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मां विजयासन देवी का पावन धाम, जहां पूरी होती है भक्तों की हर मुराद!

विंध्‍याचल की हसीन वादियों में प्रकृति ने अपनी अनमोल छटा बिखेर रखी है, जहां देवीधाम सलकनपुर है. हर तरफ मनोहारी पर्वत श्रृंखलाएं हैं. इनमें से एक पर्वत पर मां विजयासेन देवी विराजमान है.

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मां विजयासन देवी का पावन धाम
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Published : Apr 19, 2021, 1:46 PM IST

सीहोर। रेहटी तहसील स्थित सलकनपुर में विंध्य की पहाड़ियों में विराजी मां विजयासन देवी का मंदिर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे भक्तों के लिए श्रद्धा का एक अदभुत स्थल है. पहाड़ों पर विराजमान विजयासन मां भक्तों की मनोकामना पूरी करती है.

बुदनी तहसील से 25 किलोमीटर और होशंगाबाद से 35 किलोमीटर दूरी पर विंध्‍याचल की हसीन वादियों में प्रकृति ने अपनी अनमोल छटा बिखेर रखी है, जहां देवीधाम सलकनपुर है. चारों ओर मनोहारी पर्वत श्रृंखलाएं हैं, जिनमें एक पर्वत पर मां विंध्‍यवासिनी विजयासेन देवी का भव्‍य मंदिर बना हुआ है. शारदीय और चैत्रीय नवरात्रि में मां की चौखट पर माथा टेकने दूरदराज से लाखों लोग आते हैं. हरियाली से भरे इस 800 फीट ऊंचे पर्वत पर अलौकिक सौं‍दर्य के बीच मां की सुं‍दर प्रतिमा के दर्शन, परिक्रमा, वं‍दना, स्‍तुति कर अपने मन की मुरादें पूरी कर पाते हैं.

ऐतिहासिक रूप से पौराणिक कथाओं के आधार पर महाभारत काल के पूर्व से इस विजयासन शक्तिपीठ की प्रसिद्धि रही है. इस संदर्भ में स्‍कंद पुराण के अवंति खंड के रेवा खंड में वर्णित नेमावर तीर्थ को नाभि क्षेत्र कहा गया है. उसके बाद जिस सिद्धेश्‍वर वैष्‍णवी देवी तीर्थ का उल्‍लेख है, वह विंध्य पर्वत पर विराजमान मां विजयासन देवी ही है.

भगवान श्रीकृष्‍ण की बहन की स्‍तुति और चर्चा विजया देवी के नाम से अनेक पुराणों में है, जिससे स्‍पष्‍ट है कि पौराणिक कथाओं के आधार पर नर्मदा क्षेत्रीय तीर्थ सलकनपुर में जो विजया शक्तिपीठ है, वह अतिप्राचीन और पौराणिक मान्‍यताओं में देवीधाम सलकनपुर के विजयासन शक्तिपीठ की स्‍वयंभू घोषणा को प्रमाणित करता है.

6000 साल पुराना मंदिर

मान्‍यता है कि यह मंदिर 6000 साल पुराना है, जहां जीर्ण-शीर्ण अवस्‍था में पहुंचने पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार अनेक बार किया जा चुका है. इसकी व्‍यवस्‍था भोपाल नवाब के संरक्षण में होती थी, तब वहां पर अखंड धूनी और अखंड ज्योति स्‍थापित की जा चुकी थी, जो सालों से आज भी प्रज्‍वलित है. गर्भगृह में देवी की प्रतिमा स्‍वयंभू है, जिसे किसी के द्वारा तराशा नहीं गया, लेकिन बाद में चांदी के नेत्र और मुकुट से देवी को सजाया गया है.

मां विजयासन देवी का पावन धाम

विजयासन देवी की प्रतिमा के दाएं-बाएं जो तीन संगमरमर की मूर्तियां हैं. उनके विषय में मान्‍यता है कि गिन्‍नौर किले के वीरान होने पर एक घुम्‍मकड़ साधु इन्‍हें यहां पर ले आया था. स्‍वतंत्र भारत की मध्‍य प्रदेश विधानसभा ने सन् 1956 में इस मंदिर व्‍यवस्‍था का अलग से अधिनियम बनाया, जो सन् 1966 में लागू हुआ. मंदिर की व्‍यवस्‍था प्रजातांत्रिक तरीके से गठित समिति के हाथों में आई.

500 वाहन प्रतिदिन मंदिर तक पहुंचने की व्‍यवस्‍था

सलकनपुर देवीधाम में जहां मां विजयासन का मंदिर है, वह धरातल से 800 फीट की ऊंचाई पर है, जिसमें पत्‍थर की 1065 सीढ़ियां चढ़कर विंध्‍याचल पर्वत के उच्‍चासन पर विराजमान मां के दर्शन करने का लाभ प्राप्‍त होता है. 2003 के बाद मंदिर ट्रस्‍ट के द्वारा मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी को काटकर सड़क मार्ग से व्‍यवस्‍था की गई, जिसमें 500 वाहन प्रतिदिन मंदिर तक पहुंचने की व्‍यवस्‍था है. उक्‍त वाहनों की पार्किंग व्‍यवस्‍था भी की गई है.

