सीहोर। इछावर विधानसभा क्षेत्र के गांव-गांव में इन दिनों एक लड़की की चर्चा आम है. यह लड़की है मेघा परमार, जो माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई कर चुकी है. कांग्रेस के मंच से लेकर गांव की गलियों तक इसे देखा जा रहा है. कांग्रेस का प्रचार कर रही है. दूसरी तरफ हैं कांग्रेस के पूर्व विधायक शैलेंद्र पटेल जो सीट को पुन: हासिल करने के लिए पूरे विधानसभा क्षेत्र की पैदल यात्रा कर चुके हैं. इन दाेंनो की तैयारी बता रही है कि सात बार के विधायक करण सिंह वर्मा के किले पर फतह की तैयारी है, क्योंकि शैलेंद्र पटेल खाती समाज से आते हैं, जिसका इस सीट पर खासा बाहुल्य है. वहीं मेघा परमार का समाज भी बड़ी संख्या में है. पिछली बार की अपेक्षा दोनों ही राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की भी बात कर रहे हैं, लेकिन पिछले चुनाव के ट्रेंड देखे तो यहां की जनता ने करण सिंह वर्मा को अपना सा मान लिया है और अब देखना यह है कि यह अपनापन इस बार खत्म होता है कि नहीं.
1977 में अस्तित्व में आई इछावर सीट: अब बात करें इस सीट की तो पहली बार यह वर्ष 1977 में अस्तित्व में आई. इसके पहले पूरा इलाका सीहोर विधानसभा में हुआ करता था. इसके बाद दस बार चुनाव हुए और 7 बार एक ही नेता यानी करण सिंह वर्मा विधायक बने, जो खाती समाज के हैं. एक बार हारे भी तो इतने कम मार्जिन से की सुषमा स्वराज ने सार्वजनिक कह दिया था कि हम ऐसे नेता को घर नहीं बैठने दे सकते, लेकिन इस करण सिंह वर्मा के सामने दो चुनौती है. पहली यह कि अब उनकी उम्र काफी हो गई है और क्षेत्र में घूमना मुश्किल हो गया. वहीं क्षेत्र से भाजपा के दूसरे नेता भी दावेदारी कर रहे हैं. जबकि करण सिंह अपने परिवार के लिए टिकट चाहते हैं, लेकिन पार्टी वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ है तो ऐसे में मुश्किल होगी. बेरोजगारी भी एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है.
इछावर विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिाहस: सीहोर विधानसभा से कटकर जब 1977 में इछावर नई सीट बनी तो तब जनसंघ से जनता पार्टी बनी थी और इन्होंने नारायण प्रसाद गुप्ता को टिकट दिया. वहीं कांग्रेस की तरफ से अमरचंद रोहेला को मैदान में उतारा गया. गुप्ता 23167 वाेट लेकर अमरचंद से 11946 वोटों से जीत गए. तब अमरचंद को सिर्फ 11221 वोट मिले थे. इसके बाद 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने खाती समाज से हरिचरण वर्मा को और जनता पार्टी से भारतीय जनता पार्टी बनी भाजपा ने फिर से नारायण प्रसाद गुप्ता को टिकट दिया, लेकिन चुनाव कांग्रेस जीती. कांग्रेस प्रत्याशी वर्मा को 22706 और भाजपा के गुप्ता को 13376 वोट मिले. वर्मा यह चुनाव 9330 वोटों से जीत गए. 1985 के चुनाव में भाजपा ने एक नया चेहरा करण सिंह वर्मा ढूंढ लिया और टिकट दिया. वहीं कांग्रेस ने हरिचरण वर्मा को टिकट दिया, लेकिन इस बार नतीजा भाजपा के पक्ष में गया और करण वर्मा ने 25218 वोट लेकर कांग्रेस के हरिचरण वर्मा को 4112 वोटों से हराया. इसके बाद तो करण सिंह वर्मा ने इछावर विधानसभा को भाजपा का अभेद किला बना दिया. 1990 के चुनाव में फिर से भाजपा ने करण सिंह वर्मा को टिकट दिया और इस बार कांग्रेस ने ईश्वर सिंह चौहान को टिकट दिया और वे 15762 वोट से चुनाव हार गए. वर्मा को 32908 और चौहान को 17146 वोट मिले थे. 1993 के चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के करण सिंह वर्मा के सामने फिर से चेहरा बदला और अजीज कुरैशी को मैछान में उतार दिया. यह चुनाव फिर से हिंदु वर्सेेज मुस्लिम बन गया और नतीजा भाजपा के पक्ष में गया. वर्मा को 41388 वोट मिले और कुरैशी को 24419 वोट मिले. वर्मा यह चुनाव 16969 वोटों से जीते.
