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जल संरक्षण : कंटूर ट्रेंच के निर्माण से पानी बचाने की अभिनव पहल, जानें लाभ और सावधानियां - सागर न्यूज

सागर जिले में जल संरक्षण के लिए पानी की खेती का एक अभिनव कार्य किया जा रहा है. जिसे कंटूर ट्रेंच कहा जाता है. जानें क्या है कंटूर ट्रेंच के लाभ और सावधानियां...

Water Conservation from Contour Trench
जल की खेती
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Published : Sep 7, 2020, 3:01 PM IST

सागर। पानी एक ऐसा पदार्थ है जिसके बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, दुनिया की तमाम प्रमुख सभ्यताएं जल स्त्रोतों के पास ही विकसित हुई हैं. जल का महत्व हमारे पुराणों से लेकर आधुनिक लेखों, किताबों में भी लिखा गया है. जल संरक्षण को लेकर दुनिया भर में अनेकों प्रयास और कार्यक्रम सहित कई योजनाएं भी चलाई जा रही हैं. इसके लिए पानी की खेती भी की जा सकती है यह शब्द जरा अटपटा लगा होगा, लेकिन हम बता दें कि पानी की खेती से तात्पर्य जल संरक्षण से है. जिसके लिए मध्य प्रदेश के सागर जिले में अभिनव कार्य किया जा रहा है और इन कार्यों को संपन्न कराने के लिए जिला पंचायत जरिया बन गया है.

कंटूर ट्रेंच से जल संरक्षण

जल संरक्षण के महत्व को समझते हुए सागर जिला प्रशासन ने मानसून के आने के पहले ही जल संरक्षण के कार्यों पर जोर देना शुरू कर दिया. बारिश के पानी को जो बहकर नालियों के माध्यम से व्यर्थ चला जाता है, उसे संरक्षित करने के लिए जिला पंचायत ने पहाड़ों पर कंटूर ट्रेंच फॉर्मूला अपनाया है, जिसके तहत जिले के कई विशाल पहाड़ी क्षेत्रों को चयनित किया गया है.

पानी की खेती

क्या है कंटूर ट्रेंच

समोच्च खत्तियां (Contour Trenching) जो कि एक निश्चित आकार के गड्ढे होते हैं मुख्यतः उन स्थानों पर खोदे जाते हैं जहां से वर्षा जल नीचे की ओर बह जाता है और जमीन सोख नहीं पाता, इन ट्रेंच की सहायता से वह जल जमीन में समाहित हो जाता है. जिससे आसपास का भूजल तेजी से बढ़ता है. इसके अलावा इन गड्ढों के किनारे की मिट्टी पर पौधारोपण किया जा सकता है, जिसकी वजह से जल संरक्षण भी होता है और भूमि का कटाव भी रुकता है. समोच्च खत्तियां दो प्रकार की होती है, पहला निरन्तर और दूसरा बिखरी हुई.

ये भी पढ़े- मुरैना में कम पानी में होगी सब्जी की खेती, इंडो-इजरायल तकनीकी से बनेगा वेजिटेबल-हब

कंटूर ट्रेंचिंग का आकार

ढालदाल भूमि पर कंटूर रेखा सीधी अथवा एक दूसरे के समान्तर नहीं होगी, बल्कि भूमि के ढाल के अनुसार ऊपर नीचे की ओर घूमती हुई बनेगी. कंटूर पर नालियों के खुदान के बाद कंटूर नालियां वृक्षारोपण क्षेत्र में मालाओं की तरह अर्द्धचंद्राकार दिखाई देती है. ये कंटूर लाइन पर ढाल के लंबवत खोदी जाती है. ट्रेंच से निकली मिट्टी, पत्थर आदि से ट्रेंच के नीचे की ओर बंध का निर्माण किया जाता है. इसका उद्देश्य भी ढाल के पानी के सीधे बहाव को रोककर जमीन में सोख लिए जाने की स्थिति उत्पन्न करना होता है.

