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बुधनी के लकड़ी खिलौनों को मिलेगी दुनिया में नई पहचान, जीआई टैग दिलाने का शिवराज ने किया वादा

बुधनी खिलौना महोत्सव में पहुंचे शिवराज सिंह चौहान ने बुधनी के बने लकड़ी के खिलौनों को दुनिया में नई पहचान दिलाने का वायदा करते हुए जीआई टैग (geographical indication) (GI) दिलाने के भरोसा दिया.

chief Minister Shivraj Singh Chauhan promises to get GI tag for Budhni wooden toys
बुधनी के लकड़ी खिलौनों को मिलेगी दुनिया में नई पहचान, जीआई टैग दिलाने का शिवराज ने किया वादा
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Published : Nov 7, 2021, 1:17 PM IST

सीहोर । मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के बुधनी की खास पहचान यहां बनने वाले लकड़ी के खिलौनों (Budhni wooden toys) के कारण है, वहीं इस इलाके से राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाता है, वे यहां से विधायक हैं. मुख्यमंत्री चौहान ने यहां बनने वाले खिलौनों को दुनिया में पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग (geographical indication) (GI) दिलाने के प्रयास किए जाने का वादा किया है.

बुधनी खिलौना महोत्सव में शिवराज सिंह

मुख्यमंत्री चौहान बुधनी के खिलौना महोत्सव में पहुंचे और कहा कि बुधनी के खिलौना उत्पादों को बुधनी के नाम से विश्वविख्यात बनाने के लिए जी आई टैग दिलाए जाने के प्रयास होंगे(GI tag for Budhni wooden toys) . विश्व बाजार से प्रतिस्पर्धा के लिए क्लस्टर बनाकर लकड़ी के अलावा अन्य खिलौने भी बनाये जाएंगे. मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि उनकी जानकारी में है कि अनेक व्यवसायी ऑनलाइन मार्केटिंग कर अधिक कीमत कमाते हैं. कुछ ऑनलाइन कम्पनी तो पांच गुना तक ज्यादा कीमत में बुधनी के खिलौने बेचती हैं.

  • हम तय कर रहे हैं कि जो नेशनल हाइवे गड़रिया नाले के पास है वहीं इन खिलौनों को बेचने के लिए स्थान और दुकानें देने की व्यवस्था की जाएगी।

    हम इसकी ब्रांडिंग भी करेंगे। ताकि खिलौने ज्यादा से ज्यादा बिक सकें:CM pic.twitter.com/mKWJGQmZkD

    — CMO Madhya Pradesh (@CMMadhyaPradesh) November 6, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

गेहूं और बासमती चावल सहित अन्य उत्पादों को भी जीआई टैग दिलवाने का होगा प्रयास
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि उनका प्रयास है कि यह काम स्थानीय कारीगर ही करें. सरकार इसके लिए नेटवर्क तैयार करेगी. खिलौने ही नहीं यहां के गेहूं और बासमती चावल सहित अन्य उत्पादों को जी आई टैग दिलवाने के हर सम्भव प्रयास होंगे. मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आव्हान पर प्रदेश में शुरू की गई 'एक जिला-एक उत्पाद' योजना में सीहोर जिले में खिलौना उत्पाद को शामिल किया गया है. खिलौनों की कम लागत, फिनिशिंग के लिए क्लस्टर बनाकर प्रशिक्षण दिलाया जाएगा और अन्य खिलौने निर्माण के लिए आवश्यक मशीनरी भी लगाई जाएगी.

मध्य प्रदेश: बालाघाट के चावलों को मिला GI Tag, किसानों की आय बढ़ेगी

क्या है जीआई टैग ? (What is GI Tag)
भारत ने मई, 2010 में अपने यहां सात राज्यों में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh), पंजाब (Panjab), हरियाणा (Haryana), उत्तराखंड (Uttarakhand), दिल्ली (Delhi) के बाहरी क्षेत्रों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) और जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के कुछ भागों में बासमती को जीआई टैग दिया था. किसी उत्पाद को उसके उत्पत्ति की विशेष भौगोलिक पहचान से जोड़ने के लिए जीआई टैग दिया जाता है. ताकि वह उत्पाद अलग और खास बन सके.

What is GI Tag ?
क्या है जीआई टैग ?

संसद से मिली मान्यता

भारतीय संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशेष वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है. ये GI Tag किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में मिलने वाले उत्पाद का दूसरे स्थान पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है.

