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रैगांव उपचुनाव: कांग्रेस की कल्पना के सामने बीजेपी की प्रतिमा का मुकाबला, बागरी परिवार ने भी खरीदा नामांकन फॉर्म - कांग्रेस की कल्पना के सामने बीजेपी की प्रतिमा का मुकाबला

रैगांव से कांग्रेस की कल्पना वर्मा और बीजेपी की प्रतिमा बागरी के बीच मुकाबला होना है. इस बीच बागरी परिवार के सदस्यों ने भी नामांकन फॉर्म खरीद लिया है.

कांग्रेस की कल्पना के सामने बीजेपी की प्रतिमा का मुकाबला
कांग्रेस की कल्पना के सामने बीजेपी की प्रतिमा का मुकाबला
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Published : Oct 7, 2021, 10:36 PM IST

भोपाल/सतना। रैगांव विधानसभा सीट पर उपचुनाव का मुकाबला कांग्रेस की कल्पना वर्मा और बीजेपी की प्रतिमा बागरी के बीच है. अनुसूचित जाति बहुत इस विधानसभा सीट हुए दस चुनावों में पांच बार बीजेपी उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है. इस सीट पर अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग के मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं सवर्ण मतदाताओं को साधने में पार्टियां जुटी रहती हैं. कांग्रेस की कल्पना वर्मा पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थीं.

जुगल किशोर बागरी के परिवार ने खोला मोर्चा

बीजेपी के टिकट फाइनल होने के बाद दिवंगत विधायक जुगल किशोर बागरी के दोनों पुत्र कलेक्ट्रेट पहुंचे, जहां पुत्र पुष्पराज बागरी ने छोटे भाई देवराज बागरी के नाम से नामांकन फॉर्म लिया, वहीं देवराज अपनी पत्नी के नाम पर पहले ही फॉर्म ले चुके हैं. वहीं पुष्पराज बागरी भी पहले ही अपने नाम का फॉर्म ले चुके हैं. टिकट ना मिलने से दिवंगत विधायक के पुत्र ने पार्टी के इस निर्णय पर अफसोस जताते हुए नजर आए. नए प्रत्याशी प्रतिमा बागरी पर इशारों-इशारों में निशाना साधा.

बागरी परिवार ने भी खरीदा नामांकन फॉर्म

आपसी खींचतान से प्रतिमा को मिला फायदा

बीजेपी उम्मीदवार प्रतिमा बागरी पार्टी में लंबे समय से महिला मोर्चा में सक्रिय रही हैं. उनके पिता जय प्रताप बागरी और मां कमलेश बागरी दोनों एक ही कार्यकाल में पंचायत सदस्य रहे हैं. जय प्रताप बागरी बीजेपी के दिवंगत विधायक जुगुलकिशोर बागरी के बड़े भाई हैं. बीजेपी उम्मीदवार प्रतिमा बागरी की सास उषा बागरी भी सेवा सहकारी समिति, कुलगढ़ी सतना की पूर्व अध्यक्ष रही हैं. पति डाॅ.संदीप बागरी कृषि यंत्रों के बड़े कारोबारी हैं. जुगुल किशोर बागरी के निधन के बाद उनके दोनों बेटों में टिकट को लेकर मचे घमासान का फायदा प्रतिमा बागरी को मिला है.

कांग्रेस ने जताया फिर कल्पना पर भरोसा

रैगांव विधानसभा सीट के लिए कांग्रेस ने कल्पना वर्मा पर भरोसा जताया है. इस सीट से पूर्व विधायक उषा चौधरी को भी दावेदारी कर रही थी. कल्पना वर्मा पिछले चुनाव में भी मैदान में उतरी थी, लेकिन बीजेपी उम्मीदवार जुगल किशोर बागरी से 17 हजार 421 वोटों से चुनाव हार गई थी. कल्पना को रैगांव में कांग्रेस का लोकप्रिय चेहरा माना जाता है. वे चौधरी समाज से आती हैं और कमलनाथ की समर्थक मानी जाती हैं.

सीट का पिछला इतिहास

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस विधानसभा सीट पर बीजेपी-कांग्रेस के बीच मुकाबलों को तीसरा दल हमेशा रोचक बनाता है. 1.85 लाख मतदाता वाली इस सीट में हरिजन और कुशवाह समाज की बड़ी आबादी है. यही वजह है कि यहां से बीएसपी रेस में रहती है. 2013 के चुनाव में बीएसपी की उषा चौधरी ने यहां से जीत दर्ज की थी. वैसे 1977 से अस्तित्व में आई रैगांव विधानसभा क्षेत्र में अब तक 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं. जिसमें से पांच बार बीजपी ने जीत दर्ज की है, वहीं दो बार कांग्रेस, एक बार बीएसपी और दो बार अन्य दलों के उम्मीदवारों ने जीत का स्वाद चखा है.