1998 से 2003 तक का इतिहास: करण सिंह वर्मा की जीत का रथ रोकने के लिए 1998 में कांग्रेस ने राधा किशन को टिकट दिया, लेकिन तीसरे नंबर पर चले गए. इस बार भी जीत करण सिंह वर्मा की हुई और उन्हें 28703 वोट मिले, जबकि दूसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी बलवीर तोमर रहे और उन्हें 21325 वोट मिले. वर्मा यह चुनाव 7378 वोटों से जीत गए. 2003 में भाजपा ने फिर करण सिंह वर्मा को टिकट दी और कांग्रेस ने इस बार परमार समाज के हेमराज सिंह परमार को टिकट दी. वर्मा फिर से जीत गए. उन्हें 42939 वोट और कांग्रेस के परमार को 27191 वोट मिले. वर्मा यह चुनाव 15748 वोटों से जीते.
2008 से 2018 तक का इतिहास: 2008 में भी भाजपा की पहली पसंद करण सिंह वर्मा थे और उन्होंने इसे फिर से सही साबित किया. वर्मा को इस बार 50129 वोट मिले. कांग्रेस ने इस बार बलवीर तोमर पर दांव लगाया था, लेकिन उन्हें 31977 वोट ही मिल सके और वे 18152 वोटों से हार गए. फाइनली 2013 में करण सिंह वर्मा का रथ थमा, जब उनकी ही समाज के शैलेंद्र पटेल काे कांग्रेस ने टिकट दिया. शैलेंद्र ने कांग्रेस के इस फैसले को सही साबित करते हुए करण सिंह वर्मा को कड़ी टक्कर दी और कांटे की टक्कर में शैलेंद्र पटेल 744 वोट से जीत गए. उन्हें कुल 74704 वोट मिले थे, जबकि करण सिंह वर्मा को 73960 वोट मिले. भाजपा ने इसे करण सिंह वर्मा की हार नहीं माना और 2018 में फिर से उन्हें टिकट दिया. इस बार कांग्रेस की तरफ से शैलेंद्र पटेल मैदान में थे, लेकिन इस बार वापस से वर्मा ही जीते. उन्हें इस बार 87134 वोट मिले, जबकि पटेल को 71173 वोट मिले. वर्मा यह चुनाव 15961 वोट से जीत गए.
इछावर विधानसभा के स्थानीय मुद्दे: यहां कोई बहुत बड़ा मुद्दा हावी नहीं रहा, लेकिन हिंदुत्व और सामाजिक लहर रही है. खाती समाज का वर्चस्व होने की वजह से एक तरफा चुनाव होते आए है, फिर भी यदि मुद्दों की बात करें तो बेरोजगारी ही सबसे बड़ा मुद्दा है. यहां के युवा क्षेत्र से पलायन कर रहे हैं. सड़कों का नेटवर्क एक बड़ी समस्या है. पेयजल के लिए संघर्ष है. सिंचाई के लिए जब नर्मदा पार्वती लिंक परियोजना शुरू की ताे इछावर के 120 गांव छोड़ दिए गए हैं. इससे सरकार के प्रति भारी नाराजगी है. एक भी बड़ा कॉलेज और बड़ा अस्पताल नहीं है.
इछावर विधानसभा का जातीय समीकरण: जातीय गणित की बात करें तो खाती समाज का एक तरफा होल्ड है. करीब 65 हजार मतदाता वाली इसी समाज का विधायक बनता आया है. दूसरे नंबर पर करीब 35 हजार आदिवासी और दलित समाज है. तीसरे नंबर पर मुस्लिम मतदाता है. इनकी मतदाता संख्या करीब 20 हजार बताई जाती है. इनके बाद 14 हजार मेवाड़ा, 13 हजार परमार, 9 हजार मीणा, 6 हजार ठाकुर और करीब 3 हजार गुर्जर समाज के वोट हैं. बाकी समाज छोटी-छोटी है.
इछावर विधानसभा क्षेत्र की खासियत: पूरा क्षेत्र कृषि प्रधान है और एक मंडी के अलावा एकमात्र नगर पंचायत इछावर है. यही जनपद पंचायत भी है. इस क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय स्थान बाराह खंबा पशुपतिनाथ नामक स्थान है. यहां साल का सबसे बड़ा मेला भरता है. इन दिनों एक चंदन का जंगल भी लगाया जा रहा है.