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MP Seat Scan Ichhawar: यहां आने से डरते हैं हर मुख्यमंत्री, 5 सीएम आकर गवां चुके हैं कुर्सी, जानें क्या है रहस्य - विधानसभा सीहोर इछावर सीट

चुनावी साल में ईटीवी भारत आपको मध्यप्रदेश की एक-एक सीट का विश्लेषण लेकर आ रहा है. आज हम आपको बताएंगे प्रदेश की ऐसी विधानसभा सीट के बारे में जहां जाने से हर मुख्यमंत्री डरता है. एक मिथक प्रचलित है कि यहां विधानसभा की सीमा में जो भी मुख्यमंत्री आता है उसे अपनी कुर्सी गवाना पड़ती है. आइए जानते हैं इस मिथक वाली सीट इछावर का राजनीतिक विश्लेषण.

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Published : May 26, 2023, 6:16 AM IST

सीहोर। इछावर विधानसभा की नगर सीमा के बारे एक मिथक जोरो से प्रचलित है कि यहां की नगर सीमा में जो भी मुख्यमंत्री आता है उसे अपनी कुर्सी गवानी पड़ती है. 5 मुख्यमंत्री इछावर आकर कुर्सी गवां चुके हैं. कैलाश नाथ काटजू, द्वारका प्रशाद मिश्र, कैलाश जोशी, वीरेन्द्र कुमार सखलेचा और दिग्विजय सिंह मिथक के शिकार हुए हैं यानी ये नेता सीएम रहते हुए इछावार आए और इसके बाद सीएम पद की कुर्सी गवां बैठे.

ichhawar assembly constituency
इछावर की विशेषता

इछावर एक मिथक: ऐसा नहीं है कि देश में अनपढ़ या कोई निश्चित वर्ग अंधविश्वास की चपेट में हो, यहां तो तकरीबन हर तबके का एक धड़ा हमेशा ही अंधविश्वास की डोरी से जुड़ा रहता है. जी हां, क्या आप जानते हैं कि देश में भी कई जगह ऐसी हैं, जहां बड़े से बड़ा राजनेता केवल इसलिए नहीं जाता क्योकि वहां से एक मिथक जुड़ा हुआ है. मध्यप्रदेश में भी ऐसी एक जगह है जिनसे एक अजीब सा अंधविश्वास जुड़ा हुआ है. जिसे कोई भी सीएम तोड़ता हुआ नहीं दिखता. इस जगह के संबंध में कहा जाता है कि जब भी कोई सीएम यहां आता है तो उसकी कुर्सी चली जाती है. हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की इछावर विधानसभा की. यहां के इस मिथक को अब तक कोई भी मुख्य्मंत्री नहीं तोड़ पाया है.

ichhawar assembly constituency
इछावर एक मिथक

इछावर के इस मिथक को तोड़ने का प्रयास तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 15 नवंबर, 2003 को किया था. वे इछावर में आयोजित सहकारी सम्मेलन में शामिल हुए थे. उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि मैं मुख्यमंत्री के रूप में इछावर के इस मिथक को तोड़ने आया हूं इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई और मिथक बरकरार रहा.

ichhawar assembly constituency
इछावर में मतदाता

इन मुख्यमंत्रियों को गंवानी पड़ी कुर्सी

  1. 12 जनवरी 1962 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. कैलाश नाथ काटजू विधानसभा चुनाव के एक कार्यक्रम में भाग लेने इछावर आए. इसके बाद 11 मार्च 1962 को हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. मुख्यमंत्री होने के बाद भी वे जावरा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए, उन्हें डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे ने पराजित किया था.
  2. 1 मार्च 1967 को पं. द्वारका प्रसाद मिश्र यहां आए. 7 मार्च को नए मंत्रीमंडल के गठन से उपजे असंतोष के चलते कांग्रेस में विभाजन हुआ और मिश्र को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा.
  3. 12 मार्च 1977 को कैलाश जोशी एक कार्यक्रम में भाग लेने यहां आए, लेकिन 29 जुलाई को उन्हें पद से हटना पड़ा.
  4. 6 फरवरी 1979 को वीरेंद्र कुमार सकलेचा तालाब का लोकार्पण करने आए. उन्हें 19 जनवरी 1980 को पार्टी के अंदरूनी कारणों की वजह से त्यागपत्र देना पड़ा.
  5. 15 नवंबर 2003 को दिग्विजय सिंह ने यहां आयोजित सहकारी सम्मेलन में शिरकत की, लेकिन अगले महीने हुए चुनाव में कांग्रेस जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा और उनकी कुर्सी चली गई.
    ichhawar assembly constituency
    इछावर विधानसभा का 2018 के नतीजे

इछावर विधानसभा चुनाव नतीजे: 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के करण सिंह ने कांग्रेस के शैलंद्र चंद्र पटेल को 15 हजार 869 वोटों से हराकर 2013 चुनावों की हार का बदला पूरा किया था. 2013 के चुनाव में कांग्रेस के शैलंद्र रमेश चंद्र पटेल ने बीजेपी के करण सिंह को 744 वोटों से हराया था. 2008 के चुनाव में बीजेपी के करण सिंह ने बलवीर तोमर को 18,152 वोटों से हराया था.

