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गैवीनाथ धाम शिवालय में उमड़ा भक्तों का जन सैलाब

जिले में भगवान भोलेनाथ का एक ऐसा मंदिर जहां स्वयंभू स्थापित शिवलिंग है, यह मंदिर जिले के बिरसिंहपुर कस्बे में गैवीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है. मंदिर में आज महाशिवरात्रि के मौके पर भक्तों का तांता लगा हुआ है.

Gavinath Dham Pagoda
गैवीनाथ धाम शिवालय
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Published : Mar 11, 2021, 5:04 PM IST

सतना। जिला मुख्यालय से महज 35 किलोमीटर दूर बिरसिंहपुर कस्बे में भगवान भोलेनाथ का मंदिर स्थित है, जिसे गैवीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है. यहां पर खंडित शिवलिंग की पूजा होती है. इसका वर्णन पदम पुराण के पाताल खंड में मिलता है. गैवीनाथ धाम को उज्जैन महाकाल का दूसरा रूप लिंग कहा जाता है.

  • मंदिर का इतिहास

पदम पुराण के अनुसार त्रेता युग में बिरसिंहपुर कस्बे में राजा वीर सिंह का राज हुआ करता था, उस समय बिरसिंहपुर देवपुर के नाम से जाना जाता था. राजा वीर सिंह प्रतिदिन भगवान महाकाल को जल चढ़ाने के लिए घोड़े पर सवार होकर उज्जैन महाकाल दर्शन करने जाते थे. ऐसा माना जाता है कि करीब 650 वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा. इस तरह राजा वृद्ध हो गए और उज्जैन जाने में परेशानी होने लगी. जिसके बाद उन्होंने भगवान महाकाल के सामने मन की बात रखी.

  • राजा के सपने में आए भगवान भोलनाथ

ऐसा माना जाता है कि भगवान महाकाल ने राजा वीर सिंह को सपने में दर्शन दिए. जिसके बाद नगर में गैवी यादव नामक व्यक्ति के घर में एक घटना सामने आई. जहां घर के चूल्हे से रात को शिवलिंग रूप निकला था. एक दिन महाकाल फिर राजा के स्वप्न में आए और कहां कि मैं तुम्हारी पूजा निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में निकलना चाहता हूं. जिसके बाद राजा ने उस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया और भगवान महाकाल के कहने पर ही शिवलिंग का नाम गैवीनाथ धाम रख दिया गया, तब से भगवान भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है.

  • जल चढ़ाने का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर चारों धाम से लौटने वाले भक्त गैवीनाथ धाम पहुंचकर चारों धाम का जल चढ़ाते हैं. पूर्वज बताते हैं कि जितना चारों धाम भगवान का दर्शन करने से पुण्य मिलता है उससे कहीं ज्यादा गैवीनाथ में जल चढ़ाने से मिलता है. लोग कहते हैं कि चारों धाम का जल अगर यहां नहीं चढ़ा, तो चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है. यहां पर पूरे विंध्य क्षेत्र से भक्त पहुंचते हैं.

  • क्या है किवदंतियां ?

इस मंदिर की एक किवदंती है कि यहां मुगल शासक औरंगजेब ने सोना पाने के लालच में इस शिवलिंग को खंडित करने की कोशिश की थी, औरंगजेब ने शिवलिंग में पहली टाकी मारी, तो शिवलिंग से दूध निकला, दूसरी टाकी में खून निकला, तीसरी टाकी में मवाद, चौथी टाकी में फूल बेलपत्र आदि और पाचवीं टाकी मारते ही जीवजंतु निकले, जिसके बाद औरंगजेब को वहां से भागना पड़ा.

सतना। जिला मुख्यालय से महज 35 किलोमीटर दूर बिरसिंहपुर कस्बे में भगवान भोलेनाथ का मंदिर स्थित है, जिसे गैवीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है. यहां पर खंडित शिवलिंग की पूजा होती है. इसका वर्णन पदम पुराण के पाताल खंड में मिलता है. गैवीनाथ धाम को उज्जैन महाकाल का दूसरा रूप लिंग कहा जाता है.

  • मंदिर का इतिहास

पदम पुराण के अनुसार त्रेता युग में बिरसिंहपुर कस्बे में राजा वीर सिंह का राज हुआ करता था, उस समय बिरसिंहपुर देवपुर के नाम से जाना जाता था. राजा वीर सिंह प्रतिदिन भगवान महाकाल को जल चढ़ाने के लिए घोड़े पर सवार होकर उज्जैन महाकाल दर्शन करने जाते थे. ऐसा माना जाता है कि करीब 650 वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा. इस तरह राजा वृद्ध हो गए और उज्जैन जाने में परेशानी होने लगी. जिसके बाद उन्होंने भगवान महाकाल के सामने मन की बात रखी.

  • राजा के सपने में आए भगवान भोलनाथ

ऐसा माना जाता है कि भगवान महाकाल ने राजा वीर सिंह को सपने में दर्शन दिए. जिसके बाद नगर में गैवी यादव नामक व्यक्ति के घर में एक घटना सामने आई. जहां घर के चूल्हे से रात को शिवलिंग रूप निकला था. एक दिन महाकाल फिर राजा के स्वप्न में आए और कहां कि मैं तुम्हारी पूजा निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में निकलना चाहता हूं. जिसके बाद राजा ने उस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया और भगवान महाकाल के कहने पर ही शिवलिंग का नाम गैवीनाथ धाम रख दिया गया, तब से भगवान भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है.

  • जल चढ़ाने का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर चारों धाम से लौटने वाले भक्त गैवीनाथ धाम पहुंचकर चारों धाम का जल चढ़ाते हैं. पूर्वज बताते हैं कि जितना चारों धाम भगवान का दर्शन करने से पुण्य मिलता है उससे कहीं ज्यादा गैवीनाथ में जल चढ़ाने से मिलता है. लोग कहते हैं कि चारों धाम का जल अगर यहां नहीं चढ़ा, तो चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है. यहां पर पूरे विंध्य क्षेत्र से भक्त पहुंचते हैं.

  • क्या है किवदंतियां ?

इस मंदिर की एक किवदंती है कि यहां मुगल शासक औरंगजेब ने सोना पाने के लालच में इस शिवलिंग को खंडित करने की कोशिश की थी, औरंगजेब ने शिवलिंग में पहली टाकी मारी, तो शिवलिंग से दूध निकला, दूसरी टाकी में खून निकला, तीसरी टाकी में मवाद, चौथी टाकी में फूल बेलपत्र आदि और पाचवीं टाकी मारते ही जीवजंतु निकले, जिसके बाद औरंगजेब को वहां से भागना पड़ा.

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