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गोरैया संरक्षण के लिए अनोखी मुहिम, स्पैरो हाउस (sparrow house) बनाकर आधुनिक तरीके से ऐसे चल रहा अभियान

सतना के शासकीय विद्यालय में पदस्थ एक महिला शिक्षक डॉ.अर्चना शुक्ला की अनोखी पहल चर्चा का विषय बनी हुई है. उन्होंने गोरैया संरक्षण को लेकर स्पैरो हाउस बनाया है. मकसद यही है कि पर्यावरण से विलुप्त हो रही गोरैया को हम बचाएं. डॉ.अर्चना शुक्ला बीते 12 साल से इस काम में लगी हैं. (Unique campaign for sparrow) (sparrow house compaign)

Sparrow house in Satna
गोरैया संरक्षण के लिए स्पैरो हाउस
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Published : Mar 21, 2022, 1:46 PM IST

सतना। पर्यावरण का संतुलन बनाने के लिए सभी प्राणियों का संरक्षण जरूरी है. इसी उद्देश्य को लेकर मध्यप्रदेश के सतना जिले के शासकीय विद्यालय में पदस्थ शिक्षिका डॉ अर्चना शुक्ला ने करीब 12 वर्ष पहले एक अनोखी पहल की शुरुआत की, जो एक मिसाल के रूप मे साबित हो रही है. डॉ. अर्चना शुक्ला ने 12 वर्ष पहले गोरैया संरक्षण पर मुहिम शुरू की. शिक्षिका अर्चना शुक्ला ने गोरैया संरक्षण को लेकर स्पैरो हाउस (Spparow House) बनाया, जिसमे गोरैया अपना ठिकाना बनाकर रहती हैं.

डॉ. अर्चना शुक्ला ने कैसे शुरू की मुहिम

इस बारे में डॉ. अर्चना शुक्ला का कहना है कि जब उनकी पहली पोस्टिंग वर्ष 2010 में सतना जिले के उचेहरा करहीकला शासकीय विद्यालय में हुई तो वहां से उन्होंने गौरैया संरक्षण को लेकर 9th क्लास के बच्चों की मदद से काम शुरू किया. इसके बाद उनकी पोस्टिंग सतना के शासकीय वेंकट क्रमांक वन विद्यालय में हुई, जहां से उन्होंने गौरैया संरक्षण पर कार्य और तेजी से किया।
डॉ. अर्चना शुक्ला ने बच्चों को प्रेरित किया

डॉ. अर्चना शुक्ला ने बच्चों की मदद से गौरैया के लकड़ी के बने घोंसले स्पैरो हाउस (Spparow House) बनाया. उनका कहना है कि सन् 1990 से गौरैया की संख्या लगातार कम होने का कारण उनको घोंसले बनाने की उपयुक्त जगह ना मिल पाना है. उन्होंने पिछले डेढ़ वर्ष में अपने विद्यार्थियों के साथ मिलकर अलग-अलग तरह के घोंसले बनाए. बच्चों ने इन्हें अपने घरों में लगाया. कई घरों में कमियां समझ में आईं. जैसे कि बड़ा छेद होने के कारण दूसरे पक्षी जैसे मैना और रॉबिन अपने घोंसले उसमें बना लिया करते थे.

बच्चों के साथ मिलकर ऐसे बनाया स्पैरो हाउस

घोंसलों में दाना व पानी होने के कारण दूसरे शिकारी पक्षियों ने घोंसले को नष्ट किया.ऐसी समस्या आने पर इन्हें लगातार सुधारा गया. इसके बाद उन्हें एक ऐसा मॉडल (Spparow House) बनाने में सफलता मिली, जो वैज्ञानिक रूप से गौरैया के लिए उपयुक्त लगा. इसे गौरैया ने सालभर में कई जगहों पर तीन बार भी अपनाया है. इस तरह से उन्होंने इस मॉडल के 100 स्पैरो हाउसेस बनवाए. इस बॉक्स में बच्चों ने क्यूआर कोड में लगाया है. गूगल (Google) से स्कैन कर गोरैया के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त जा सकती है.
सतना कलेक्टर की अच्छी पहल, कोविड काल में हुए अनाथ बच्चों के साथ कलेक्टर और उनकी पत्नी ने खेली होली

क्यों विलुप्त होती जा रही हैं गोरैया
जब मकान मिट्टी के हुआ करते थे, तब गोरैया की तादाद बहुत अधिक हुआ करती थी. जैसे-जैसे मकान पत्थर और कंक्रीट के होते गए तो मनुष्य का ह्रदय भी पत्थर का होता गया. अब पर्यावरण के प्रति हमारी जागरूकता धीरे-धीरे कम होती जा रही है. मनुष्य मशीन में परिवर्तित होता जा रहा है. चूंकि पृथ्वी पर हर जीव एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है. यदि कोई भी जीव समाप्त होता है, तो उसका असर मनुष्य पर भी पड़ेगा. हमारे आंगन में आसानी से दिख जाने वाली नन्ही सी चिड़िया गौरैया की संख्या आज तेजी से कम हो रही है. गौरैया जिसे हम हाउस स्पैरो भी कहते हैं. यह पक्षी वर्ग के कुल पैसरिडाए का सदस्य है, इसका वैज्ञानिक नाम पासर डोमिस्टिकस (Passer Domesticus) है. यह हल्की भूरे रंग की होती है. इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है. (Unique campaign for sparrow) (sparrow house compaign)