ये भी पढ़े- ग्वालियर के छात्रावास से दो छात्रों का अपहरण, मचा हड़कंप

कंटूर ट्रेंच के लाभ

पूरे विश्व में जल संरक्षण के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं. सागर में भी इस वर्ष जल संरक्षण के लिए सराहनीय कार्य किया जा रहा है. जिले में लगभग 65 ग्राम पंचायतों में कंटूर ट्रेंच निर्माण कार्य किया जा रहा है, जहां केसली और देवरी क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया गया है. जिले में लगभग एक लाख इस तरह के गड्ढे खोदे गए हैं. जिनमें बारिश का पानी बहने के बजाए सीधे इन तमाम गड्ढों में भरता जाता है और इसके बाद ओवरफ्लो होने पर वह बगल के दूसरे गड्ढों में भर जाता है. इन गड्ढों के बाद पहाड़ के नीचे की ओर कृत्रिम तालाब भी बनाए गए हैं, ओवरफ्लो होने पर यह पूरा जल इन तालाबों में भर जाता है. जिससे पानी जरा भी व्यर्थ ना होते हुए गड्ढों और तालाब के माध्यम से पूरी तरह जमीन में सोख लेता है. करीब 20 हजार मजदूरों ने मिलकर ये गड्ढे खोदे है.

इस प्रकार वर्षा जल के संरक्षण से भूजल स्तर बढ़ेगा और विश्व में विकराल होती जल संकट की स्थिति कम होगी. दूर से देखने पर एक साथ हजारों घरों में भरा पानी देखकर ऐसा ही प्रतीत होता है, जैसा कि पहाड़ों पर जल की खेती की गई हो. जिला पंचायत द्वारा बंजर जमीनों को इन गड्ढों के लिए चुना गया है, अगर इन गड्ढों में जल संरक्षण के साथ ही किए गए पौधारोपण सफल हुए तो कुछ वक्त बाद ही यह सारे क्षेत्र हरे-भरे और उपजाऊ हो जाएंगे.

सावधानियां

  • कंटूर नालियां सीधी खुदी होनी चाहिए, इनमें ढलान होने पर भू-क्षरण बढ़ने की संभावनाएं रहती है.
  • जल समेट के संपूर्ण क्षेत्र में कंटूर नालियां खोदनी चाहिए ताकि वर्षा के जल का अधिकतम अवशोषण हो सकें.
  • कंटूर नालियों से खुदी मिट्टी को कंटूर नालियों के बाहरी तरफ से लगा कर दबा लेना चाहिए, क्योंकि खुली मिट्टी में भू-क्षरण की संभावनाएं अधिक रहती है.

सागर। पानी एक ऐसा पदार्थ है जिसके बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, दुनिया की तमाम प्रमुख सभ्यताएं जल स्त्रोतों के पास ही विकसित हुई हैं. जल का महत्व हमारे पुराणों से लेकर आधुनिक लेखों, किताबों में भी लिखा गया है. जल संरक्षण को लेकर दुनिया भर में अनेकों प्रयास और कार्यक्रम सहित कई योजनाएं भी चलाई जा रही हैं. इसके लिए पानी की खेती भी की जा सकती है यह शब्द जरा अटपटा लगा होगा, लेकिन हम बता दें कि पानी की खेती से तात्पर्य जल संरक्षण से है. जिसके लिए मध्य प्रदेश के सागर जिले में अभिनव कार्य किया जा रहा है और इन कार्यों को संपन्न कराने के लिए जिला पंचायत जरिया बन गया है.

कंटूर ट्रेंच से जल संरक्षण

जल संरक्षण के महत्व को समझते हुए सागर जिला प्रशासन ने मानसून के आने के पहले ही जल संरक्षण के कार्यों पर जोर देना शुरू कर दिया. बारिश के पानी को जो बहकर नालियों के माध्यम से व्यर्थ चला जाता है, उसे संरक्षित करने के लिए जिला पंचायत ने पहाड़ों पर कंटूर ट्रेंच फॉर्मूला अपनाया है, जिसके तहत जिले के कई विशाल पहाड़ी क्षेत्रों को चयनित किया गया है.

