सतना। मध्य प्रदेश के सतना जिले में एक छोटा सा गांव चूंद मौजूद है. यह ऐसा गांव है, जिसे शहीदों के नाम से जाना जाता है. यहां का हर बाशिंदा देश के लिए मर मिटने को तैयार है. बचपन से ही चूंद गांव के हर बच्चे के मन में सेना में जाने का जुनून होता है. देश की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहने का जज्बा इस गांव में देखा जाता है. इस गांव में निवास करने वाले कई वीर जवानों ने देश के लिए अपनी कुर्बानी दी. करगिल युद्ध में शामिल होकर यहां के कई जवान शहीद हो गए. गांव में वीर शहीद जवानों के नाम से स्मारक भी बनाया गया हैं.
चूंद गांव की कोख में पलते हैं वीर सपूत
सतना जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर दूर स्थित चूंद गांव के लोगों की सेना में भर्ती होने की परंपरा रीवा स्टेट के जमाने से शुरू हुई थी. आज भी इस गांव के बच्चे-बच्चे में बचपन से ही सेना में जाने के लिए जज्बा दिखाई देता है. करीब 5 हजार की आबादी वाले इस गांव को सैनिकों का गांव माना जाता है. चूंद ने देश को सिपाही से लेकर ब्रिगेडियर और मरीन कमांडो तक दिए. यहां ऐसे कई परिवार भी हैं, जिनकी चार पुष्तों से लोग सरहद निगहबानी कर रहे हैं.
सोमवंशी ठाकुरों की है गांव में ज्यादातर आबादी
इस गांव की ज्यादातर आबादी सोमवंशी ठाकुरों की है, जिनके पूर्वज कभी यहां आकर बस गए थे. होश संभालते ही गांव का हर युवा सबसे पहले फौज में जाने के सपने संजोता है. दसवीं कक्षा पास करने के बाद लड़के दौड़ना और व्यायाम करना शुरू कर देते हैं. वर्ष 1999 में जब पाकिस्तान ने करगिल हील्स पर कब्जा कर भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया था, तो अलग-अलग सेक्टरों में चूंद के जाबाजों ने भी मोर्चा संभाल रखा था. करगिल युद्ध के दौरान चूंद गांव के तीन जवान शहीद हुए थे.
सेना में गांव के 300 जवान, कई रिटायर भी हुए
करगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिक समर बहादुर सिंह, कन्हैया लाल सिंह, बाबूलाल सिंह के जज्बे की कहानी आज भी गांव के लोग सुनाते हैं. इस गांव के बच्चों का एक ही सपना है, सेना में जाना और देश की सेवा करना. करगिल युद्ध के दौरान गांव के दो सगे भाइयों ने शहादत दी थी, जिसके बाद बड़े भाई की पत्नी ने पति के शहीद होने पर अपने बेटे को भी सेना में भर्ती कराया. आज भी वह बेटा देश की सेवा कर रहा हैं. इस गांव की खास बात यह है कि गांव के 3 सौ से ज्यादा जवान देश की सेवा में हैं. और इससे भी ज्यादा सेवानिवृत्त हो चुके हैं.
करगिल युद्ध में दो भाईयों ने दी थी शहादत
करगिल युद्ध के दौरान चूंद गांव के दो सगे भाई कन्हैया लाल सिंह और बाबूलाल सिंह शहीद हो गए थे.शहीद कन्हैया लाल सिंह का जन्म 10 अगस्त 1965 को हुआ था. वह साल 1983 में सेना में भर्ती हुए थे. वहीं 11 मई 1998 में करगिल युद्ध में वह शहीद हो गए. युद्ध के दौरान वह पुंछ-राजौरी सेक्टर में शहीद हुए थे. कन्हैया लाल की दो बेटियां और एक बेटा है, जब वह शहीद हुए थे तब उनकी बड़ी बेटी पूजा सिंह 10 वर्ष, छोटी बेटी प्रियंका सिंह 5 वर्ष और बेटा विनय सिंह 6 वर्ष का था. पिता की वीरता की कहानी प्रेरित होकर आज विनय सिंह भी सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, उन्होंने साल 2012 में आर्मी ज्वाइन की. शहीद कन्हैया लाल सिंह की दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है.
