सतना। जिले के मैहर में मां शारदा त्रिकूट पर्वत में विराजमान हैं. जिस तरह मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए भक्त वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं. ठीक उसी तरह मैहर में भी 1063 सीढ़ियां पारकर माता के भक्त मैहर में मां शारदा के दर्शन करने जाते हैं. यहां पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है. मैहर मां शारदा का मंदिर 52 शक्तिपीठों में से 1 शक्तिपीठ माना जाता है.
विश्व प्रसिद्ध मैहर माँ शारदा के दरबार में लगता है भक्तों का तांता, परम भक्त आल्हा की भी होती है पूजा
सतना जिले के मैहर में मां शारदा का प्रसिद्ध मंदिर है. जिसमें साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है. मैहर में मां शारदा के परम भक्त आल्हा का भी मंदिर है. लोगों की मान्यता है कि जब तक आल्हा के मंदिर ना जाया जाए यात्रा अधूरी मानी जाती है.
विश्व प्रसिद्ध मैहर माँ शारदा
सतना। जिले के मैहर में मां शारदा त्रिकूट पर्वत में विराजमान हैं. जिस तरह मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए भक्त वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं. ठीक उसी तरह मैहर में भी 1063 सीढ़ियां पारकर माता के भक्त मैहर में मां शारदा के दर्शन करने जाते हैं. यहां पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है. मैहर मां शारदा का मंदिर 52 शक्तिपीठों में से 1 शक्तिपीठ माना जाता है.
परम भक्त आल्हा मैहर की मां शारदा के मंदिर में ऐसी मान्यता है कि माता के दर्शन करने सबसे पहले उनके बड़े भक्त आल्हा सुबह- सुबह आकर फूल चढ़ाकर जाते हैं. लेकिन आज तक आल्हा को किसी ने देखा नहीं है
आल्हा का इतिहास
मैहर में मां शारदा की ऐसी मान्यता है कि आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था. वह भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे. आल्हा और उदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी. इसके बाद आल्हा ने ही इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया. माता ने उन्हें प्रसन्न होकर अमर होने का आशीर्वाद दिया था.
आल्हा का अखाड़ा
मैहर में आज भी आल्हा का तालाब और अखाड़ा मौजूद हैं. जहां स्नान के बाद कभी आल्हा अपने भाई उदल के साथ मल्ल युद्ध का अभ्यास करते थे. कहते हैं कि यह तालाब आल्हा ने अपने भाई के साथ मिलकर एक दिन में खोदा था. इसी तालाब के पानी से वह नित्य मां का जल अभिषेक भी करते हैं.
आल्हा का पुनर्जन्म
आल्हा देवी मां के अमर भक्त हैं. द्वापर युग में यह महाराज युधिष्ठिर के रूप में प्रतिष्ठित थे. वही कलयुग में उनका आल्हा के रूप में पुनर्जन्म हुआ. जो राजा परिमाल के सेनापति थे.
आल्हा उद्यान
आल्हा देव के मंदिर पर क्षेत्र में आल्हा उद्यान बना हुआ है, जहां आज भी विभिन्न प्रकार की औषधियों के वृक्ष लगे हुए हैं. वहीं पर आल्हा का अखाड़ा भी बना हुआ है जहां आल्हा देव व्यायाम किया करते थे. जहां आज भी भक्तों को उनकी अनुभूति होती है.
आल्हा का मंदिर
आल्हा माता के परम भक्त माने जाते हैं. मैहर में मां शारदा के मंदिर में जो भक्त पूजा करने आते हैं, तो वह आल्हा देव की पूजा अर्चना अवश्य करते हैं. आल्हा देव के दर्शन के बिना मैहर मां शारदा के दर्शन अधूरे माना जाता है. विश्व प्रसिद्ध मैहर मां शारदा की नगरी में आल्हा देव की ख्याति अपने आप में एक प्रसिद्धी मंदिर मानी जाती है. आल्हा देव सबसे पहले मैहर माता की पूजा करते हैं, लेकिन आज तक आल्हा देव को किसी ने नहीं देखा आल्हा देव अदृश्य माने जाते हैं. मैहर में आल्हा का मंदिर शारदा माता की पहाड़ी के ठीक पीछे हैं.
परम भक्त आल्हा मैहर की मां शारदा के मंदिर में ऐसी मान्यता है कि माता के दर्शन करने सबसे पहले उनके बड़े भक्त आल्हा सुबह- सुबह आकर फूल चढ़ाकर जाते हैं. लेकिन आज तक आल्हा को किसी ने देखा नहीं है
आल्हा का इतिहास
मैहर में मां शारदा की ऐसी मान्यता है कि आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था. वह भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे. आल्हा और उदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी. इसके बाद आल्हा ने ही इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया. माता ने उन्हें प्रसन्न होकर अमर होने का आशीर्वाद दिया था.