जीआई टैग के फायदे

जीआई टैग के जरिये उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है यानि जीआई टैग उत्पादों की नकल को रोकता है. साथ ही जीआई टैग किसी उत्पाद की अच्छी गुणवत्ता का पैमाना भी होता है जिससे देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है. इस टैग से किसी उत्पाद के विकास और फिर उस क्षेत्र विशेष के विकास मसलन रोजगार से लेकर राजस्व वृद्धि तक के द्वार खुलते हैं. जीआई टैग मिलने से उस उत्पाद से जुड़े क्षेत्र की विशेष पहचान होती है.

पंजीकरण कैसे, कहां और कितने वक्त के लिए

किसी उत्पाद के जीआई टैग के लिए कोई भी व्यक्तिगत निर्माता, संगठन इसके लिए Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) में आवेदन कर सकता है. जो कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आता है. इस संस्था की तरफ से उत्पाद की विशेषताओं से जुड़े हर दावे को परखा जाता है. पूरी जांच पड़ताल और छानबीन के बाद संतुष्ट होने पर ही जीआई टैग मिलता है. जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है जिसे रिन्यू करवाया जा सकता है. एक निर्धारिक फीस जमा करने पर जीआई टैग की अवधि 10 और वर्षों के लिए बढ़ जाती है. लेकिन इसका हस्तांतरण नहीं हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होता है जीआई टैग

इस टैग से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी उस उत्पाद की कीमत और महत्व बढ़ जाता है. देश-विदेश से लोग उस खास जगह पर टैग वाले सामान को देखना और खरीदना चाहते हैं. इससे उस क्षेत्र विशेष में व्यापार के साथ-साथ पर्यटन क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलता है.जीआई टैग को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है. WTO यानि विश्व व्यापार संगठन (world trade organization) इसके तहत Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights (TRIPS) एक एग्रीमेंट है. सदस्य देशों के बीच इस बात पर सहमति है कि वो एक-दूसरे के जीआई टैग का सम्मान करेंगे. इस एग्रीमेंट के तहत किसी देश के जीआई टैग उत्पाद की किसी भी दूसरे देश में नकली उत्पाद बनाने से रोकने पर भी सहमति बनी हुई है.

पहला जीआई टैग

सबसे पहला जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग की चाय को मिला. इसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्र विशेष की पहचान बन चुके 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. इनमें कश्मीर का केसर और पश्मीना, नागपुर के संतरे, बंगाली रसगुल्ले, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, रतलाम की सेव आदि शामिल हैं.

सीहोर । मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के बुधनी की खास पहचान यहां बनने वाले लकड़ी के खिलौनों (Budhni wooden toys) के कारण है, वहीं इस इलाके से राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाता है, वे यहां से विधायक हैं. मुख्यमंत्री चौहान ने यहां बनने वाले खिलौनों को दुनिया में पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग (geographical indication) (GI) दिलाने के प्रयास किए जाने का वादा किया है.

बुधनी खिलौना महोत्सव में शिवराज सिंह

मुख्यमंत्री चौहान बुधनी के खिलौना महोत्सव में पहुंचे और कहा कि बुधनी के खिलौना उत्पादों को बुधनी के नाम से विश्वविख्यात बनाने के लिए जी आई टैग दिलाए जाने के प्रयास होंगे(GI tag for Budhni wooden toys) . विश्व बाजार से प्रतिस्पर्धा के लिए क्लस्टर बनाकर लकड़ी के अलावा अन्य खिलौने भी बनाये जाएंगे. मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि उनकी जानकारी में है कि अनेक व्यवसायी ऑनलाइन मार्केटिंग कर अधिक कीमत कमाते हैं. कुछ ऑनलाइन कम्पनी तो पांच गुना तक ज्यादा कीमत में बुधनी के खिलौने बेचती हैं.

