताला लगा हुआ था, मेन रोड से थोड़ी हटकर और आगे की ओर गए तो हम पहुंचे उच्चतर माध्यमिक स्कूल जहां हमारी मुलाकात वहां के इंचार्ज प्रिंसिपल जागेश्वर संत से हुई और वहीं से समस्याओं के बारे में सुनने को मिलने लगा, प्रभारी प्राचार्य जागेश्वर संत कहते हैं कि ये स्कूल 2012 से हाई स्कूल हुआ, 2014 में हायर सेकंडरी, पिछले साल जून में नई बिल्डिंग भी मिल गई, जहां कक्षा 9वीं से 12वीं तक कि कक्षाएं लगती हैं, 6 रेगुलर टीचर हैं और 10 गेस्ट फैकल्टी।
इंचार्ज प्रिंसिपल जागेश्वर संत बताते हैं कि स्कूल की नई बिल्डिंग तो मिल गई है लेकिन अबतक बाउंडरी वाल नहीं हुआ है, मेन रोड से स्कूल तक कोई रोड नहीं है जिससे बरसात में बच्चों से लेकर फैकल्टी तक बड़ी दिक्कत होती है। बरसात में गाड़ियां स्लिप होती हैं बच्चे भी गिर जाते हैं स्कूल के चारो ओर पानी भर जाता है जिससे दिक्कत होती है।
स्कूल के बाद हम उन सड़कों से गुजरते हुए निकले जो करीब 4 से 5 साल ही पुरानी है, सड़कों के मौज़ूदा हालात को देखकर ही समझ जाएंगे कि सड़क बनाने में भ्रष्टाचार कितना हुआ है, सड़क बीच बीच से उधड़ने लगा है, गांव के कुछ मोहल्लों में सीसी रोड बने हैं तो कुछ मोहल्ले आज भी अच्छे रोड की बाट जोह रहे हैं। सड़क में जाते समय हमें नहाकर आते हुए रास्ते में जीवन नाम के एक बुजुर्ग मिल गए जिन्होंने पानी की समस्या को लेकर ही बोलना शुरू कर दिया, कहने लगे गांव में पानी की बड़ी समस्या है कोई सुनने वाला नहीं है, सड़क तो बने हैं लेकिन पिछले 4 से 5 साल में ही उनके हालात देख लीजिए।
कुछ दूर और पहुंचे तो हैंडपम्प में कुछ महिलाएं मिल गईं ये महिलाएं केलमानिया के भर्रा टोला की थीं, उन्होंने अपनी समस्या का बखान करना शुरू कर दिया, कमलवती नाम की एक महिला कहती हैं कि एक हैंड पंप हैं और इस मोहल्ले में अगर बिगड़ जाए तो फिर काफी दूर से पानी लेकर आना पड़ता है करीब 2 से 3 किलोमीटर जाना होता है ऐसे में काहे का आदर्श गांव, स्वास्थ्य सुविधा कुछ नहीं है उप स्वास्थ्य केंद्र नाम मात्र का है, कुछ भी हो जाये लंबी दूरी तय करके शहडोल जाना पड़ता है, डिलेवरी के समय भी शहडोल ही जाना होता है, अब आप बताओ कैसा आदर्श गांव।
महिलाओं से मिलने के बाद थोड़ी दूर भर्रा टोला में ही कुछ आगे तक गए तो मोहल्ले के सड़कों का असली हाल देखा, कुछ दूर जाने पर वहां के ज्यादातर लोग तो काम पर गए हुए थे, कल्लू, पजरहा, नाम के कुछ ग्रामीण मिले जो अपनी कहानी बताने लगे बोले आवास तो धीरे धीरे मिल रहा है लेकिन पानी की बहुत ज्यादा दिक्कत है,।सड़क तो हमारे मोहल्ले में है ही नहीं सांसद को हम कभी देखे ही नहीं। भर्रा टोला के ऊपर तक बसे कुछ ग्रामीणों को पानी के लिए नाला झिरिया या फिर किसी के पर्सनल बोर से पानी लाना पड़ता है।
गांव में नलजल योजना नहीं, ग्रामीण मज़दूरी पर आश्रित
जब हम गांव के एक और बुजुर्ग परमा यादव से मिले तो उन्होंने गांव की असली हकीकत को बयां किया। परमा यादव कहते हैं रोड लाइट की चर्चा हो रही थी, तालाब सौंदर्यीकरण के लिए बोला गया था, स्कूल बाउंडरी वाल के लिए बोला गया था, ये सब स्वीकृत बताये गए थे लेकिन कुछ नहीं हुआ, परमा यादव ने नलजल योजना के बार में बताया कि गांव में इसके लिए कुछ अधिकारी आये थे, जहां हम कह रहे थे वहां खुदाई नहीं करवाये, और बाद में ये कहकर चले गए कि यहां बोर सक्सेस नहीं है। जबकी यहां अगर बोर खुदाया जाए तो पानी की कमी नहीं है, यहां के ज्यादातर लोग पानी के लिए हैंड पंप औए कुएं पर आश्रित हैं।
परमा यादव बताते हैं कि गांव में कोल और बैगा जाती के लोगों की बहुलता है, गांव के ज्यादातर लोग मज़दूरी करके कोई किसी के खेत में कोई रिक्शा चलाकर, कोई ईंटा गारा का काम करके अपना घर चला रहा है, गांव में महज 5 प्रतिशत ही लोग नौकरी पर हैं, गांव में युवा किसी तरह पढ़ तो लेते हैं लेकिन नौकरी का कोई चांस नहीं बेरोजगार होकर घूम रहे हैं।
Conclusion:परमा यादव से जब सांसद के बारे में पूंछा तो उन्होंने कहा कि पहले जब दलपत सिंह परस्ते थे जिनका निधन हो गया वो अक्सर गांव आते जाते थे यहां से उन्हें काफी लगाव था, लेकिन जब से ज्ञान सिंह सांसद बने चुनाव जीतने के बाद एक बार आये थे, प्रधानमंत्री आवास की समीक्षा करने लेकिन फिर उसके बाद कभी नहीं आये।
गांव के एक युवा से भी मुलाकात हुई जिनका नाम है रामकुमार कोल जो एमएससी करने के बाद बेरोजगार हैं कोई नौकरी नहीं है जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने भी कहा कि यहां समस्या ही समस्या है, पहली समस्या मेरे जैसे युवा जो पढाई करने के बाद भी रोजगार की तलाश कर रहै हैं, पानी की समस्या है स्वास्थ्य की सुविधा नहीं है, नल जल योजना नहीं है कुलमिलाकर एक आदर्श ग्राम में जो होना चाहिये वो कुछ भी नहीं है।
गौरतलब है कि सांसद को एक गांव गोद लेने को इसलिए कहा गया था कि वाकई उसे सांसद एक आदर्श गांव बना सकें, लेकिन केलमनिया गांव के आदर्श ग्राम को देखकर तो बस यही लगता है कि आदर्श गांव अब बस एक मज़ाक बनकर रह गए हैं यहां विकास के नाम पर कुछ भी नहीं है।