सतना। पर्यावरण का संतुलन बनाने के लिए सभी प्राणियों का संरक्षण जरूरी है. इसी उद्देश्य को लेकर मध्यप्रदेश के सतना जिले के शासकीय विद्यालय में पदस्थ शिक्षिका डॉ अर्चना शुक्ला ने करीब 12 वर्ष पहले एक अनोखी पहल की शुरुआत की, जो एक मिसाल के रूप मे साबित हो रही है. डॉ. अर्चना शुक्ला ने 12 वर्ष पहले गोरैया संरक्षण पर मुहिम शुरू की. शिक्षिका अर्चना शुक्ला ने गोरैया संरक्षण को लेकर स्पैरो हाउस (Spparow House) बनाया, जिसमे गोरैया अपना ठिकाना बनाकर रहती हैं.

डॉ. अर्चना शुक्ला ने कैसे शुरू की मुहिम

इस बारे में डॉ. अर्चना शुक्ला का कहना है कि जब उनकी पहली पोस्टिंग वर्ष 2010 में सतना जिले के उचेहरा करहीकला शासकीय विद्यालय में हुई तो वहां से उन्होंने गौरैया संरक्षण को लेकर 9th क्लास के बच्चों की मदद से काम शुरू किया. इसके बाद उनकी पोस्टिंग सतना के शासकीय वेंकट क्रमांक वन विद्यालय में हुई, जहां से उन्होंने गौरैया संरक्षण पर कार्य और तेजी से किया।
डॉ. अर्चना शुक्ला ने बच्चों को प्रेरित किया

डॉ. अर्चना शुक्ला ने बच्चों की मदद से गौरैया के लकड़ी के बने घोंसले स्पैरो हाउस (Spparow House) बनाया. उनका कहना है कि सन् 1990 से गौरैया की संख्या लगातार कम होने का कारण उनको घोंसले बनाने की उपयुक्त जगह ना मिल पाना है. उन्होंने पिछले डेढ़ वर्ष में अपने विद्यार्थियों के साथ मिलकर अलग-अलग तरह के घोंसले बनाए. बच्चों ने इन्हें अपने घरों में लगाया. कई घरों में कमियां समझ में आईं. जैसे कि बड़ा छेद होने के कारण दूसरे पक्षी जैसे मैना और रॉबिन अपने घोंसले उसमें बना लिया करते थे.

बच्चों के साथ मिलकर ऐसे बनाया स्पैरो हाउस

घोंसलों में दाना व पानी होने के कारण दूसरे शिकारी पक्षियों ने घोंसले को नष्ट किया.ऐसी समस्या आने पर इन्हें लगातार सुधारा गया. इसके बाद उन्हें एक ऐसा मॉडल (Spparow House) बनाने में सफलता मिली, जो वैज्ञानिक रूप से गौरैया के लिए उपयुक्त लगा. इसे गौरैया ने सालभर में कई जगहों पर तीन बार भी अपनाया है. इस तरह से उन्होंने इस मॉडल के 100 स्पैरो हाउसेस बनवाए. इस बॉक्स में बच्चों ने क्यूआर कोड में लगाया है. गूगल (Google) से स्कैन कर गोरैया के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त जा सकती है.
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क्यों विलुप्त होती जा रही हैं गोरैया
जब मकान मिट्टी के हुआ करते थे, तब गोरैया की तादाद बहुत अधिक हुआ करती थी. जैसे-जैसे मकान पत्थर और कंक्रीट के होते गए तो मनुष्य का ह्रदय भी पत्थर का होता गया. अब पर्यावरण के प्रति हमारी जागरूकता धीरे-धीरे कम होती जा रही है. मनुष्य मशीन में परिवर्तित होता जा रहा है. चूंकि पृथ्वी पर हर जीव एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है. यदि कोई भी जीव समाप्त होता है, तो उसका असर मनुष्य पर भी पड़ेगा. हमारे आंगन में आसानी से दिख जाने वाली नन्ही सी चिड़िया गौरैया की संख्या आज तेजी से कम हो रही है. गौरैया जिसे हम हाउस स्पैरो भी कहते हैं. यह पक्षी वर्ग के कुल पैसरिडाए का सदस्य है, इसका वैज्ञानिक नाम पासर डोमिस्टिकस (Passer Domesticus) है. यह हल्की भूरे रंग की होती है. इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है. (Unique campaign for sparrow) (sparrow house compaign)

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