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कारगिल युद्ध में शहीद हुए सतना के जवान राजेंद्र सेन की वीरगाथा - सतना जिले मेदनीपुर गांव

कारगिल युद्ध में शहीद हुए सतना के वीर जवान राजेंद्र सेन की वीरगाथा उनके गांव का हर बच्चा जानता है. इस गांव का बच्चा- बच्चा सेना में जाने के सपने देखता है.

Rajendra Sen of Satna martyred in Kargil war
कारगिल युद्ध में शहीद हुए सतना के राजेंद्र सेन
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Published : Jul 25, 2020, 11:28 AM IST

सतना। जिला मुख्यालय से महज 17 किलोमीटर दूर स्थित मेदनीपुर गांव निवासी राजेंद्र सेन ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. राजेंद्र सेन की वीरगाथा उनके गांव का हर बच्चा जानता है. आज इस गांव का बच्चा- बच्चा सेना में जाने के सपने देखता है. करीब 2,500 की आबादी वाले इस गांव को सैनिकों का गांव कहा जाता है. होश संभालते ही गांव का हर युवा सबसे पहले फौज में जाने के सपने संजोता है, दसवीं कक्षा पास करने के बाद लड़के दौड़ना और व्यायाम करना शुरू कर देते हैं. साल 1999 में जब पाकिस्तान ने कारगिल हील्स पर कब्जा कर भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया था, तो अलग-अलग सेक्टरों के सतना जिले के जांबाजों ने भी मोर्चा संभाल रखा था. ऐसे ही जांबाज मेदनीपुर गांव के निवासी राजेंद्र सेन थे. कारगिल युद्ध में राजेंद्र सेन दुश्मन से लोहा लेते शहीद हुए थे, उनकी याद में सतना शहर के सिविल लाइन चौराहे पर शहीद राजेंद्र सेन का स्टैचू बनवाया गया है.

कारगिल युद्ध में शहीद हुए सतना के राजेंद्र सेन
शहीद राजेंद्र सेन की पत्नी पार्वती सेन बताया कि, उनको सेना में जाने का बहुत शौक था और घर में इकलौते बेटे थे, उनकी 6 बहने थीं, 6 बहन के बीच में अकेला भाई होने की वजह से माता- पिता ने उन्हें सेना में जाने से मना किया, लेकिन राजेंद्र नहीं माने. उनका हमेशा कहना था कि, वो अपने प्राण देश की रक्षा के लिए त्याग सकते हैं. जब राजेंद्र शहीद हुए, तो उनका बेटा विकास सेन 2 साल का था. ठीक से बोल भी नहीं पाता था. तब उसके पिता देश की रक्षा के लिए शहीद हो गए, उनकी पत्नी पार्वती सेन ने बच्चे की शिक्षा- दीक्षा और पालन पोषण का पूरा भार उठाया. आज उनके बेटे की उम्र 23 साल हो चुकी है, बेटा इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर के स्टूडेंट है, राजेंद्र सेन के शहीद होने पर उनकी पत्नी अपने आपको गौरवान्वित महसूस करती हैं.

शहीद के बेटे विकास सेन ने बताया कि, जब वो ठीक से बोल और समझ नहीं सकता था, तब पिता देश की रक्षा के लिए शहीद हुए और उन्हें अपने पिता पर बहुत गर्व है, वो अपनी मां को अपना आइडल मानते हैं. उन्होंने पिता के देहांत के बाद बेटे की शिक्षा-दीक्षा का बोझ उठाया.

शहीद राजेंद्र सेन के बारे में स्थानीय लोगों ने बताया कि, वो बचपन से ही सेना में जाने का शौक रखते थे, उन्हें सेना में जाकर देश की रक्षा करनी थी. गांव के कई लोग वर्तमान में सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, राजेंद्र सेन के शहीद होने के बाद अब गांव का हर युवा सेना में जाने की ख्वाहिश रखता है, शहीद राजेंद्र सेन की वजह से आज पूरा गांव और समाज के सभी लोग खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं.

सतना। जिला मुख्यालय से महज 17 किलोमीटर दूर स्थित मेदनीपुर गांव निवासी राजेंद्र सेन ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. राजेंद्र सेन की वीरगाथा उनके गांव का हर बच्चा जानता है. आज इस गांव का बच्चा- बच्चा सेना में जाने के सपने देखता है. करीब 2,500 की आबादी वाले इस गांव को सैनिकों का गांव कहा जाता है. होश संभालते ही गांव का हर युवा सबसे पहले फौज में जाने के सपने संजोता है, दसवीं कक्षा पास करने के बाद लड़के दौड़ना और व्यायाम करना शुरू कर देते हैं. साल 1999 में जब पाकिस्तान ने कारगिल हील्स पर कब्जा कर भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया था, तो अलग-अलग सेक्टरों के सतना जिले के जांबाजों ने भी मोर्चा संभाल रखा था. ऐसे ही जांबाज मेदनीपुर गांव के निवासी राजेंद्र सेन थे. कारगिल युद्ध में राजेंद्र सेन दुश्मन से लोहा लेते शहीद हुए थे, उनकी याद में सतना शहर के सिविल लाइन चौराहे पर शहीद राजेंद्र सेन का स्टैचू बनवाया गया है.

कारगिल युद्ध में शहीद हुए सतना के राजेंद्र सेन
शहीद राजेंद्र सेन की पत्नी पार्वती सेन बताया कि, उनको सेना में जाने का बहुत शौक था और घर में इकलौते बेटे थे, उनकी 6 बहने थीं, 6 बहन के बीच में अकेला भाई होने की वजह से माता- पिता ने उन्हें सेना में जाने से मना किया, लेकिन राजेंद्र नहीं माने. उनका हमेशा कहना था कि, वो अपने प्राण देश की रक्षा के लिए त्याग सकते हैं. जब राजेंद्र शहीद हुए, तो उनका बेटा विकास सेन 2 साल का था. ठीक से बोल भी नहीं पाता था. तब उसके पिता देश की रक्षा के लिए शहीद हो गए, उनकी पत्नी पार्वती सेन ने बच्चे की शिक्षा- दीक्षा और पालन पोषण का पूरा भार उठाया. आज उनके बेटे की उम्र 23 साल हो चुकी है, बेटा इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर के स्टूडेंट है, राजेंद्र सेन के शहीद होने पर उनकी पत्नी अपने आपको गौरवान्वित महसूस करती हैं.

शहीद के बेटे विकास सेन ने बताया कि, जब वो ठीक से बोल और समझ नहीं सकता था, तब पिता देश की रक्षा के लिए शहीद हुए और उन्हें अपने पिता पर बहुत गर्व है, वो अपनी मां को अपना आइडल मानते हैं. उन्होंने पिता के देहांत के बाद बेटे की शिक्षा-दीक्षा का बोझ उठाया.

शहीद राजेंद्र सेन के बारे में स्थानीय लोगों ने बताया कि, वो बचपन से ही सेना में जाने का शौक रखते थे, उन्हें सेना में जाकर देश की रक्षा करनी थी. गांव के कई लोग वर्तमान में सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, राजेंद्र सेन के शहीद होने के बाद अब गांव का हर युवा सेना में जाने की ख्वाहिश रखता है, शहीद राजेंद्र सेन की वजह से आज पूरा गांव और समाज के सभी लोग खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं.

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