  • हम तय कर रहे हैं कि जो नेशनल हाइवे गड़रिया नाले के पास है वहीं इन खिलौनों को बेचने के लिए स्थान और दुकानें देने की व्यवस्था की जाएगी।

    हम इसकी ब्रांडिंग भी करेंगे। ताकि खिलौने ज्यादा से ज्यादा बिक सकें:CM pic.twitter.com/mKWJGQmZkD

    — CMO Madhya Pradesh (@CMMadhyaPradesh) November 6, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

गेहूं और बासमती चावल सहित अन्य उत्पादों को भी जीआई टैग दिलवाने का होगा प्रयास
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि उनका प्रयास है कि यह काम स्थानीय कारीगर ही करें. सरकार इसके लिए नेटवर्क तैयार करेगी. खिलौने ही नहीं यहां के गेहूं और बासमती चावल सहित अन्य उत्पादों को जी आई टैग दिलवाने के हर सम्भव प्रयास होंगे. मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आव्हान पर प्रदेश में शुरू की गई 'एक जिला-एक उत्पाद' योजना में सीहोर जिले में खिलौना उत्पाद को शामिल किया गया है. खिलौनों की कम लागत, फिनिशिंग के लिए क्लस्टर बनाकर प्रशिक्षण दिलाया जाएगा और अन्य खिलौने निर्माण के लिए आवश्यक मशीनरी भी लगाई जाएगी.

मध्य प्रदेश: बालाघाट के चावलों को मिला GI Tag, किसानों की आय बढ़ेगी

क्या है जीआई टैग ? (What is GI Tag)
भारत ने मई, 2010 में अपने यहां सात राज्यों में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh), पंजाब (Panjab), हरियाणा (Haryana), उत्तराखंड (Uttarakhand), दिल्ली (Delhi) के बाहरी क्षेत्रों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) और जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के कुछ भागों में बासमती को जीआई टैग दिया था. किसी उत्पाद को उसके उत्पत्ति की विशेष भौगोलिक पहचान से जोड़ने के लिए जीआई टैग दिया जाता है. ताकि वह उत्पाद अलग और खास बन सके.

What is GI Tag ?
क्या है जीआई टैग ?

संसद से मिली मान्यता

भारतीय संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशेष वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है. ये GI Tag किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में मिलने वाले उत्पाद का दूसरे स्थान पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है.

जीआई टैग के फायदे

जीआई टैग के जरिये उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है यानि जीआई टैग उत्पादों की नकल को रोकता है. साथ ही जीआई टैग किसी उत्पाद की अच्छी गुणवत्ता का पैमाना भी होता है जिससे देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है. इस टैग से किसी उत्पाद के विकास और फिर उस क्षेत्र विशेष के विकास मसलन रोजगार से लेकर राजस्व वृद्धि तक के द्वार खुलते हैं. जीआई टैग मिलने से उस उत्पाद से जुड़े क्षेत्र की विशेष पहचान होती है.

पंजीकरण कैसे, कहां और कितने वक्त के लिए

किसी उत्पाद के जीआई टैग के लिए कोई भी व्यक्तिगत निर्माता, संगठन इसके लिए Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) में आवेदन कर सकता है. जो कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आता है. इस संस्था की तरफ से उत्पाद की विशेषताओं से जुड़े हर दावे को परखा जाता है. पूरी जांच पड़ताल और छानबीन के बाद संतुष्ट होने पर ही जीआई टैग मिलता है. जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है जिसे रिन्यू करवाया जा सकता है. एक निर्धारिक फीस जमा करने पर जीआई टैग की अवधि 10 और वर्षों के लिए बढ़ जाती है. लेकिन इसका हस्तांतरण नहीं हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होता है जीआई टैग

इस टैग से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी उस उत्पाद की कीमत और महत्व बढ़ जाता है. देश-विदेश से लोग उस खास जगह पर टैग वाले सामान को देखना और खरीदना चाहते हैं. इससे उस क्षेत्र विशेष में व्यापार के साथ-साथ पर्यटन क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलता है.जीआई टैग को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है. WTO यानि विश्व व्यापार संगठन (world trade organization) इसके तहत Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights (TRIPS) एक एग्रीमेंट है. सदस्य देशों के बीच इस बात पर सहमति है कि वो एक-दूसरे के जीआई टैग का सम्मान करेंगे. इस एग्रीमेंट के तहत किसी देश के जीआई टैग उत्पाद की किसी भी दूसरे देश में नकली उत्पाद बनाने से रोकने पर भी सहमति बनी हुई है.

पहला जीआई टैग

सबसे पहला जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग की चाय को मिला. इसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्र विशेष की पहचान बन चुके 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. इनमें कश्मीर का केसर और पश्मीना, नागपुर के संतरे, बंगाली रसगुल्ले, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, रतलाम की सेव आदि शामिल हैं.

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