सीट का जातिगत गणित

इस सीट पर जातिगत गणित हमेशा नतीजों को प्रभावित करता है. इसमें अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहती हैं. इस सीट पर बागरी समुदाय के सबसे ज्यादा मतदाता है, यही वजह है कि इस समुदाय के उम्मीदवार को यहां हमेशा फायदा मिला है. अनुसूचित जाति वर्ग में बागरी समुदाय के अलावा हरिजन, कोरी समुदाय के भी मतदाता जीत हार को प्रभावित करते हैं.

भोपाल/सतना। रैगांव विधानसभा सीट पर उपचुनाव का मुकाबला कांग्रेस की कल्पना वर्मा और बीजेपी की प्रतिमा बागरी के बीच है. अनुसूचित जाति बहुत इस विधानसभा सीट हुए दस चुनावों में पांच बार बीजेपी उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है. इस सीट पर अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग के मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं सवर्ण मतदाताओं को साधने में पार्टियां जुटी रहती हैं. कांग्रेस की कल्पना वर्मा पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थीं.

जुगल किशोर बागरी के परिवार ने खोला मोर्चा

बीजेपी के टिकट फाइनल होने के बाद दिवंगत विधायक जुगल किशोर बागरी के दोनों पुत्र कलेक्ट्रेट पहुंचे, जहां पुत्र पुष्पराज बागरी ने छोटे भाई देवराज बागरी के नाम से नामांकन फॉर्म लिया, वहीं देवराज अपनी पत्नी के नाम पर पहले ही फॉर्म ले चुके हैं. वहीं पुष्पराज बागरी भी पहले ही अपने नाम का फॉर्म ले चुके हैं. टिकट ना मिलने से दिवंगत विधायक के पुत्र ने पार्टी के इस निर्णय पर अफसोस जताते हुए नजर आए. नए प्रत्याशी प्रतिमा बागरी पर इशारों-इशारों में निशाना साधा.

बागरी परिवार ने भी खरीदा नामांकन फॉर्म

आपसी खींचतान से प्रतिमा को मिला फायदा

बीजेपी उम्मीदवार प्रतिमा बागरी पार्टी में लंबे समय से महिला मोर्चा में सक्रिय रही हैं. उनके पिता जय प्रताप बागरी और मां कमलेश बागरी दोनों एक ही कार्यकाल में पंचायत सदस्य रहे हैं. जय प्रताप बागरी बीजेपी के दिवंगत विधायक जुगुलकिशोर बागरी के बड़े भाई हैं. बीजेपी उम्मीदवार प्रतिमा बागरी की सास उषा बागरी भी सेवा सहकारी समिति, कुलगढ़ी सतना की पूर्व अध्यक्ष रही हैं. पति डाॅ.संदीप बागरी कृषि यंत्रों के बड़े कारोबारी हैं. जुगुल किशोर बागरी के निधन के बाद उनके दोनों बेटों में टिकट को लेकर मचे घमासान का फायदा प्रतिमा बागरी को मिला है.

कांग्रेस ने जताया फिर कल्पना पर भरोसा

रैगांव विधानसभा सीट के लिए कांग्रेस ने कल्पना वर्मा पर भरोसा जताया है. इस सीट से पूर्व विधायक उषा चौधरी को भी दावेदारी कर रही थी. कल्पना वर्मा पिछले चुनाव में भी मैदान में उतरी थी, लेकिन बीजेपी उम्मीदवार जुगल किशोर बागरी से 17 हजार 421 वोटों से चुनाव हार गई थी. कल्पना को रैगांव में कांग्रेस का लोकप्रिय चेहरा माना जाता है. वे चौधरी समाज से आती हैं और कमलनाथ की समर्थक मानी जाती हैं.

सीट का पिछला इतिहास

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस विधानसभा सीट पर बीजेपी-कांग्रेस के बीच मुकाबलों को तीसरा दल हमेशा रोचक बनाता है. 1.85 लाख मतदाता वाली इस सीट में हरिजन और कुशवाह समाज की बड़ी आबादी है. यही वजह है कि यहां से बीएसपी रेस में रहती है. 2013 के चुनाव में बीएसपी की उषा चौधरी ने यहां से जीत दर्ज की थी. वैसे 1977 से अस्तित्व में आई रैगांव विधानसभा क्षेत्र में अब तक 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं. जिसमें से पांच बार बीजपी ने जीत दर्ज की है, वहीं दो बार कांग्रेस, एक बार बीएसपी और दो बार अन्य दलों के उम्मीदवारों ने जीत का स्वाद चखा है.

सीट का जातिगत गणित

इस सीट पर जातिगत गणित हमेशा नतीजों को प्रभावित करता है. इसमें अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहती हैं. इस सीट पर बागरी समुदाय के सबसे ज्यादा मतदाता है, यही वजह है कि इस समुदाय के उम्मीदवार को यहां हमेशा फायदा मिला है. अनुसूचित जाति वर्ग में बागरी समुदाय के अलावा हरिजन, कोरी समुदाय के भी मतदाता जीत हार को प्रभावित करते हैं.

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