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मैहर में है देवी का अनोखा शक्तिपीठ, हर सुबह फूल चढ़ाने आते हैं आल्हा

मैहर में मां शारदा के मंदिर से जुड़ी एक कहानी भी प्रचलित है. कहा जाता है कि बुंदेलखंड के वीर योद्धा आल्हा ने कई साल मां शारदा की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर मां शारदा ने उन्हें अमरत्व के वरदान के साथ ही अपनी प्रथम पूजा करने का अधिकार भी दिया था. लोगों का मानना है कि आल्हा अभी भी जिंदा हैं और वह रोज मां के दर्शन करने आते हैं.

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Published : Mar 21, 2019, 5:12 AM IST

मैहर मंदिर

सतना। धर्म, त्याग, निष्ठा की भूमि है सतना का मैहर. त्रिकूट पर्वत पर बना मां शारदा का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां के कण-कण में मां शारदा का वास है. नैसर्गिक सुंदरता से भरा ये धार्मिक स्थल तमसा नदी के किनारे बसा है. कहते हैं कि माता सती का हार त्रिकूट पर्वत पर आकर गिरा था, इसलिए यह शहर मैहर के नाम से जाना जाने लगा. पहाड़ पर विराजमान मां शारदा के दर्शनों के लिए भक्तों को 1063 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं.

मैहर में मां शारदा के मंदिर से जुड़ी एक कहानी भी प्रचलित है. कहा जाता है कि बुंदेलखंड के वीर योद्धा आल्हा ने कई साल मां शारदा की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर मां शारदा ने उन्हें अमरत्व के वरदान के साथ ही अपनी प्रथम पूजा करने का अधिकार भी दिया था. लोगों का मानना है कि आल्हा अभी भी जिंदा हैं और वह रोज मां के दर्शन करने आते हैं. इसलिए रात 2 बजे से सुबह 5 बजे तक देवी का दरबार बंद रखा जाता है. कहा जाता है कि जब 5 बजे के बाद मंदिर दोबारा खोला जाता है तो वहां ऐसे पुष्प मां शारदा को चढ़ाए हुए मिलते हैं, जो आसपास देखने को भी नहीं मिलते.

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मंदिर के पास एक कुंड भी बना हुआ है जिसे आल्हा कुंड के नाम से जाना जाता है. कुंड से लगभग 2 किलोमीटर दूर एक अखाड़ा भी बना हुआ है. कहते हैं कि आल्हा-ऊदल इसी अखाड़े में दंगल किया करते थे. आज भी मां शारदा के दर्शन करने वाले भक्त मां के परमभक्त को याद करना नहीं भूलते हैं. लोगों की आस्था, आल्हा की भक्ति, पवित्रता और रहस्यों से भरी हुई मध्यप्रदेश की यह नगरी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

सतना। धर्म, त्याग, निष्ठा की भूमि है सतना का मैहर. त्रिकूट पर्वत पर बना मां शारदा का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां के कण-कण में मां शारदा का वास है. नैसर्गिक सुंदरता से भरा ये धार्मिक स्थल तमसा नदी के किनारे बसा है. कहते हैं कि माता सती का हार त्रिकूट पर्वत पर आकर गिरा था, इसलिए यह शहर मैहर के नाम से जाना जाने लगा. पहाड़ पर विराजमान मां शारदा के दर्शनों के लिए भक्तों को 1063 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं.

मैहर में मां शारदा के मंदिर से जुड़ी एक कहानी भी प्रचलित है. कहा जाता है कि बुंदेलखंड के वीर योद्धा आल्हा ने कई साल मां शारदा की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर मां शारदा ने उन्हें अमरत्व के वरदान के साथ ही अपनी प्रथम पूजा करने का अधिकार भी दिया था. लोगों का मानना है कि आल्हा अभी भी जिंदा हैं और वह रोज मां के दर्शन करने आते हैं. इसलिए रात 2 बजे से सुबह 5 बजे तक देवी का दरबार बंद रखा जाता है. कहा जाता है कि जब 5 बजे के बाद मंदिर दोबारा खोला जाता है तो वहां ऐसे पुष्प मां शारदा को चढ़ाए हुए मिलते हैं, जो आसपास देखने को भी नहीं मिलते.

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मंदिर के पास एक कुंड भी बना हुआ है जिसे आल्हा कुंड के नाम से जाना जाता है. कुंड से लगभग 2 किलोमीटर दूर एक अखाड़ा भी बना हुआ है. कहते हैं कि आल्हा-ऊदल इसी अखाड़े में दंगल किया करते थे. आज भी मां शारदा के दर्शन करने वाले भक्त मां के परमभक्त को याद करना नहीं भूलते हैं. लोगों की आस्था, आल्हा की भक्ति, पवित्रता और रहस्यों से भरी हुई मध्यप्रदेश की यह नगरी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

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मैहर में है देवी का अनोखा शक्तिपीठ, हर सुबह फूल चढ़ाने आते हैं आल्हा

 



सतना। धर्म, त्याग, निष्ठा की भूमि है सतना का मैहर. त्रिकूट पर्वत पर बना मां शारदा का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां के कण-कण में मां शारदा का वास है. नैसर्गिक सुंदरता से भरा ये धार्मिक स्थल तमसा नदी के किनारे बसा है. कहते हैं कि माता सती का हार त्रिकूट पर्वत पर आकर गिरा था, इसलिए यह शहर मैहर के नाम से जाना जाने लगा. पहाड़ पर विराजमान मां शारदा के दर्शनों के लिए भक्तों को 1063 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं.



मैहर में मां शारदा के मंदिर से जुड़ी एक कहानी भी प्रचलित है. कहा जाता है कि बुंदेलखंड के वीर योद्धा आल्हा ने कई साल मां शारदा की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर मां शारदा ने उन्हें अमरत्व के वरदान के साथ ही अपनी प्रथम पूजा करने का अधिकार भी दिया था. लोगों का मानना है कि आल्हा अभी भी जिंदा हैं और वह रोज मां के दर्शन करने आते हैं. इसलिए रात 2 बजे से सुबह 5 बजे तक देवी का दरबार बंद रखा जाता है. कहा जाता है कि जब 5 बजे के बाद मंदिर दोबारा खोला जाता है तो वहां ऐसे पुष्प मां शारदा को चढ़ाए हुए मिलते हैं, जो आसपास देखने को भी नहीं मिलते.



मंदिर के पास एक कुंड भी बना हुआ है जिसे आल्हा कुंड के नाम से जाना जाता है. कुंड से लगभग 2 किलोमीटर दूर एक अखाड़ा भी बना हुआ है. कहते हैं कि आल्हा-ऊदल इसी अखाड़े में दंगल किया करते थे. आज भी मां शारदा के दर्शन करने वाले भक्त मां के परमभक्त को याद करना नहीं भूलते हैं. लोगों की आस्था, आल्हा की भक्ति, पवित्रता और रहस्यों से भरी हुई मध्यप्रदेश की यह नगरी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

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मैहर में मां शारदा के मंदिर से जुड़ी एक कहानी भी प्रचलित है. कहा जाता है कि बुंदेलखंड के वीर योद्धा आल्हा ने कई साल मां शारदा की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर मां शारदा ने उन्हें अमरत्व के वरदान के साथ ही अपनी प्रथम पूजा करने का अधिकार भी दिया था. लोगों का मानना है कि आल्हा अभी भी जिंदा हैं और वह रोज मां के दर्शन करने आते हैं.


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