सीहोर। सीहोर में दस साल की बालिका के साथ हैवानियत करने वाले एक युवक को सजा सुनाई गई. विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) अशोक भारद्वाज ने अभियुक्त रमेश चंद्र मोगिया आत्मज रामसिंह मोगिया निवासी ग्राम दुदलई, जिला सीहोर को धारा 376ए. बी. 307 व पॉक्सो एक्ट में दोहरे अजीवन कारावास (शेष जीवनकाल तक) एवं कुल 11 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई.
भरोसे में लेकर बच्ची को बुलाया
घटना के अनुसार पीड़िता ने बताया था कि वह कक्षा 5वीं में सरकारी स्कूल दुदलई में पढ़ती है. मैं 10 साल की हूँ. इसी साल 14 जनवरी को को मैं अपने भाई से साइकिल लेकर गांव के बाहर गई थी. इसी दौरान शाम साढ़े छह बजे जब मैं साइकिल चला रही थी तो रामू काका के कुएं के पास मेरे घर के पास के रमेश भैया मिले. उन्होंने बोला- शाम होने वाली है. मेरे पास आजा. तुझे तीतर दिखाता हूं. इसके बाद वह उसके पास गई. वह बोला - तू मुझे एक चुम्मी दे तो मैंने कहा मैं नहीं दूंगी. मैं मम्मी को बता दूंगी जाके. तब तक रमेश भैया ने अपने कपड़े उतार लिए. इसके बाद मुझे पकड़ लिया और छेड़छाड़ करने लगे. मुझे धमकी दी कि तुझे कुंआ में फेंक कर मार डालूंगा.
बच्ची को गहरे कुएं में फेंक दिया
रमेश भैया ने मुझे गोद में पकड़कर उठाया और कुएं में जान से मारने के लिए फेंक दिया. कुए में मेरे गले तक पानी भरा था. मैं डूबने लगी तो कुएं मे लगी मोटर की केबल पकड़कर कराहने लगी. इसके बाद मै केबल के सहारे बैठ गई. कुएं में बहुत अंधेरा था. बहुत देर तक चिल्लाती रही. करीब आधा एक घण्टे बाद मम्मी की आवाज आई तो मैंने उन्हें चिल्लाकर बताया कि रमेश ने मुझे कुएं में धकेल दिया. इस पर मेरी मम्मी, ब्रिजेश भाई, मौसी, मौसा जी बचाने आए. उन्होंने रस्सी नीचे फंकी. इससे ब्रजेश भाई कुएं में उतरे और मेरी कमर में रस्सी बांधी और मुझे बाहर निकाला. फिर मैंने सारी बात मम्मी, मामी, मांमाजी, भाभी को बताई. इसके बाद मम्मी मुझे इछावर अस्पताल लेकर आई. जहां मेरा इलाज हुआ. पीड़िता का मेडिकल हुआ. गौरतलब है कि इसके बाद मामला कोर्ट में चला. फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट में न्यायालय में पेश की गई.
न्यायालय ने विशेष टिप्पणी की : शासन की ओर से पैरवी केदार सिंह कौरव, विशेष लोक अभियोजकद्वारा की गई. अभिलेख पर आई मौखिक, दस्तावेजी, वैज्ञानिक साक्ष्य एवं अंतिम तर्क से सहमत होते हुए मामले को विधि के सुसंगत प्रावधानों का हवाला दिया गया. तब न्यायालय द्वारा आरोपी को दंडित किया गया. प्रकरण की गंभीरता एवं संवेदनशीलता के कारण एवं जघन्य सनसनीखेज अपराध में सम्मिलित होने पर न्यायालय ने निर्णय में अभियुक्त को दोष सिद्ध किया. न्यायालय ने विशेष टिप्पणी की है कि पीड़िता के रिश्ते का मामा होने के नाते दोषी का नैतिक, सामाजिक, धार्मिक कर्तव्य भी था कि वह पीड़िता की धर्म, मर्यादा, संस्कार और नैतिकता के साथ ठीक उसी प्रकार देखभाल करे, जैसे वह उसकी सगी पुत्री हो. दोषी का यह दायित्व तब और बढ़ जाता है, जब पीड़िता की मां दोषी को भाई कहती हो. यह स्थिति और अधिक भयावक एवं शर्मनाक हो जाती है, जब दोषी एक 10 वर्षीय अबोध बालिका की अस्मत के साथ खिलवाड़ करे.