आल्हा का अखाड़ा
मैहर में आज भी आल्हा का तालाब और अखाड़ा मौजूद हैं. जहां स्नान के बाद कभी आल्हा अपने भाई उदल के साथ मल्ल युद्ध का अभ्यास करते थे. कहते हैं कि यह तालाब आल्हा ने अपने भाई के साथ मिलकर एक दिन में खोदा था. इसी तालाब के पानी से वह नित्य मां का जल अभिषेक भी करते हैं.
आल्हा का पुनर्जन्म
आल्हा देवी मां के अमर भक्त हैं. द्वापर युग में यह महाराज युधिष्ठिर के रूप में प्रतिष्ठित थे. वही कलयुग में उनका आल्हा के रूप में पुनर्जन्म हुआ. जो राजा परिमाल के सेनापति थे.
आल्हा उद्यान
आल्हा देव के मंदिर पर क्षेत्र में आल्हा उद्यान बना हुआ है, जहां आज भी विभिन्न प्रकार की औषधियों के वृक्ष लगे हुए हैं. वहीं पर आल्हा का अखाड़ा भी बना हुआ है जहां आल्हा देव व्यायाम किया करते थे. जहां आज भी भक्तों को उनकी अनुभूति होती है.
आल्हा का मंदिर
आल्हा माता के परम भक्त माने जाते हैं. मैहर में मां शारदा के मंदिर में जो भक्त पूजा करने आते हैं, तो वह आल्हा देव की पूजा अर्चना अवश्य करते हैं. आल्हा देव के दर्शन के बिना मैहर मां शारदा के दर्शन अधूरे माना जाता है. विश्व प्रसिद्ध मैहर मां शारदा की नगरी में आल्हा देव की ख्याति अपने आप में एक प्रसिद्धी मंदिर मानी जाती है. आल्हा देव सबसे पहले मैहर माता की पूजा करते हैं, लेकिन आज तक आल्हा देव को किसी ने नहीं देखा आल्हा देव अदृश्य माने जाते हैं. मैहर में आल्हा का मंदिर शारदा माता की पहाड़ी के ठीक पीछे हैं.
Intro:एंकर --
मध्यप्रदेश के सतना जिले के मैहर मां शारदा त्रिकूट पर्वत में विराजमान हैं. कहते हैं मां हमेशा ऊंचे स्थान पर विराजमान होती है. जिस तरह मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों पार करते हुए भक्त वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं. ठीक उसी तरह सतना जिले के मैहर में भी 1063 सीढ़ियां लांघकर माता के भक्त मैहर मां शारदा के दर्शन करने जाते हैं. मैहर मां शारदा का मंदिर 52 शक्तिपीठों में से 1 शक्तिपीठ माना जाता है. यहां किवदंती है कि प्रतिदिन मां शारदा सबसे पहले पूजा आल्हा देव करते हैं. आल्हा वो शख्सियत हैं जिन्होंने कई मर्तबा पृथ्वीराज सिंह को युद्ध में नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया था. उत्तर प्रदेश के महोबा में राजा परिमल के सेनापति रहे आल्हा और उनके भाई उदल ने 52 गढ़ की लड़ाई जीती थी. आल्हा का मंदिर शारदा माता की पहाड़ी के ठीक पीछे हैं।
Body:Vo --
मैहर मां शारदा की ऐसी मान्यता है कि आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था. वह भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे. आल्हा और उदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी. इसके बाद आल्हा ने ही इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था. माता ने उन्हें प्रसन्न होकर अमर होने का आशीर्वाद दिया था. यहां आज भी आल्हा का तालाब और अखाड़ा मौजूद हैं. जहां स्नान के बाद आल्हा अपने भाई उदल के साथ मल्ल युद्ध का अभ्यास करते थे. कहते हैं कि यह तालाब आल्हा ने अपने भाई के साथ मिलकर एक दिन में खोदा था. इसी तालाब के पानी से वह नित्य मां का जल अभिषेक करते हैं. आल्हा देवी मां के अमर भक्त हैं. द्वापर युग में यह महाराज युधिष्ठिर के रूप में प्रतिष्ठित थे. वही कलयुग में आल्हा के रूप में पुनर्जन्म हुआ. जो राजा परिमाल के सेनापति थे. पृथ्वीराज चौहान ने इनके कई युद्ध हुए हैं सभी युद्धों में पृथ्वीराज चौहान को आल्हा ने पराजित किया था. आल्हा देव नित्य मां शारदा की सबसे पहले पूजा करते हैं और इसका प्रमाण भी मंदिर में प्राप्त हो जाता है. आल्हा देव के मंदिर पर क्षेत्र में आल्हा उद्यान बना हुआ है जहां आज भी विभिन्न प्रकार की औषधियों के वृक्ष लगे हुए हैं. वहीं पर आल्हा अखाड़ा बना हुआ है जहां आल्हा देव व्यायाम करते हैं जहां आज भी भक्तों को उनकी अनुभूति होती है खास करके वह वक्त जो पहलवानी करते हैं. आल्हा दो अपने आप में एक प्रसिद्ध ख्याति है. मैहर मां शारदा के मंदिर में जो भक्त पूजा करने आता है तो वह आल्हा देव की पूजा अर्चना अवश्य करता है. आल्हा देव के दर्शन के बिना मैहर मां शारदा के दर्शन अधूरे माने जाते. विश्व प्रसिद्ध मैहर मां शारदा की नगरी में आल्हा देव की ख्याति अपने आप में एक प्रसिद्ध मंदिर मानी जाती है. आल्हा देव सबसे पहले मैहर माता की पूजा करते हैं लेकिन आज तक आल्हा देव को किसी ने नहीं देखा आल्हा देव अदृश्य माने जाते हैं ।
