श्योपुर। कहते हैं जब दिल में जज्बा हो तो इंसान कुछ भी कर गुजरने का हौसला रखता है. ऐसा ही एक मामला श्योपुर जिले की आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र कराहल का है, जहां रहने वाली विभूति बचपन से दोनों हाथों से दिव्यांग है. दिव्यांग होने के बावजूद भी वो घर का पूरा कामकाज करने के साथ-साथ पढ़ने लिखने और सिलाई करने का शौक रखती है. विभूति का टॉप छात्रों की लिस्ट में नाम आता था, लेकिन दसवीं पास करने के बाद आस पास स्कूल नहीं होने के कारण विभूति ने पढ़ाई छोड़ दी.
बता दें विभूति और उसकी बहन सुनीता की शादी एक ही युवक के साथ उनके माता-पिता ने चार साल पहले करा दी. जहां शादी के कुछ ही दिनों बाद ही विभूति को पति ने छोड़ दिया था, ऐसे में विभूति को सरकार द्वारा दिव्यांगों के लिए चलाई जा रही योजना का सहारा था, लेकिन विभूति को अभी तक सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है.
विभूति की मां दुलारी बाई का कहना है कि मेरी बेटी जन्म से ही दोनों हाथों से दिव्यांग है, लेकिन घर के कामकाज करने में बहुत होशियार हैं. उन्होंने कहा कि विभूति दसवीं पास है फिर भी उसे कोई सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. दुलारी ने कहा कि ऐसे में वह कब तक दिव्यांग और उसकी एक बच्ची का पालन पोषण करेंगी. उन्होंने कहा मेरे पास रहने के नाम पर एक झोपड़ी है.
वहीं विभूति का कहना है कि वो जन्म से ही दिव्यांग है, लेकिन उसे यह कभी महसूस नहीं होता है कि मेरे दोनों हाथ नहीं हैं. विभूति ने कहा दिव्यागं होने के बाद भी घर का पूरा कामकाज कर लेती हूं और मैंने सिलाई सेंटर जाकर सिलाई सीखी है. जिससे अपने कपड़ों की सिलाई भी खुद करती हैं. दसवीं पास करने के बाद आसपास में स्कूल नहीं होने के कारण विभूति ने आगे की पढ़ाई नहीं की.
हमारे समाज में दिव्यांगों को दया की दृष्टि से देखा जाता है कि शायद ये कुछ कर पाएंगें या नहीं. लेकिन ऐसे लोगों को देखकर लगता है कि यदि मन में ठान लिया जाए तो इंसान क्या कुछ नहीं कर सकता है, विभूति घर का सारा काम तो करती ही हैं इसके अलावा वो सिलाई भी करती हैं और अपनी बच्ची का भरण पोषण करती हैं, सरकारें भले ही कितने दावे कर ले की वो हर मजबूर के साथ है लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग नजर आती है, आखिर कब विभूति को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा.