सागर। वैसे तो आपकी उंगलियों के नाखून से आप कई रोजमर्रा के काम करते हैं, लेकिन आपको जान कर आश्चर्य होगा कि इन नाखूनों के सहारे चित्रकारी भी की जा सकती है और खास बात ये है कि इस चित्रकारी में एक सादे कागज के अलावा ना तो किसी कलर की जरूरत होती है और ना किसी ब्रश की. जी हां हम बात कर रहे हैं नख चित्रकारी की. जिसे नेल पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है. इस कला में सागर केंद्रीय विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर दिवाकर सिंह राजपूत पारंगत हैं और कुछ ही मिनटों में अपने नाखूनों के सहारे कागज पर तस्वीरें उकेर देते हैं. उनकी इस कला को सम्मान भी मिला है, लेकिन धीरे-धीरे यह कला विलुप्त होने लगी है, जिसे लेकर वो काफी चिंतित हैं.
सागर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर दिवाकर सिंह राजपूत छात्र जीवन से नख चित्रकारी का शौकसेंट्रल यूनिवर्सिटी सागर के समाजशास्त्र के प्रोफेसर दिवाकर सिंह राजपूत बताते हैं कि उन्हें विद्यार्थी जीवन में पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने का शौक था. इस दौरान उन्होंने एक आलेख पढ़ा 'और भी इस्तेमाल है नाखूनों के'. इस आलेख को पढ़कर में काफी आकर्षित हुए और पता चला कि नाखूनों से लोग चित्र भी बना लेते हैं. उन्हें भी इसे जानने और बनाने की जिज्ञासा हुई. धीरे-धीरे कागज का एक टुकड़ा उठाकर नाखूनों के जरिए चित्र बनाने की कोशिश की और एक तरह से नख चित्रकारी की शुरुआत हो गई. छात्र जीवन से नख चित्रकारी का शौक नहीं है रंग और ब्रश की जरूरत प्रोफ़ेसर दिवाकर बताते हैं कि खास बात ये है कि इस कला के लिए किसी चीज की आवश्यकता नहीं होती है. आपके पास आपके हाथ हैं, आपकी उंगलियां हैं और नाखून हैं और किसी भी तरह के प्लेन कागज पर इसे उकेरा जा सकता है. धीरे-धीरे इसमें उन्हें बहुत आनंद आने लगा. सिर्फ 2 और 3 मिनट में वो पोस्टकार्ड साइज के कागज पर किसी भी तरह का चित्र बना लेते हैं. उन्होंने बताया कि इस तरह धीरे-धीरे उनका रुझान बढ़ा और अपने विचार, भावनाएं जो कभी कविताओं के रूप में, तो कभी चित्र के रूप में, कभी कहानी और कभी मुक्तक के रूप में लिखते थे, उनको नख चित्रकारी के माध्यम से कागज पर उकेरना शुरू कर दिया. नहीं है रंग और ब्रश की जरूरत नख चित्रकारी के लिए मिला राष्ट्रीय सम्मान नख चित्रकारी की कला के लिए प्रोफ़ेसर दिवाकर सिंह राजपूत को 1987-88 में राष्ट्रीय स्तर पर कलाश्री सम्मान से भी नवाजा गया है. वहीं सागर विश्वविद्यालय में जब अंतिम छात्र संघ सक्रिय था, तब 7 दिन का गौर सप्ताह मनाया जाता था, जिसमें 1987- 88 में प्रोफेसर दिवाकर सिंह राजपूत की नख चित्रकारी की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी.
विलुप्ति की कगार पर नख चित्रकारी
प्रोफेसर राजपूत कला के विलुप्त होने को लेकर चिंतित हैं. उनका कहना है कि ये एक तरह से विलुप्तप्राय कला है और लगभग खत्म होती जा रही है. इसमें लोगों का रुझान इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि लोगों को अजूबा और अनोखा लगता है. लोग देखकर आश्चर्यचकित होते हैं कि कोई खाली कागज पर बिना पेन, बिना कलर के 2 मिनट के अंदर चित्र बना लेता है और लोगों को अच्छा लगता है. मैंने पोस्टकार्ड पर कई लोगों को चित्र बनाकर दिए जिन्हें उन्होंने आज भी संभाल कर रखा है.(Unique nail painting) (Sagar Central University) (Sagar University professor)