Conclusion:byte --
सतीश साहू -- भक्त ।
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कमलकांत शर्मा -- स्थानीय निवासी मैहर सतना ।
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स्वामी सिंघी ऋषि महराज -- पुजारी मैहर ।
मध्यप्रदेश के सतना जिले के मैहर मां शारदा त्रिकूट पर्वत में विराजमान हैं. कहते हैं मां हमेशा ऊंचे स्थान पर विराजमान होती है. जिस तरह मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों पार करते हुए भक्त वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं. ठीक उसी तरह सतना जिले के मैहर में भी 1063 सीढ़ियां लांघकर माता के भक्त मैहर मां शारदा के दर्शन करने जाते हैं. मैहर मां शारदा का मंदिर 52 शक्तिपीठों में से 1 शक्तिपीठ माना जाता है. यहां किवदंती है कि प्रतिदिन मां शारदा सबसे पहले पूजा आल्हा देव करते हैं. आल्हा वो शख्सियत हैं जिन्होंने कई मर्तबा पृथ्वीराज सिंह को युद्ध में नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया था. उत्तर प्रदेश के महोबा में राजा परिमल के सेनापति रहे आल्हा और उनके भाई उदल ने 52 गढ़ की लड़ाई जीती थी. आल्हा का मंदिर शारदा माता की पहाड़ी के ठीक पीछे हैं।
Body:Vo --
मैहर मां शारदा की ऐसी मान्यता है कि आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था. वह भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे. आल्हा और उदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी. इसके बाद आल्हा ने ही इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था. माता ने उन्हें प्रसन्न होकर अमर होने का आशीर्वाद दिया था. यहां आज भी आल्हा का तालाब और अखाड़ा मौजूद हैं. जहां स्नान के बाद आल्हा अपने भाई उदल के साथ मल्ल युद्ध का अभ्यास करते थे. कहते हैं कि यह तालाब आल्हा ने अपने भाई के साथ मिलकर एक दिन में खोदा था. इसी तालाब के पानी से वह नित्य मां का जल अभिषेक करते हैं. आल्हा देवी मां के अमर भक्त हैं. द्वापर युग में यह महाराज युधिष्ठिर के रूप में प्रतिष्ठित थे. वही कलयुग में आल्हा के रूप में पुनर्जन्म हुआ. जो राजा परिमाल के सेनापति थे. पृथ्वीराज चौहान ने इनके कई युद्ध हुए हैं सभी युद्धों में पृथ्वीराज चौहान को आल्हा ने पराजित किया था. आल्हा देव नित्य मां शारदा की सबसे पहले पूजा करते हैं और इसका प्रमाण भी मंदिर में प्राप्त हो जाता है. आल्हा देव के मंदिर पर क्षेत्र में आल्हा उद्यान बना हुआ है जहां आज भी विभिन्न प्रकार की औषधियों के वृक्ष लगे हुए हैं. वहीं पर आल्हा अखाड़ा बना हुआ है जहां आल्हा देव व्यायाम करते हैं जहां आज भी भक्तों को उनकी अनुभूति होती है खास करके वह वक्त जो पहलवानी करते हैं. आल्हा दो अपने आप में एक प्रसिद्ध ख्याति है. मैहर मां शारदा के मंदिर में जो भक्त पूजा करने आता है तो वह आल्हा देव की पूजा अर्चना अवश्य करता है. आल्हा देव के दर्शन के बिना मैहर मां शारदा के दर्शन अधूरे माने जाते. विश्व प्रसिद्ध मैहर मां शारदा की नगरी में आल्हा देव की ख्याति अपने आप में एक प्रसिद्ध मंदिर मानी जाती है. आल्हा देव सबसे पहले मैहर माता की पूजा करते हैं लेकिन आज तक आल्हा देव को किसी ने नहीं देखा आल्हा देव अदृश्य माने जाते हैं ।
Conclusion:byte --
सतीश साहू -- भक्त ।
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कमलकांत शर्मा -- स्थानीय निवासी मैहर सतना ।
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स्वामी सिंघी ऋषि महराज -- पुजारी मैहर ।