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मध्यप्रदेश में शिक्षा व्यवस्था है बदहाल, झोपड़ी में संचालित हो रहा सरकारी स्कूल

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले तहसील नसरुलागंज के आदिवासी अंचल नवल गांव पिपल्या के प्राइमरी स्कूल में भवन नहीं होने के चलते एक झोपड़ी में बैठकर पढ़या जा रहा है.

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Published : Oct 2, 2019, 6:30 AM IST

झोपड़ी में संचालित हो रहा सरकारी स्कूल

सीहोर। शिक्षा के अधिकार के तहत देश भर में स्कूल तो जरुर शुरु हो गए, पर कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे स्कूल भी हैं, जो बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. आदिवासी अंचल नवल गांव के पिपल्या प्राथमिक स्कूल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. यहां स्कूल भवन नहीं होने की वजह से 2013 से ही स्कूल झोपड़े में लग रहा है, जिसके कारण बरसात में बच्चों की छुट्टी तक करनी पड़ती है.

झोपड़ी में संचालित हो रहा सरकारी स्कूल

2013 से झोपड़ी में लगने वाले इस स्कूल में पहली से पांचवी तक के करीब 65 बच्चे पढ़ते हैं. वहीं स्कूल की भूमि पर किचन और शौचालय तो बने हुए हैं पर पढ़ने के लिए भवन नहीं है .

स्कूल प्रभारी ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराने के बाद भी भवन स्वीकृत नहीं किया गया. गांव के जन सहयोग से झोपड़े के ऊपर कबेलू डाल दिए गए और छात्रों को पढ़ाया जा रहा है.

सीहोर। शिक्षा के अधिकार के तहत देश भर में स्कूल तो जरुर शुरु हो गए, पर कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे स्कूल भी हैं, जो बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. आदिवासी अंचल नवल गांव के पिपल्या प्राथमिक स्कूल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. यहां स्कूल भवन नहीं होने की वजह से 2013 से ही स्कूल झोपड़े में लग रहा है, जिसके कारण बरसात में बच्चों की छुट्टी तक करनी पड़ती है.

झोपड़ी में संचालित हो रहा सरकारी स्कूल

2013 से झोपड़ी में लगने वाले इस स्कूल में पहली से पांचवी तक के करीब 65 बच्चे पढ़ते हैं. वहीं स्कूल की भूमि पर किचन और शौचालय तो बने हुए हैं पर पढ़ने के लिए भवन नहीं है .

स्कूल प्रभारी ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराने के बाद भी भवन स्वीकृत नहीं किया गया. गांव के जन सहयोग से झोपड़े के ऊपर कबेलू डाल दिए गए और छात्रों को पढ़ाया जा रहा है.

Intro:सीहोर में बदहाल शिक्षा व्यवस्था

- यंहा झोपड़े में लगता है स्कूल

- स्कूल भवन नही होने से झोपड़े में पढ़ने को मजबूर बच्चे,

- ग्रामीण अंचलों में स्कूलों की बदहाली

- 2013 से झोपड़े में संचालित होरही पाठशाला

- बरसात में बच्चों की करनी पड़ती है छुट्टी
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बाईट 01- चंपालाल, शाला प्रभारी
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सीहोर। सरकार बच्चों को पढ़ाई के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल तो शुरु किए गए, लेकिन यहां बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। आदिवासी अंचल नवल ग़ांव पिपल्या प्राथमिक स्कूल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। 2103 से यंहा झोपड़े में स्कूल लगता है। स्कूल भवन नही होने से बच्चें झोपड़े में पढ़ने को मजबूर है आलम ये है बरसात में पानी की वजह बच्चों की छुट्टी तक करनी पढ़ती है।

Body:पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले तहसील नसरुलागंज के आदिवासी अंचल नवल ग़ांव पिपल्या के प्राइमरी स्कूल से मामला सामने आया है। यंहा स्कूल का अपना भवन नहीं है, यही कारण है कि भवन न होने की दशा में इन आदिवासी बच्चों को एक झोपड़ी में बैठकर पढ़ना पढ़ रहा है। बच्चो झोपडे मे शिक्षा हासिल करने को मजबूर है।

हालात ये है कि बरसात में झोपड़ी से पानी अंदर आता है। और मजबूरन स्कूल की छुट्टी करनी पड़ती है। 2013 से झोपड़ी में लगने वाले इस स्कूल में पहली से पांचवी तक के करीब 65 बच्चे आज भी झोपड़ी के बने स्कूल में पढ़ने को मजबूर है। जबकि स्कूल की भूमि पर किचन सेट स्कूल परिसर में शौचालय तो बना हुआ है। मगर पढने के लिए भवन नही है। शाला प्रभारी ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराने के बाद भी भवन स्वीकृत नहीं किया गया। ग़ांव के जन सहयोग से झोपड़े के ऊपर कबेलू डाल दिए गए है। भवन नही बना है। उसी में शाला संचालित होरही है।
Conclusion:
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