सीहोर । बजट के पास आते ही सब अपने अपने हिसाब किताब में लग जाते हैं. मिडिल क्लास डरता है कि कहीं कोई नया टैक्स लग गया तो घर का बजट गड़बड़ा जाएगा. कारोबारी अपने मुनाफे का गणित बैठाने में लग जाता है. इस बीच देश का पेट भरने वाला किसान भी बजट का इंतजार करता है कि उसकी झोली में कौन सी सौगात आई है. मध्य प्रदेश के किसान भी बजट की बातें कर रहे हैं. लेकिन इस बार बजट से पहले सीहोर का शरबती गेहूं और मध्यप्रदेश में बासमती चावल की चर्चा तेज होने लगी है.
...तो और मीठा हो जाएगा शरबती
गेहूं के उत्पादन में मध्यप्रदेश की खास जगह है. और इसमें भी शरबती गेहूं खासमखास है. इसी शरबती गेहूं के लिए जाना जाता है सीहोर. मध्यप्रदेश में शरबती गेहूं के कुल उत्पादन का 50 फीसदी से ज्यादा सिर्फ सीहोर जिले में होता है. पिछले साल यहां 1.3 लाख मीट्रिक टन गेहूं पैदा हुआ था. शरबती गेहूं की देशभर में धाक है. इसे उगाने वाले किसानों का कहना है कि शरबती को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने में माल भाड़ा काफी ज्यादा लगता है. बजट में सरकार इस भाड़े को कम कर दे तो उनका खर्चा कम होगा और मुनाफा बढ़ेगा. किसान की ये भी डिमांड है कि शरबती गेहूं का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए.
'गोल्डन ग्रेन' की देशभर में धाक
सीहोर के शरबती गेहूं को 'गोल्डन ग्रेन' भी कहते हैं. शरबती गेहूं मुंबई, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, चेन्नई, दिल्ली सहित कई राज्यों में जाता है. देश में ज्यादातर गेहूं 2000 से 2500 रुपए प्रति क्विंटल तक बिकता है. लेकिन ये शरबती गेहूं का ही कमाल है कि इसका भाव 4000 रुपए प्रति क्विंटल तक जाता है. शरबती गेहूं की खासियत है उसकी चमक. साथ ही इसके दाने भी लगभग एक जैसे होते हैं. सीहोर क्षेत्र में काली और जलोढ़ उपजाऊ मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी मानी जाती है.
बस जीतने वाले हैं बासमती की जंग
बासमती के लिए GI टैग की लड़ाई भी मध्यप्रदेश में काफी समय से चल रही है. अब मध्य प्रदेश के करीब 13 जिलों में पैदा होने वाले बासमती चावल को GI टैग (Geographical Indication Tag) मिलने की संभावनाएं बढ़ गई हैं .. APEDA (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority) ने मध्य प्रदेश के बासमती चावल को लेकर लगाई आपत्ति वापस ले ली है. APEDA ने आपत्ति लगाई थी कि मध्य प्रदेश में बासमती चावल पैदा ही नहीं होता है. आपत्ति वापस लेने के बाद प्रदेश की एक बाधा तो खत्म हो गई है, लेकिन अब भी प्रदेश सरकार को दो और बाधाएं पार करनी है. ये मामला फिलहाल SC और भारत सरकार के सामने लंबित है. बासमती के किसानों को उम्मीद है कि आने वाले बजट में बासमती चावल उगाने वाले किसानों को कई तरह की छूट मिलेगी. जिससे राज्य का बासमती भी देश में अपनी पहचान कायम कर पाएगा.
अपने 4 लाख किसान उगाते हैं बासमती
मध्य प्रदेश के 13 जिलों में बासमती धान की खेती की जाती है. लेकिन GI टैग नहीं होने के कारण मध्य प्रदेश के बासमती चावल के किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलता है. प्रदेश के करीब 4 लाख किसान बासमती चावल के उत्पादन से जुड़े हुए हैं. ग्वालियर-चंबल इलाके में भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, श्योपुर के अलावा विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में भी बासमती की खेती की जाती है.
बजट आएगा, खुशियां लाएगा
बासमती का मसला सुलझ जाए. शरबती का समर्थन मूल्य बढ़ जाए. तो ये बजट किसानों के चेहरे पर खुशियां ला देगा. और किसान खुश होगा तो देश दोगुनी रफ्तार से तरक्की करेगा.