कन्हैया के छोटे भाई शहीद बाबूलाल सिंह का जन्म 26 जनवरी 1967 को हुआ था. 23 जनवरी 1987 को बाबूलाल सिंह सेना में भर्ती हुए, और 31 अक्टूबर 2000 को वह करगिल युद्ध में शहीद हो गए. बाबूलाल सिंह के दो बेटे और एक बेटी हैं. उनकी शहादत के बाद बड़े बेटे रोहित सिंह, छोटे बेटे चंदन सिंह और बेटी रेशमा सिंह की पूरी देखभाल उनकी पत्नी राज दुलारी सिंह ने की. शहीद बाबूलाल सिंह की पहली पोस्टिंग गंगानगर, फिर झांसी, राजस्थान में हुई. अपने भाई के साथ ही वह पुंछ-राजौरी सेक्टर में शहीद हुए थे.
शहीद समर बहादुर सिंह की 'शौर्यगाथा'
देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले समर बहादुर सिंह का जन्म 19 जुलाई 1969 को हुआ था. वह तीन भाई थे, सबसे बड़े मलखान सिंह रिटायर्ड सिपाही हैं. मलखान सिंह पंजाब, श्रीनगर, वेस्ट बंगाल समेत कई जगहों पर अपनी सेवाएं देकर जबलपुर से रिटायर हुए. जो वर्तमान में अपने गांव पर ही निवास कर रहे हैं. दूसरे सुलखान सिंह जो एक प्राइवेट फैक्ट्री में कार्यरत हैं और सबसे छोटे समर बहादुर सिंह थे, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की आहुति दे दी. समर बहादुर की सात बहने थीं सभी विवाहित हैं. जब वह छोटे थे तब सर से माता-पिता का साया उठ चुका था, ऐसे में उनके बड़े भाई मलखान सिंह ने उनकी शिक्षा-दीक्षा का भार उठाया. दसवीं पास करने के बाद समर बहादुर मार्च 1988 में सेना में भर्ती हुए थे.
समर बहादुर सिंह के दो बेटे हैं, पहले राहुल सिंह जो वर्तमान में सेना में पदस्थ हैं, तो वहीं दूसरे बेटे अखिलेश सिंह, जो सिविल इंजीनियर पद पर प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हैं. समर बहादुर सिंह के शहीद होने के समय दोनों बेटे बहुत छोटे थे, पहले बेटे की उम्र ढाई साल और दूसरे की डेढ़ माह थी. समर बहादुर की पत्नी गीता सिंह ने पति के शहीद होने के बाद बच्चों की शिक्षा दीक्षा का पूरा भार उठाया. आज उनका बड़ा बेटा भी सेना में अपनी सेवाएं दे रहा है. समर बहादुर सिंह 29 अगस्त 1994 में उरी सेक्टर में करगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए थे.
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देश के लिए गांव के इन वीर सपूतों ने दी शहादत
बद्री प्रसाद, भारत-चीन युद्ध 1962
सुग्रीव, भारत-चीन युद्ध 1962
रामपाल सिंह, भारत-पाक युद्ध 1965
वंशराज सिंह, भारत-पाक युद्ध 1965
दुर्गा प्रसाद, भारत-पाक युद्ध 1971
छोटेलाल सिंह, भारत-पाक युद्ध 1971
लालजी सिंह सिपाही, ऑपरेशन मेघदूत
कारगिल युद्ध में शहीद हुए चूंद गांव के वीर सपूत
समर बहादुर सिंह - सिपाही
कन्हैया लाल सिंह - नायक
बाबूलाल सिंह - नायक
जिले के दूसरे गांव के शहीद जवान
केपी कुशवाहा - गनर मेहुति
राजेंद्र सेन - सिपाही मेदनीपुर
शिवशंकर प्रसाद पांडेय - सिपाही कुआं
मूलभूत सुविधाओं से वंचित से वीर सपूतों का गांव
जिस मिट्टी पर देश के वीर सपूत जन्म लेते हैं, आजादी के 74 साल बाद भी वह आज मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. सतना से 30 किलोमीटर दूर स्थित चूंद गांव में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. शहीद परिवारों के घर जाने के लिए तक सड़क नहीं है. अगर किसी भी व्यक्ति को कोई बीमारी हो जाए तो उसे 10 किलोमीटर पैदल लेकर जाना पड़ता है. शहीद के बेटे ने भी शासन-प्रशासन पर सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि सालों से विकास के नाम पर उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है.