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हरसिद्धि माता की स्वयंभू प्रतिमा, दिन में बदलती हैं तीन रूप - हरसिद्धि माता

हरसिद्धि माता का प्राचीन मंदिर स्थानीय लोगों के अलावा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. कहा जाता है कि माता से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है.

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हरसिद्धि माता की स्वयंभू प्रतिमा
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Published : Apr 13, 2021, 8:12 AM IST

सागर। रेहली विकासखंड के रानगिर गांव में हरसिद्धि माता का प्राचीन और विशाल मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित है. स्थानीय लोगों के अलावा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के लोगों की हरसिद्धि माता के मंदिर में आस्था है. कहा जाता है कि माता के मंदिर में मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है.

मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह मूर्ति दिन में तीन रूप बदलती है. इस मंदिर के निर्माण और देवी मां को लेकर कई तरह की किवदंतियां भी हैं. हर साल चैत्र माह में यहां मेला लगता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

रानगिर मंदिर को लेकर कई तरह की किवदंतियां
1. एक किवदंती देश में स्थापित शक्तिपीठों से जुड़ी हुई है. स्थानीय लोगों का ये दावा हैं कि दक्ष प्रजापति के अपमान से दुखी होकर जब सती ने योग बल से अपना शरीर त्याग दिया था, तो भगवान शंकर ने कुपित होकर तांडव किया था. भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव के अंग-अंग किए. ये अंग जहां-जहां गिरे, उस अंग के नाम से शक्ति पीठ स्थापित हो गई. कहा जाता है कि रानगिर क्षेत्र में सती की रान (जांघ) गिरी थी. इसलिए इसे रानगिर कहा जाता है.

2. रानगिर के आसपास पहाड़ों की श्रृंखला और प्राकृतिक सौंदर्य से यह क्षेत्र भरपूर है. कहा जाता है कि इस इलाके के पहाड़ों की कंदरा में रावण ने घोर तपस्या की थी. इसे रावण कहा जाने लगा था, लेकिन धीरे-धीरे यह नाम परिवर्तित हुआ और रानगिर कहलाने लगा.

कोरोना का कहर: रानगिर मेला दूसरी बार निरस्त, भक्त हुए निराश



हरसिद्धि माता की मूर्ति के संबंध में किवदंतिया
हरसिद्धि मां की स्वयंभू प्रतिमा प्रकट होने के बारे में कहा जाता है कि मां हरसिद्धि देहर नदी के किनारे पर आकर नन्ही बालिकाओं के साथ खेला करती थी. उन बालिकाओं को हर दिन एक चांदी का सिक्का देती थी. गांव के लोगों को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने दिव्य बालिका का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन कुछ पता नहीं लगा पाया. जब एक चरवाहे ने छुपकर दिव्य बालिका को पकड़कर पूछना चाहा कि तुम कौन हो, तो वह बालिका पाषाण की प्रतिमा में परिवर्तित हो गई.

हरसिद्धि माता की स्वयंभू प्रतिमा
बुंदेला राजा छत्रसाल ने कराई थी मंदिर की स्थापना मंदिर के इतिहास के संबंध में कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि रानगिर में धामोनी के मुगल राजा फौजार खलिक और राजा छत्रसाल बुंदेला के बीच में युद्ध हुआ था. राजा छत्रसाल विजयी हुए थे. तब उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया था.
हरसिद्धि माता की स्वयंभू प्रतिमा
कोरोना के कारण दो साल से नहीं भर पा रहा है मेला रानगिर की हरसिद्धि माता का मंदिर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में आस्था का बड़ा केंद्र है. चैत्र में भरने वाले मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन पिछले दो साल से कोरोना के चलते यह मेला आयोजित नहीं हो रहा है. इसलिए भक्तों में निराशा भी है.

सागर। रेहली विकासखंड के रानगिर गांव में हरसिद्धि माता का प्राचीन और विशाल मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित है. स्थानीय लोगों के अलावा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के लोगों की हरसिद्धि माता के मंदिर में आस्था है. कहा जाता है कि माता के मंदिर में मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है.

मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह मूर्ति दिन में तीन रूप बदलती है. इस मंदिर के निर्माण और देवी मां को लेकर कई तरह की किवदंतियां भी हैं. हर साल चैत्र माह में यहां मेला लगता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

रानगिर मंदिर को लेकर कई तरह की किवदंतियां
1. एक किवदंती देश में स्थापित शक्तिपीठों से जुड़ी हुई है. स्थानीय लोगों का ये दावा हैं कि दक्ष प्रजापति के अपमान से दुखी होकर जब सती ने योग बल से अपना शरीर त्याग दिया था, तो भगवान शंकर ने कुपित होकर तांडव किया था. भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव के अंग-अंग किए. ये अंग जहां-जहां गिरे, उस अंग के नाम से शक्ति पीठ स्थापित हो गई. कहा जाता है कि रानगिर क्षेत्र में सती की रान (जांघ) गिरी थी. इसलिए इसे रानगिर कहा जाता है.

2. रानगिर के आसपास पहाड़ों की श्रृंखला और प्राकृतिक सौंदर्य से यह क्षेत्र भरपूर है. कहा जाता है कि इस इलाके के पहाड़ों की कंदरा में रावण ने घोर तपस्या की थी. इसे रावण कहा जाने लगा था, लेकिन धीरे-धीरे यह नाम परिवर्तित हुआ और रानगिर कहलाने लगा.

कोरोना का कहर: रानगिर मेला दूसरी बार निरस्त, भक्त हुए निराश



हरसिद्धि माता की मूर्ति के संबंध में किवदंतिया
हरसिद्धि मां की स्वयंभू प्रतिमा प्रकट होने के बारे में कहा जाता है कि मां हरसिद्धि देहर नदी के किनारे पर आकर नन्ही बालिकाओं के साथ खेला करती थी. उन बालिकाओं को हर दिन एक चांदी का सिक्का देती थी. गांव के लोगों को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने दिव्य बालिका का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन कुछ पता नहीं लगा पाया. जब एक चरवाहे ने छुपकर दिव्य बालिका को पकड़कर पूछना चाहा कि तुम कौन हो, तो वह बालिका पाषाण की प्रतिमा में परिवर्तित हो गई.

हरसिद्धि माता की स्वयंभू प्रतिमा
बुंदेला राजा छत्रसाल ने कराई थी मंदिर की स्थापना मंदिर के इतिहास के संबंध में कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि रानगिर में धामोनी के मुगल राजा फौजार खलिक और राजा छत्रसाल बुंदेला के बीच में युद्ध हुआ था. राजा छत्रसाल विजयी हुए थे. तब उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया था.
हरसिद्धि माता की स्वयंभू प्रतिमा
कोरोना के कारण दो साल से नहीं भर पा रहा है मेला रानगिर की हरसिद्धि माता का मंदिर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में आस्था का बड़ा केंद्र है. चैत्र में भरने वाले मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन पिछले दो साल से कोरोना के चलते यह मेला आयोजित नहीं हो रहा है. इसलिए भक्तों में निराशा भी है.
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