सीहोर। रेहटी तहसील स्थित सलकनपुर में विंध्य की पहाड़ियों में विराजी मां विजयासन देवी का मंदिर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे भक्तों के लिए श्रद्धा का एक अदभुत स्थल है. पहाड़ों पर विराजमान विजयासन मां भक्तों की मनोकामना पूरी करती है.

बुदनी तहसील से 25 किलोमीटर और होशंगाबाद से 35 किलोमीटर दूरी पर विंध्‍याचल की हसीन वादियों में प्रकृति ने अपनी अनमोल छटा बिखेर रखी है, जहां देवीधाम सलकनपुर है. चारों ओर मनोहारी पर्वत श्रृंखलाएं हैं, जिनमें एक पर्वत पर मां विंध्‍यवासिनी विजयासेन देवी का भव्‍य मंदिर बना हुआ है. शारदीय और चैत्रीय नवरात्रि में मां की चौखट पर माथा टेकने दूरदराज से लाखों लोग आते हैं. हरियाली से भरे इस 800 फीट ऊंचे पर्वत पर अलौकिक सौं‍दर्य के बीच मां की सुं‍दर प्रतिमा के दर्शन, परिक्रमा, वं‍दना, स्‍तुति कर अपने मन की मुरादें पूरी कर पाते हैं.

ऐतिहासिक रूप से पौराणिक कथाओं के आधार पर महाभारत काल के पूर्व से इस विजयासन शक्तिपीठ की प्रसिद्धि रही है. इस संदर्भ में स्‍कंद पुराण के अवंति खंड के रेवा खंड में वर्णित नेमावर तीर्थ को नाभि क्षेत्र कहा गया है. उसके बाद जिस सिद्धेश्‍वर वैष्‍णवी देवी तीर्थ का उल्‍लेख है, वह विंध्य पर्वत पर विराजमान मां विजयासन देवी ही है.

भगवान श्रीकृष्‍ण की बहन की स्‍तुति और चर्चा विजया देवी के नाम से अनेक पुराणों में है, जिससे स्‍पष्‍ट है कि पौराणिक कथाओं के आधार पर नर्मदा क्षेत्रीय तीर्थ सलकनपुर में जो विजया शक्तिपीठ है, वह अतिप्राचीन और पौराणिक मान्‍यताओं में देवीधाम सलकनपुर के विजयासन शक्तिपीठ की स्‍वयंभू घोषणा को प्रमाणित करता है.

6000 साल पुराना मंदिर

मान्‍यता है कि यह मंदिर 6000 साल पुराना है, जहां जीर्ण-शीर्ण अवस्‍था में पहुंचने पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार अनेक बार किया जा चुका है. इसकी व्‍यवस्‍था भोपाल नवाब के संरक्षण में होती थी, तब वहां पर अखंड धूनी और अखंड ज्योति स्‍थापित की जा चुकी थी, जो सालों से आज भी प्रज्‍वलित है. गर्भगृह में देवी की प्रतिमा स्‍वयंभू है, जिसे किसी के द्वारा तराशा नहीं गया, लेकिन बाद में चांदी के नेत्र और मुकुट से देवी को सजाया गया है.

मां विजयासन देवी का पावन धाम

विजयासन देवी की प्रतिमा के दाएं-बाएं जो तीन संगमरमर की मूर्तियां हैं. उनके विषय में मान्‍यता है कि गिन्‍नौर किले के वीरान होने पर एक घुम्‍मकड़ साधु इन्‍हें यहां पर ले आया था. स्‍वतंत्र भारत की मध्‍य प्रदेश विधानसभा ने सन् 1956 में इस मंदिर व्‍यवस्‍था का अलग से अधिनियम बनाया, जो सन् 1966 में लागू हुआ. मंदिर की व्‍यवस्‍था प्रजातांत्रिक तरीके से गठित समिति के हाथों में आई.

500 वाहन प्रतिदिन मंदिर तक पहुंचने की व्‍यवस्‍था

सलकनपुर देवीधाम में जहां मां विजयासन का मंदिर है, वह धरातल से 800 फीट की ऊंचाई पर है, जिसमें पत्‍थर की 1065 सीढ़ियां चढ़कर विंध्‍याचल पर्वत के उच्‍चासन पर विराजमान मां के दर्शन करने का लाभ प्राप्‍त होता है. 2003 के बाद मंदिर ट्रस्‍ट के द्वारा मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी को काटकर सड़क मार्ग से व्‍यवस्‍था की गई, जिसमें 500 वाहन प्रतिदिन मंदिर तक पहुंचने की व्‍यवस्‍था है. उक्‍त वाहनों की पार्किंग व्‍यवस्‍था भी की गई है.

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