पानी की खेती

क्या है कंटूर ट्रेंच

समोच्च खत्तियां (Contour Trenching) जो कि एक निश्चित आकार के गड्ढे होते हैं मुख्यतः उन स्थानों पर खोदे जाते हैं जहां से वर्षा जल नीचे की ओर बह जाता है और जमीन सोख नहीं पाता, इन ट्रेंच की सहायता से वह जल जमीन में समाहित हो जाता है. जिससे आसपास का भूजल तेजी से बढ़ता है. इसके अलावा इन गड्ढों के किनारे की मिट्टी पर पौधारोपण किया जा सकता है, जिसकी वजह से जल संरक्षण भी होता है और भूमि का कटाव भी रुकता है. समोच्च खत्तियां दो प्रकार की होती है, पहला निरन्तर और दूसरा बिखरी हुई.

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कंटूर ट्रेंचिंग का आकार

ढालदाल भूमि पर कंटूर रेखा सीधी अथवा एक दूसरे के समान्तर नहीं होगी, बल्कि भूमि के ढाल के अनुसार ऊपर नीचे की ओर घूमती हुई बनेगी. कंटूर पर नालियों के खुदान के बाद कंटूर नालियां वृक्षारोपण क्षेत्र में मालाओं की तरह अर्द्धचंद्राकार दिखाई देती है. ये कंटूर लाइन पर ढाल के लंबवत खोदी जाती है. ट्रेंच से निकली मिट्टी, पत्थर आदि से ट्रेंच के नीचे की ओर बंध का निर्माण किया जाता है. इसका उद्देश्य भी ढाल के पानी के सीधे बहाव को रोककर जमीन में सोख लिए जाने की स्थिति उत्पन्न करना होता है.

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कंटूर ट्रेंच के लाभ

पूरे विश्व में जल संरक्षण के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं. सागर में भी इस वर्ष जल संरक्षण के लिए सराहनीय कार्य किया जा रहा है. जिले में लगभग 65 ग्राम पंचायतों में कंटूर ट्रेंच निर्माण कार्य किया जा रहा है, जहां केसली और देवरी क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया गया है. जिले में लगभग एक लाख इस तरह के गड्ढे खोदे गए हैं. जिनमें बारिश का पानी बहने के बजाए सीधे इन तमाम गड्ढों में भरता जाता है और इसके बाद ओवरफ्लो होने पर वह बगल के दूसरे गड्ढों में भर जाता है. इन गड्ढों के बाद पहाड़ के नीचे की ओर कृत्रिम तालाब भी बनाए गए हैं, ओवरफ्लो होने पर यह पूरा जल इन तालाबों में भर जाता है. जिससे पानी जरा भी व्यर्थ ना होते हुए गड्ढों और तालाब के माध्यम से पूरी तरह जमीन में सोख लेता है. करीब 20 हजार मजदूरों ने मिलकर ये गड्ढे खोदे है.

इस प्रकार वर्षा जल के संरक्षण से भूजल स्तर बढ़ेगा और विश्व में विकराल होती जल संकट की स्थिति कम होगी. दूर से देखने पर एक साथ हजारों घरों में भरा पानी देखकर ऐसा ही प्रतीत होता है, जैसा कि पहाड़ों पर जल की खेती की गई हो. जिला पंचायत द्वारा बंजर जमीनों को इन गड्ढों के लिए चुना गया है, अगर इन गड्ढों में जल संरक्षण के साथ ही किए गए पौधारोपण सफल हुए तो कुछ वक्त बाद ही यह सारे क्षेत्र हरे-भरे और उपजाऊ हो जाएंगे.

सावधानियां

  • कंटूर नालियां सीधी खुदी होनी चाहिए, इनमें ढलान होने पर भू-क्षरण बढ़ने की संभावनाएं रहती है.
  • जल समेट के संपूर्ण क्षेत्र में कंटूर नालियां खोदनी चाहिए ताकि वर्षा के जल का अधिकतम अवशोषण हो सकें.
  • कंटूर नालियों से खुदी मिट्टी को कंटूर नालियों के बाहरी तरफ से लगा कर दबा लेना चाहिए, क्योंकि खुली मिट्टी में भू-क्षरण की संभावनाएं अधिक रहती है.
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