ichhawar assembly constituency
इछावर 3 विधानसभा चुनाव के नतीजे

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ज्योतिष में छिपा रहस्य: ज्योतिष के अनुसार ये 2 कारण है जो कि प्रदेश के मुखिया पर भारी पड़ते है जिनके चलते प्रदेश के मुखिया यदि इछावर की धरती पर कदम रखते है हो उनकी सत्ता चली जाती है. पहला कारण अंक ज्योतिष है जो कि इछावर का अंक 4 बताता है जो कि राहु का अंक है. दूसरा कारण इछावर के चारो कोनों पर श्मशान और बावड़ी का होना है. जानकार बताते हैं कि इछावर में किसी की भी सत्ता, कभी भी नहीं रही है. चाहे वो मुगल हो या फिर अंग्रेज कोई भी इछावर पर सत्ता स्थापित नहीं कर सका. लोग तो यह भी कहतै हैं कि इछावर की सीमा को तंत्र विधा के माध्यम से बांधा गया है जिसके चलते प्रदेश का मुखिया का प्रवेश यहां वर्जित है अगर प्रदेश का मुखिया इछवार की धरती पर कदम रखेगा तो उसे 6 माह के अंदर अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ेगा.

सीहोर। इछावर विधानसभा की नगर सीमा के बारे एक मिथक जोरो से प्रचलित है कि यहां की नगर सीमा में जो भी मुख्यमंत्री आता है उसे अपनी कुर्सी गवानी पड़ती है. 5 मुख्यमंत्री इछावर आकर कुर्सी गवां चुके हैं. कैलाश नाथ काटजू, द्वारका प्रशाद मिश्र, कैलाश जोशी, वीरेन्द्र कुमार सखलेचा और दिग्विजय सिंह मिथक के शिकार हुए हैं यानी ये नेता सीएम रहते हुए इछावार आए और इसके बाद सीएम पद की कुर्सी गवां बैठे.

ichhawar assembly constituency
इछावर की विशेषता

इछावर एक मिथक: ऐसा नहीं है कि देश में अनपढ़ या कोई निश्चित वर्ग अंधविश्वास की चपेट में हो, यहां तो तकरीबन हर तबके का एक धड़ा हमेशा ही अंधविश्वास की डोरी से जुड़ा रहता है. जी हां, क्या आप जानते हैं कि देश में भी कई जगह ऐसी हैं, जहां बड़े से बड़ा राजनेता केवल इसलिए नहीं जाता क्योकि वहां से एक मिथक जुड़ा हुआ है. मध्यप्रदेश में भी ऐसी एक जगह है जिनसे एक अजीब सा अंधविश्वास जुड़ा हुआ है. जिसे कोई भी सीएम तोड़ता हुआ नहीं दिखता. इस जगह के संबंध में कहा जाता है कि जब भी कोई सीएम यहां आता है तो उसकी कुर्सी चली जाती है. हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की इछावर विधानसभा की. यहां के इस मिथक को अब तक कोई भी मुख्य्मंत्री नहीं तोड़ पाया है.

ichhawar assembly constituency
इछावर एक मिथक

इछावर के इस मिथक को तोड़ने का प्रयास तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 15 नवंबर, 2003 को किया था. वे इछावर में आयोजित सहकारी सम्मेलन में शामिल हुए थे. उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि मैं मुख्यमंत्री के रूप में इछावर के इस मिथक को तोड़ने आया हूं इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई और मिथक बरकरार रहा.

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इछावर में मतदाता

इन मुख्यमंत्रियों को गंवानी पड़ी कुर्सी

  1. 12 जनवरी 1962 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. कैलाश नाथ काटजू विधानसभा चुनाव के एक कार्यक्रम में भाग लेने इछावर आए. इसके बाद 11 मार्च 1962 को हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. मुख्यमंत्री होने के बाद भी वे जावरा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए, उन्हें डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे ने पराजित किया था.
  2. 1 मार्च 1967 को पं. द्वारका प्रसाद मिश्र यहां आए. 7 मार्च को नए मंत्रीमंडल के गठन से उपजे असंतोष के चलते कांग्रेस में विभाजन हुआ और मिश्र को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा.
  3. 12 मार्च 1977 को कैलाश जोशी एक कार्यक्रम में भाग लेने यहां आए, लेकिन 29 जुलाई को उन्हें पद से हटना पड़ा.
  4. 6 फरवरी 1979 को वीरेंद्र कुमार सकलेचा तालाब का लोकार्पण करने आए. उन्हें 19 जनवरी 1980 को पार्टी के अंदरूनी कारणों की वजह से त्यागपत्र देना पड़ा.
  5. 15 नवंबर 2003 को दिग्विजय सिंह ने यहां आयोजित सहकारी सम्मेलन में शिरकत की, लेकिन अगले महीने हुए चुनाव में कांग्रेस जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा और उनकी कुर्सी चली गई.
    ichhawar assembly constituency
    इछावर विधानसभा का 2018 के नतीजे

इछावर विधानसभा चुनाव नतीजे: 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के करण सिंह ने कांग्रेस के शैलंद्र चंद्र पटेल को 15 हजार 869 वोटों से हराकर 2013 चुनावों की हार का बदला पूरा किया था. 2013 के चुनाव में कांग्रेस के शैलंद्र रमेश चंद्र पटेल ने बीजेपी के करण सिंह को 744 वोटों से हराया था. 2008 के चुनाव में बीजेपी के करण सिंह ने बलवीर तोमर को 18,152 वोटों से हराया था.

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इछावर 3 विधानसभा चुनाव के नतीजे

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